अतः सती स्त्रियोंसे पृथ्वीकी, दुनियाकी रक्षा होती है‒‘एक सती और
जगत् सारा, एक चन्द्रमा नौ लख तारा ।’
इतना बल आपमें है ! इसलिये आप धर्मका अच्छी तरहसे पालन करें
। आप धर्मकी रक्षा करो तो धर्म लोकमें, परलोकमें, सब जगह आपकी रक्षा करेगा‒‘धर्मो रक्षति
रक्षितः ।’ कई बहनोंको पता नहीं है कि धर्म क्या कहता है ? शास्त्र क्या
कहता है ? तो वाल्मीकिरामायण,
तुलसीकृत रामायण आदि ग्रन्थ पढ़ो । परन्तु ग्रन्थोंको पढ़नेमें हमारी बुद्धिकी प्रधानता रहती है, जिससे
पूरा अर्थ खुलता नहीं । पुस्तकोंमें अच्छी-अच्छी बातें पढ़नेपर भी अपनी बुद्धिकी मुख्यता
रहनेसे हम उन बातोंको इतना नहीं समझ पाते, जितना
हम सत्संगके द्वारा सुनकर समझ पाते हैं । इसलिये भाइयो ! बहनो ! सत्संग करो । आजकल अच्छी बातें मिलती नहीं हैं । बहुत कम जगह मिलती हैं ।
अगर मिल जायँ तो विशेषतासे लाभ लेना चाहिये । करोड़ों काम बिगड़ते हों तो भी यह मौका
चूकने नहीं देना चाहिये‒‘कोटिं त्यक्त्वा हरिं
स्मरेत् ।’ खेत सूख जाय तो फिर वर्षासे क्या होगा ‒
का बरषा सब कृषी सुखानें
।
समय चुकें पुनि का पछितानें ॥
(मानस १ । २६१ । २)
इसलिये मौका चूकने मत दो और खूब उत्साहपूर्वक सत्संग,
भजन, ध्यानमें लग जाओ । बड़ोंकी सेवा करो । उनकी आज्ञामें रहो । सत्संगके
लिये उनके चरणोंमें गिर करके, रो करके आज्ञा माँग लो कि मेरेको यह छुट्टी दो ! आप जो कहो,
वही मैं करूँगी; परन्तु यह एक छुट्टी चाहती हूँ । इतना हृदयका कड़ा कौन होगा,
जो सेवा करनेवालेकी एक इतनी-सी बात भी नहीं मानेगा !
लखनऊके एक कायस्थ घरकी बात है । लड़की वैष्णवोंके घरकी और शुद्ध आचरणोवाली थी,
पर पतिका खाना-पीना सब खराब था । महाराज ! सुनकर आश्चर्य आये,
ऐसी बात मैंने सुनी शरणानन्दजी महाराजसे ! वह लड़की आज्ञा-पालन
करती, मांस बनाकर देती । आप भोजन करती तो स्नान करके दूसरे वस्त्र
पहनती और अपनी रोटी अलग बनाकर खाया करती । कितनी तकलीफ होती,
बताओ ! ऐसा गन्दा काम भी कर देना और अपनी पवित्रता भी पूरी रखना
! एक बार पति बीमार हो गया । उसने खूब तत्परतासे रातों जगकर पतिकी सेवा की । पति ठीक
हो गया तो उसने कहा कि तुम मेरेसे एक बात माँग लो । उसने कहा कि आप सिगरेट छोड़ दो ।
इस बातका पतिपर इतना असर पड़ा कि उसने मांस-मदिरा सब छोड़ दिया । क्योंकि इतनी सेवा करके
भी अन्तमें उसने एक छोटी-सी बात सिगरेट छोड़नेकी माँगी ! अतः माताओ ! बहनो ! अपनी माँग बहुत कम रखनी है और सेवा करनी है । परन्तु पतिके कहनेसे सत्संग-भजनका त्याग नहीं करना है; क्योंकि
इस बातको माननेसे उसको नरक होगा । अपना ऐसा कोई भी आचरण नहीं होना चाहिये,
जिससे पतिको नरक हो जाय । अतः पति,
माता-पिता आदिको पापसे बचानेके लिये सत्संग करो । अपनी मर्यादा
मत छोड़ो । अपना जीवन शुद्ध, निर्मल और मर्यादित हो,
फिर कोई डर नहीं ।
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