।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण कृष्ण दशमी, वि.सं.–२०७५, सोमवार
एकादशी-व्रत कल है
चुप-साधन



बाहर-भीतरसे चुप हो जाना ‘चुप-साधन’ है । भीतरसे ऐसा विचार कर लें कि मेरेको कुछ करना है ही नहीं । न स्वार्थ, न परमार्थ; न लौकिक, न पारलौकिक, कुछ भी नहीं करना है । ऐसा विचार करके बैठ जायँ । बैठनेका बढ़िया समय हैप्रातः नींदसे उठनेके बाद । नींदसे उठते ही भगवान्‌को नमस्कार करके बैठ जायँ । जैसे गाढ़ नींदमें किंचिन्मात्र भी कुछ करनेका संकल्प नहीं था, ऐसे ही जाग्रत्-अवस्थामें किंचिन्मात्र भी कुछ करनेका संकल्प न रहे । चिन्तन, जप, ध्यान आदि कुछ भी नहीं करना है । परन्तु ‘चिन्तन आदि नहीं करना है’यह संकल्प भी नहीं रखना है; क्योंकि ‘न करने’ का संकल्प रखना भी ‘करना’ है । वास्तवमें ‘न करना’ स्वतःसिद्ध है । मन-बुद्धि आदिको स्वीकार करके ही ‘करना’ होता है ।

अब किंचिन्मात्र भी कुछ नहीं करना हैऐसा विचार करके चुप हो जायँ । यदि मन न माने तो ‘सब जगह एक परमात्मा परिपूर्ण है’ऐसा मानकर चुप हो जायँ । सगुणकी उपासना करते हों तो ‘मैं प्रभुके चरणोमें पड़ा हूँ’ऐसा मानकर चुप हो जायँ । परन्तु यह दो नम्बरकी बात है । एक नम्बरकी बात तो यह है कि कुछ करना ही नहीं है । इस प्रकार चुप होनेपर भीतरमें कोई संकल्प-विकल्प हो, कोई बात याद आये तो उसकी उपेक्षा करे, विरोध न करें । उसमें न राजी हों, न नाराज हों; न राग करें, न द्वेष करें । शास्त्रविहित अच्छे संकल्प आयें तो उसमें राजी न हों और शास्त्रनिषिद्ध बुरे संकल्प आयें तो उसमें नाराज न हों । स्वयं भी उन संकल्पोंके साथ न चिपकें अर्थात् उनको अपना न मानें ।

आप कहते हैं कि मन बड़ा खराब है, पर वास्तवमें मन अच्छा और खराब होता ही नहीं । अच्छा और खराब स्वयं ही होता है । स्वयं अच्छा होता है तो संकल्प अच्छे होते हैं और स्वयं खराब होता है तो संकल्प खराब होते हैं । अच्छा और खराबये दोनों ही प्रकृतिके सम्बन्धसे होते हैं । प्रकृतिके सम्बन्धके बिना न अच्छा होता है और न बुरा होता है । जैसे सुख और दुःख दो चीज हैं, पर आनन्दमें दो चीज नहीं हैं अर्थात् आनन्दमें न सुख है, न दुःख है । ऐसे ही प्रकृतिके सम्बन्धसे रहित तत्त्वमें न अच्छा है, न बुरा है । इसलिये अच्छे और बुरेका भेद करके राजी और नाराज न हों ।

संकल्प आयें अथवा जायँ, उसमें पहलेसे ही यह विचार कर लें कि वास्तवमें संकल्प आता नहीं है, प्रत्युत जाता है । भूतकालमें हमने जो काम किये हैं, उनकी याद आती है अथवा भविष्यमें कुछ करनेका विचार पकड़ रखा है, उसकी याद आती है कि वहाँ जाना है, वह काम करना है आदि । इस तरह भूत और भविष्यकी याद आती है, जो अभी है ही नहीं । वास्तवमें उसकी याद आ नहीं रही है, प्रत्युत स्वतः जा रही है । मनमें जो बातें जमी हैं, वे निकल रही हैं । अतः आप उससे सम्बन्ध मत जोड़ें, तटस्थ हो जायँ । सम्बन्ध नहीं जोड़नेसे आपको उन संकल्पोंका दोष नहीं लगेगा और वे संकल्प भी अपने-आप नष्ट हो जायँगे; क्योंकि उत्पन्न होनेवाली वस्तु स्वतः नष्ट होती हैयह नियम है ।