।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल द्वादशी, वि.सं. २०७५ शनिवार
जया एकादशीव्रत (वैष्णव)
वास्तविक सिद्धिका मार्ग
        


च्‍चा माँकी गोदीमें बैठा हो तो वह सामने आये राजाको भी धमका देता है । यद्यपि माँ इतनी समर्थ नहीं है, तथापि वह समझता है कि मैं जिस माँकी गोदीमें बैठा हूँ, उसके समान और कोई नहीं है । परन्तु हमारी वास्तविक माँभगवान्‌के समान त्रिलोकीमें और कोई नहीं है । अर्जुन भगवान्‌से कहते हैं

        न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो-
                     लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥
                                                (गीता ११/४३)

‘हे अनन्त प्रभावशाली भगवन् ! इस त्रिलोकीमें आपके समान भी दूसरा कोई नहीं है, फिर अधिक तो हो ही कैसे सकता है !’

हम जो अपने शरीरको, अपने कुटुम्बको, अपने सम्प्रदायको, अपने वर्णको, अपने आश्रमको, अपनी योग्यताको, अपनी बुद्धि आदिको ऊँचा मानते हैं और उनके साथ अपना सम्बन्ध मानकर अपनेको बड़ा मानते हैं, यह वास्तवमें बड़ी भारी गलती है ! भगवान्‌के सामने इन सबका क्या मूल्य है ! भगवान्‌का बल तो निर्बलके लिये है

   जब लगि गज बल अपनो बरत्यो, नेक सर्यो नहिं काम ।
   निरबल   ह्वै    बलराम   पुकार्यो,   आये    आधे  नाम ॥
                  सुने री मैंने निरबल के बल राम ।

अपने बल, बुद्धि, योग्यता आदिका अभिमान भगवत्प्राप्तिमें महान् बाधक है । अपने साधनके बलका अभिमान भी भगवत्प्राप्तिमें बाधक है । इसका अर्थ यह नहीं कि हम साधन न करें । साधन नहीं करेंगे तो करेंगे क्या ? अतः साधन तो रात-दिन करना है, पर साधनके बलका अभिमान नहीं करना है । साधनके बलपर हम परमात्माको प्राप्त नहीं कर सकते । परमात्माको तो उनके शरण होकर ही प्राप्त कर सकते हैं ।

बालक छोटा-सा होता है, पर वह रात्रिमें रोने लगे तो घरवालोंको नचा देता है । किस बलपर ? रोनेके बलपर । वास्तवमें रोना कोई बल नहीं होता । रोना निर्बलताकी पहचान है । परन्तु कोई पहलवान चोर आता हो और बच्‍चा रो दे तो वह भाग जाता हैयह रोनेका बल है ! ऐसे ही हमें भगवान्‌के आगे रोना चाहिये । हमारेसे भूल यह होती है कि हम धनके लिये, परिवारके लिये, स्त्री-पुत्रके लिये, मान-बड़ाईके लिये, जीनके लिये, शरीरके लिये रोते हैं । हमारा रोना केवल भगवान्‌के लिये ही होना चाहिये । वे हमारे हैं, हम उनके हैं । जैसे बालक कहता है कि मेरी माँ है । दूसरी माताएँ भी बैठी हैं, पर बालक कहता है कि ये मेरी माँ नहीं हैं । एक स्त्री काली-कलूटी है, उसके गहने-कपड़े भी बढ़िया नहीं हैं, पर बालक जाकर उसकी छातीसे चिपक जाता है कि यह मेरी माँ है ! वह गहने-कपड़े, योग्यता आदिको देखकर माँके पास नहीं जाता, प्रत्युत अपनेपनको देखकर माँके पास जाता है । ऐसे ही भगवान्‌ हम सबकी वास्तविक माँ हैं । बलवान् कई हो सकते हैं, धनवान् कई हो सकते हैं, देवता आदि कई हो सकते हैं, पर हमारी माँभगवान्‌के समान कोई नहीं है । हमें उन्हींकी शरणमें जाना है ।