गोस्वामीजी कहते हैं‒‘भरोसो जाहि दूसरो
सो करो’ किसीको दूसरे किसीका भरोसा हो तो वह किया करे । मेरे तो‒‘मोको तो रामको नाम कलपतरु कलि कल्यान फरो’
रामजीका नामरूपी कल्पतरु कलियुगमें कल्याणरूपसे फलीभूत हो गया
। इस कल्पतरुसे जो चाहे, सो ले लो । ‘मेरे तो माय-बाप दोउ आखरहौं,
सिसु-अरनि अरो’ मैं बच्चा हूँ, अड़ जाऊँगा तो वह चीज लेकर ही छोड़ूँगा । जैसे माँ-बापके सामने
बच्चा अड़ जाय, रोने लग जाय तो जो खिलौना चाहे,
वह ले ही लेगा । ऐसे ही मैं शिशु हूँ,
अड़ जाता हूँ तो राम-नामसे सब ले लेता हूँ । ऐसा कहते-कहते गोस्वामीजी
महाराज हद कर देते हैं ‘संकर साखि जो राखि कहौं’
मनमें बात तो दूजी हो और बनाकर दूजी कहता हूँ तो भगवान् शंकर
साक्षी हैं । शंकर भगवान् हमारे गवाह हैं । ‘तो जरि जीह गरो’
जीभ जल जाओ, गल जाओ भले ही परन्तु ‘अपनो भलो राम-नामहि
ते तुलसिहि समुझि परो ।’
शंकर भगवान्की गवाही क्यों दी ?
एक तो शंकर राम-नाम लेनेवाले हैं । दूसरी बात,
जिसको गवाही दिया जाय,
उसको पूछते हैं‒देखो भाई ! सच्ची-सच्ची गवाही देना,
तो वह कहता है‒हाँ सच्ची कहता हूँ । पूछनेवाला पूछता है‒बिलकुल
सच्ची ? हाँ, बिलकुल सच्ची ?
अगर सच्ची ! तो उठाओ गंगाजली । ऐसे गोस्वामीजी शंकर भगवान्से
कहते हैं‒‘महाराज ! सच्ची गवाही देना, आपके सिरपर गंगाजी हैं ।’
सगरामदासजी कवि कहते हैं‒
(१)
नरतन दीन्हो रामजी सतगुरु दीन्हो ज्ञान ।
ये घोड़ा हाको अबे ओ आयो मैदान ॥
ओ आयो मैदान आग करडी कर
सावो ।
हिरदे राखो ध्यान राम
रसनासों गावो ॥
कुण देखाँ सगराम कहे आगे
काढ़े कान ।
नरतन दीन्हो रामजी सतगुरु दीन्हो ज्ञान ॥
( २)
कहे दास सगराम बड़गड़े घालो घोड़ा ।
भजन करो भरपूर रह्या
दिन बाकी थोड़ा ॥
थोड़ा दिन बाकी रह्या कद
पोंछोला ठेट ।
अध बीचमें बासो असो तो पड़सो किणरे पेट ॥
पड़सो किणरे पेट पड़ेला भारी फोड़ा ।
कहे दास
सगराम
बड़गड़े घालो घोडा
॥
तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य-शरीर पा करके खूब भजन कर लो;
नहीं तो कुत्तीके, गधीके पेटमें जाना पड़ेगा । इन माताओंका दूध पीकर क्या कुत्तीका
दूध पीओगे ? क्या गधीका दूध पीओगे ?
इस वास्ते भाइयो ! बहनो ! हमलोगोंपर सन्तोंने कितनी कृपा करके
हमको भगवान्का नाम बता दिया है । अब तो चेत करके रात और दिन ‘राम-राम-राम-राम-राम’
करो । रात-दिन भजनमें लग जाओ ।
भाइयो ! जबानकी सावधानी रखो । जबानसे सत्य बोलो,
झूठ मत बोलो । सावधानीके साथ इसका हरदम खयाल रखो और हरदम भगवान्का
नाम लो । झूठ बोलनेसे जिह्वामें शक्ति नहीं होती । जबानमें
शक्ति न होनेपर नाम लेनेपर भी जल्दी सिद्धि नहीं होती ।
‘जिह्वा दग्धा परान्नेन’
पराया हक खानेसे जीभ जल गयी । ‘हस्तौ
दग्धौ प्रतिग्रहात्’ दूसरोंकी चीज लेनेसे हाथ जल गये । ‘परस्त्रीभिर्मनो
दग्धम्’ पर-स्त्रियोंमें मन जानेसे मन जल गया । ‘कथं सिद्धिर्वरानने ।’
तो सिद्धि कैसे हो ?
ताकत न जीभमें रही,
न हाथमें रही और न मनमें रही । इस वास्ते भाइयो ! बहनो ! बड़ी
सावधानीसे बर्ताव करो और भगवान्का नाम लो ।
लोग बड़े-बड़े दुःख पाते हैं और कहते हैं‒‘क्या करें चिन्ता नहीं
मिटती, हमारा काम नहीं बनता ।’
अरे भाई, राम-नाम लो न ? मैंने सन्तोंसे सुना है कि राम-नाम है तोपका गोला‒‘जैसे गोला तोप का करत जात मैदान’ जैसे तोपका गोला
जहाँ जाता है, वहाँ मैदान हो जाता है,
ऐसे ही यह राम-नाम है । यह तो प्रत्यक्ष बात है कि जब मनमें
चिन्ता आये तो आधा घंटा, एक घंटा नाम जपो, चिन्ता मिट जायगी ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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