।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७५, सोमवार
                 दुर्गतिसे बचो



जिसके गलेमें तुलसी, रुद्राक्ष अथवा बद्ध पारदकी  माला होती है, उसका भूत-प्रेत स्पर्श नहीं कर सकते । एक सज्जन प्रातः लगभग चार बजे घोड़ेपर बैठकर किसी आवश्यक कामके लिये दूसरे गाँव जा रहे थे । ठण्डीके दिन थे । सूर्योदय होनेमें लगभग डेढ़ घण्टेकी देरी थी । जाते-जाते वे ऐसे स्थानपर पहुँचे, जो इस बातके लिये प्रसिद्ध था कि वहाँ भूत-प्रेत रहते हैं । वहाँ पहुँचते ही उनके सामने अचानक एक प्रेत पेड़-जैसा लम्बा रूप धारण करके रास्तेमें खड़ा हो गया । घोड़ा बिचक जानेसे वे सज्जन घोडेसे गिर पड़े । उनके दोनों हाथोंमें मोच आ गयी । पर वे सज्जन बड़े निर्भय थे, अतः पिशाचसे डरे नहीं । जबतक सूर्योदय नहीं हुआ, तबतक वह पिशाच उनके सामने ही खड़ा रहा, पर उसने उनपर आक्रमण नहीं किया, उनका स्पर्श नहीं किया; क्योंकि उनके गलेमें तुलसीकी माला थी । सूर्योदय होनेपर पिशाच अदृश्य हो गया और वे सज्जन पुनः घोड़ेपर बैठकर अपने घर वापस आ गये ।

सूर्यास्तसे लेकर आधीराततक तथा मध्याह्नके समय भूत-प्रेतोंमें ज्यादा बल रहता है, उनका ज्यादा जोर चलता है । यह सबके अनुभवमें भी आता है कि रात्रि और मध्याह्नके समय श्मशान आदि स्थानोंमें जानेसे जितना भय लगता है, उतना भय सबेरे और संध्याके समय नहीं लगता । अगर रात्रि अथवा मध्याह्नके समय किसी एकान्त, निर्जन स्थानपर जाना पड़े और वहाँ पीछेसे कोई (प्रेत) पुकारे अथवा ‘मैं आ जाऊँ’ऐसा कहे तो उत्तरमें कुछ नहीं बोलना चाहिये, प्रत्युत चलते-चलते भगवन्नाम-जप, कीर्तन, विष्णुसहस्रनाम, हनुमानचालीसा, गीता आदिका पाठ शुरू कर देना चाहिये । उत्तर न मिलनेसे वह प्रेत वहींपर रह जायगा । अगर हम उत्तर देंगे, ‘हाँ, आ जा’ऐसा कहेंगे तो वह प्रेत हमारे पीछे लग जायगा ।

जहाँ प्रेत रहते हैं, वहाँ पेशाब आदि करनेसे भी वे पकड़ लेते हैं; क्योंकि उनके स्थानपर पेशाब करना उनके प्रति अपराध है । अतः मनुष्यको जहाँ-कहीं भी पेशाब नहीं करना चाहिये ।

हमें दुर्गतिमें, प्रेतयोनिमें न जाना पड़े‒इस बातकी सावधानीके लिये और गयाश्राद्ध करके, पिण्ड-पानी देकर प्रेतात्माओंके उद्धारकी प्रेरणा करनेके लिये ही यहाँ प्रेतविषयक चर्चा की गयी है ।

सांसारिक भोग और ऐश्वर्यकी कामनावाले मनुष्य अपने-अपने इष्टके पूजन आदिमें तत्परतासे लगे रहते हैं और इष्टकी प्रसन्नताके लिये सब काम करते हैं; परन्तु भगवान्‌के भजन-ध्यानमें लगनेवाले जिस तत्त्वको प्राप्त होते हैं, उसको प्राप्त न होकर वे बार-बार सांसारिक तुच्छ भोगोंको और नरकों तथा चौरासी लाख योनियोंको प्राप्त होते रहते हैं । इस तरह जो मनुष्य-जन्म पाकर भगवान्‌के साथ प्रेमका सम्बन्ध जोड़कर उनको भी आनन्द देनेवाले हो सकते थे, वे सांसारिक तुच्छ कामनाओंमें फँसकर और तुच्छ देवता, पितर आदिके फेरेमें पड़कर कितनी अनर्थ-परम्पराको प्राप्त होते हैं । इसलिये मनुष्यको बड़ी सावधानीसे केवल भगवान्‌में ही लग जाना चाहिये ।