।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण षष्ठी, वि.सं.–२०७५, शनिवार
                 दुर्गतिसे बचो




प्रश्न‒जो भगवन्नामका जप, स्वाध्याय आदि करते हैं, वे भी मरनेके बाद क्या भूत-प्रेत बन सकते हैं ?

उत्तर‒प्रायः ऐसे मनुष्य भूत-प्रेत नहीं बनते । परन्तु नामजपकी रुचिकी अपेक्षा जिनकी सांसारिक पदार्थोंमें, अपनी सेवा करनेवालोंमें, अपने अनुकूल चलनेवालोंमें ज्यादा रुचि (आसक्ति) हो जाती है और अन्तसमयमें साधनमें स्थिति न रहकर सांसारिक पदार्थोंकी, सेवा करनेवालोंकी याद आ जाती है, वे मरनेके बाद भूत-प्रेत बन सकते हैं । ऐसे भूत-प्रेत किसीको तंग नहीं करते किसीको दुःख नहीं देते ।

कर्मोंकी गति बड़ी ही गहन है‒‘गहना कर्मणो गतिः’ (४ । १७) । अतः पाप-पुण्य, भाव आदिमें तारतम्य रहनेसे भूत-प्रेत आदिकी योनि मिल जाती है । भगवान्‌ने स्वयं कहा है कि कर्म और अकर्म क्या है‒इस विषयमें बड़े-बड़े विद्वान्‌लोग भी मोहित हो जाते हैं (४ । १६) ।

प्रश्न‒दुर्घटनामें मरनेवाले एवं आत्महत्या करनेवाले प्रायः भूत-प्रेत क्यों बनते हैं ?

उत्तर‒बीमारीमें तो ‘मेरेको मरना है’ऐसी सावधानी, होश रहता है; अतः बीमार व्यक्ति संसारसे उपराम होकर भगवान्‌में लग सकता है । परन्तु दुर्घटनाके समय मनमें कुछ-न-कुछ मनोरथ, चिन्तन रहता है, जिसके रहते हुए मनुष्य अचानक मर जाता है । अगर उस समय मनमें खराब चिन्तन हो, भगवान्‌का चिन्तन न हो तो वह आदमी भूत-प्रेत बन जाता है । दुर्घटनाके समय मारनेवालेकी तरफ मनोवृत्ति होनेसे उसीका चिन्तन होता है, इस कारण भी दुर्घटनामें मरनेवाला भूत-प्रेत बन जाता है । परन्तु जो संसारसे उपराम होकर पारमार्थिक मार्गमें लगा हुआ हो, वह दुर्घटना आदिमें अचानक मर भी जाय तो भी वह भूत-प्रेत नहीं बनता । तात्पर्य है कि अन्तःकरणमें सांसारिक राग, आसक्ति, कामना, ममता आदि रहनेसे ही मनुष्यकी अधोगति होती है । जिसके अन्तःकरणमें सांसारिक राग आदि नहीं है, उसका शरीर किसी भी देशमें, किसी भी जगह किसी भी समय छूट जाय तो वह भूत-प्रेत नहीं बनता; क्योंकि भूत-प्रेतयोनिमें ले जानेवाली सामग्री ही उसमें नहीं होती ।

जो क्रोधमें आकर अथवा किसी बातसे दुःखी होकर आत्महत्या कर लेता है, वह दुर्गतिमें चला जाता है अर्थात् भूत-प्रेत-पिशाच बन जाता है । आत्महत्या करनेवाला महापापी होता है । कारण कि यह मनुष्य-शरीर भगवत्प्राप्तिके लिये ही मिला है; अतः भगवत्प्राप्ति न करके अपने ही हाथसे मनुष्य-शरीरको खो देना बड़ा भारी पाप है, अपराध है, दुराचार है । दुराचारीकी सद्‌गति कैसे होगी ? अतः मनुष्यको कभी भी आत्महत्या करनेका विचार मनमें नहीं आने देना चाहिये ।


मनुष्यपर कोई बड़ी भारी आफत आ जाय, कोई भयंकर रोग हो जाय तो वह यही सोचता है कि अगर मैं मर जाऊँ तो सब कष्ट मिट जायँगे । परन्तु वास्तवमें आत्महत्या करनेपर कर्मोंका भोग (कष्ट) समाप्त नहीं होता, उसको तो किसी-न-किसी योनिमें भोगना ही पड़ेगा । आत्महत्या करके वह एक नया पापकर्म करता है, जिसके फलस्वरूप उसको नीच योनिमें जाना पड़ेगा, भूत-प्रेत बनना पड़ेगा और हजारों वर्षोंतक दुःख पाना पड़ेगा ।