।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण नवमी, वि.सं. २०७५ शुक्रवार
शरणागतिका रहस्य
        


केवल एक भगवान्‌के शरण होनेका तात्पर्य है—केवल भगवान्‌ मेरे हैं, अब वे ऐश्वर्य-सम्पन्न हैं तो बड़ी अच्छी बात और कुछ भी ऐश्वर्य नहीं है तो बड़ी अच्छी बात । वे बड़े दयालु हैं तो बड़ी अच्छी बात और बड़े निष्ठुर, कठोर हैं कि उनके समान दुनियामें कोई कठोर है ही नहीं तो बड़ी अच्छी बात । उनका बड़ा भारी प्रभाव है तो बड़ी अच्छी बात और उनमें कोई प्रभाव नहीं है तो बड़ी अच्छी बात । शरणागतमें इन बातोंकी कोई परवाह नहीं होती । उसका तो एक ही भाव रहता है कि भगवान्‌ जैसे भी हैं, हमारे हैं । भगवान्‌की इन बातोंकी परवाह न होनेसे भगवान्‌का ऐश्वर्य, माधुर्य, सौन्दर्य, गुण, प्रभाव आदि चले जायँगे, ऐसी बात नहीं है । पर हम उनकी परवाह नहीं करेंगे तो हमारी असली शरणागति होगी ।

जहाँ गुण, प्रभाव आदिको लेकर भगवान्‌की शरण होते हैं, वहाँ केवल भगवान्‌की शरण नहीं होते, प्रत्युत गुण, प्रभाव आदिकी शरण होते हैं; जैसे—कोई रुपयोंवाले आदमीका आदर करे तो वास्तवमें वह आदर उस आदमीका नहीं, रुपयोंका है । किसी मिनिस्टरका कितना ही आदर किया जाय तो वह आदर उसका नहीं, मिनिस्टरी (पद) का है । किसी बलवान् व्यक्तिका आदर किया जाय तो वह उसके बलका आदर है, उसका खुदका आदर नहीं है । परन्तु अगर कोई केवल व्यक्ति (धनी आदि) का आदर करे तो इससे धनीका धन या मिनिस्टरकी मिनिस्टरी चली जायगी—यह बात नहीं है । वह तो रहेगी ही । ऐसे ही केवल भगवान्‌की शरण होनेसे भगवान्‌के गुण, प्रभाव आदि चले जायँगे—ऐसी बात नहीं है । परन्तु हमारी दृष्टि तो केवल भगवान्‌पर ही रहनी चाहिये; उनके गुण आदिपर नहीं ।

सप्तर्षियोंने जब पार्वतीजीके सामने शिवजीके अनेक अवगुणोंका और विष्णुके अनेक सद्गुणोंका वर्णन करते हुए उन्हें शिवजीका त्याग करनेके लिये कहा तो पार्वतीजीने उन्हें यही उत्तर दिया—

महादेव अवगुन भवन   बिष्नु  सकल  गुन धाम ।
जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम ॥
                                                      (मानस १/८०)

ऐसी ही बात गोपियोंने भी उद्धवजीसे कही थी—

       उधौ ! मन माने की बात ।
       दाख छोहारा छाड़ि अमृतफल बिषकीरा बिष खात ॥
       जो चकोर को दै कपूर कोउ,   तजि अंगार अघात ।
       मधुप करत घर कोरे काठ में, बँधत कमल के पात ॥
       ज्यों पतंग हित जान आपनो,  दीपक  सों लपटात ।
       ‘सूरदास’  जाको  मन  जासों,  ताको  सोइ सुहात ॥

भगवान्‌के प्रभाव आदिकी तरफ देखनेवालेको, उससे प्रेम करनेवालेको मुक्ति, ऐश्वर्य आदि तो मिल जायगा, पर भगवान्‌ नहीं मिल सकते । भगवान्‌के प्रभावकी तरफ न देखनेवाला भगवत्प्रेमी भक्त ही भगवान्‌को पा सकता है । इतना ही नहीं, वह प्रेमी भक्त भगवान्‌को बाँध सकता है, उनकी बिक्री कर सकता है ! भगवान्‌ देखते हैं कि वह मेरेसे प्रेम करता है, मेरे प्रभावकी तरफ देखतातक  नहीं तो भगवान्‌के मनमें उसका बड़ा आदर होता है ।