।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण षष्ठी, वि.सं. २०७५ शनिवार
गणतन्त्रदिवस
शिव-पार्वतीका नाम-प्रेम



हरषे  हेतु   हेरि   हर  ही  को ।
किय भूषन तिय भूषन ती को ॥
                                          (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९/७)

‘राम’ नामके प्रति पार्वतीजीके हृदयकी ऐसी प्रीति देखकर भगवान् शंकर हर्षित हो गये और उन्होंने स्त्रियोंमें भूषणरूप (पतिव्रत्ताओंमें शिरोमणि) पार्वतीजीको अपना भूषण बना लिया अर्थात् उन्हें अपने अंगमें धारण करके अर्धांगिनी बना लिया । किसी स्त्रीकी बड़ाई की जाय तो उसे ‘सती’ की उपमा देकर कहा जाता है कि यह बड़ी सती-साध्वी है । परन्तु ‘राम’ नाममें हृदयकी प्रीति होनेसे वे पतिव्रताओंमें शिरोमणि हो गयीं । जितनी कन्याएँ हैं, वे सब-की-सब सतीजी (पार्वती)-का पूजन करती है कि जिससे हमें अच्छा वर मिले, अच्छा घर मिले, हम सुखी हो जायँ ।

        जगज्जननी जानकीजी भी पार्वतीजीका पूजन करती हैं । उनकी माँ सुनयनाजी कहती हैं‘जाओ बेटी ! सतीका पूजन करो ।’ सतीजीका पूजन करती हैं और अपना मनचाहा वर माँगती हैं । सतीका पूजन करनेसे श्रेष्ठ वर मिलता है । सती सब स्त्रियोंका गहना है । सतीका नाम ले तो पतिव्रता बन जाय, इतना उसका प्रभाव है । उस सतिको भगवान् शंकरने खुश होकर अपनी अर्धांगिनी बना लिया । आपने ‘अर्धनारीश्वर’ भगवान् शंकरका चित्र देखा होगा । एक तरफ आधी मूँछ है और दूसरी तरफ ‘नथ’ है । वाम भाग पार्वतीका शरीर और दाहिना भाग भगवान् शंकरका शरीर है । एक कविने इस विचित्ररूपके विषयमें बड़ा सुन्दर लिखा है ।

निपीय  स्तनमेकं    च     मुहुरन्यं  पयोधरम् ।
मार्गन्तं बालमालोक्याश्वासयन्तौ हि दम्पती ॥

बालक माँका स्तन चूँगता (पीता) है तो मुँहमें एक स्तनको लेता है और दूसरेको टटोलकर हाथमें पकड़ लेता है कि कहीं कोई दूसरा लेकर पी न जाय, इसका दूध भी मैं ही पिऊँगा । इसी प्रकार गणेशजी भी ऐसे एक बार माँका एक स्तन पीने लगे और दूसरा स्तन टटोलने लगे, पर वह मिले कहाँ ? उधर तो बाबाजी बैठे हैं, माँ तो है ही नहीं । अब वे दूसरा स्तन खोजते हैं दूध पीनेके लिये, तो माँने कहा‘बेटा ! एक ही पी ले । दूसरा कहाँसे लाऊँ ।’ ऐसे शंकर भगवान् अर्धनारीश्वर बने हुए हैं ।

भगवान् शंकरने ‘राम’ नाम जप करनेवाली सती पार्वतीको अपने-अंगका भूषण बना लिया ।’राम’ नामपर उनका बहुत ज्यादा स्नेह हैऐसा देखकर पार्वतीजीने पूछा—

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ।
सदर  जपहु   अनँग   आराती ॥
                                     (मानस, बालकाण्ड, दोहा १०८/७)

‘आप तो महाराज ! रात-दिन आदरपूर्वक ‘राम-राम-राम’ जप कर रहे हैं । एक-एक नाम लेते-लेते उसमें आपकी श्रद्धा, प्रेम, आदर उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है । ‘दिन राती’न रातका खयाल है, न दिनका । वह नाम किसका है ? वह ‘राम’ नाम क्या है महाराज ? ऐसा पार्वतीजीके पूछनेपर शिवजीने श्रीरामजीकी कथा सुनायी ।


पहले भगवान् श्रीशंकरने राम-कथाको रचकर अपने मनमें ही रखा । वे दूसरोंको सुनाना नहीं चाहते थे, पर फिर अवसर पाकर उन्होंने यह राम-कथा पार्वतीजीको सुनायी ।