।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण अष्टमी, वि.सं. २०७५ गुरुवार
विश्वास और जिज्ञासा
        


श्रोता–ऐसी व्याकुलता कैसे पैदा हो ?

स्वामीजी–संसारके संयोगका सुख न ले । जैसे प्राण चलता रहता है तो चलनेमें परिश्रम होनेसे भूख-प्यास स्वतः पैदा होती है । परन्तु दिनभर तरह-तरहकी चीजें खाते रहोगे तो असली भूख नहीं लगेगी । दूसरा खाना बन्द करो, केवल भोजनके सिवा कुछ नहीं खाओ तो भूख लग जायगी, तेज हो जायगी । ऐसे ही केवल भगवान्‌को चाहें, उनके सिवा और कुछ न चाहें । सुख, मान, बड़ाई, आराम, आलस्य आदि किसी प्रकारकी इच्छा न हो । किसी भी चीजसे सुख न लें, भूख लगे तो रोटी खा लेनी है, नींद आये तो सो जाना है, पर उसमें सुख नहीं लेना है । ऐसा परहेज रखें तो व्याकुलता पैदा ही जायगी ।

जीव कुछ-न-कुछ असत्‌का आधार बना लेता है, जिससे वह सत्‌से विमुख हो जाता है । अतः असत्‌का उपयोग कर लो; भोजन कर लो, जल पी लो, सो जाओ, सब काम कर लो, पर भीतरमें इनका आधार, विश्वास, आश्रय मत रखो, फिर व्याकुलता पैदा हो जायगी ।

हम सबको इस बातका प्रत्यक्ष ज्ञान है कि शरीर रहनेवाला नहीं है, सम्पत्ति रहनेवाली नहीं है, कुटुम्ब रहनेवाला नहीं है । ऐसा जानते हुए भी इस ज्ञानका निरादर करते हैं–यह बड़ा भारी अवगुण है, बड़ी भारी गलती है । अगर इस ज्ञानका आदर करें तो संसारकी इच्छा मिट जायगी; क्योंकि जो वस्तु स्थिर है ही नहीं, उसकी क्या इच्छा करें ? ‘का मागूँ कछु थिर न रहाई, नैन चल्यो जग जाई ।’ संसारकी इच्छा मिटते ही भगवान्‌का विरह आ जाता है । संसारकी इच्छा, आशा ही भगवान्‌के विरहको रोकनेवाली चीज है ।

मनुष्य जिसको नाशवान् जानता है, फिर भी उसकी आशा रखता है तो यह बहुत बड़ा अपराध करता है । झूठ-कपट करके जालसाजी, बेईमानी करके अपनी असत् भावनाको दृढ़ करता है, तो इससे बढ़कर अनर्थ क्या होगा ? धन है, बेटा-पोता है, बल है, विद्या है, योग्यता है, पद है, अधिकार है, ये कितने दिनसे हैं ? कितने दिन रहेंगे ? इनसे कितने दिन काम चलाओगे ? इनके साथ जितने दिन संयोग है, उसका वियोग होनेवाला है, वह वियोग जल्दी हो, देरीसे हो, कब हो, कब नहीं हो–इसका पता नहीं; पर संयोगका वियोग होगा–इसमें कोई सन्देह नहीं है । जिनका वियोग हो जायगा, उसपर विश्वास कैसे ? जो प्रतिक्षण बिछुड़ रहा है, उसको कबतक निभाओगे ? वह कबतक सहारा देगा ? वह कबतक आपके काम आयेगा ? फिर भी उसपर विश्वास करना अपनी जानकारीका स्वयं निरादर करना है । अपनी जानकारीका अनादर करना बहुत बड़ा अपराध है । अपराध पापोंसे तेज होता है । जो ‘परमात्मा है’–इसको मानता नहीं और ‘संसार है’–इसको मानता है, वह महान् हत्यारा है, पापी है ।

आप जानते है कि संसार नहीं रहेगा, शरीर नहीं रहेगा, फिर भी चाहते है कि इतना सुख ले लें, इतना लाभ ले लें, इस वस्तुको ले लें अर्थात् जानते हुए भी मानते नहीं ! इसमें अनजानपनेका दोष नहीं है, न माननेका दोष है, जो आपको खुद दूर करना पड़ेगा । जानकारीकी कमी होगी तो जानकारलोग बता देंगे, शास्त्र बता देंगे, सन्त-महात्मा बता देंगे, भगवान् बता देंगे, पर जाने हुएको आप नहीं मानेंगे तो इसमें दूसरा कुछ नहीं कर सकेगा । मानना तो आपको ही पड़ेगा, इतना काम आपका खुदका है ।   
     
नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


–‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’पुस्तकसे