।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण दशमी, वि.सं. २०७५ शनिवार
शरणागतिका रहस्य
        


शरणागतिका रहस्य क्या है ?—इसको वास्तवमें भगवान् ही जानते हैं । फिर भी अपनी समझमें आयी बात कहनेकी चेष्टा की जाती है; क्योंकि हरेक आदमी जो बात कहता है, उससे वह अपनी बुद्धिका ही परिचय देता है । पाठकोंसे प्रार्थना है कि वे यहाँ आयी बातोंका उलटा अर्थ निकालें; क्योंकि प्रायः लोग किसी तात्त्विक, रहस्यवाली बातको गहराईसे समझे बिना उसका उलटा अर्थ जल्दी ले लेते हैं । इस वास्ते ऐसी बातको कहने-सुननेके पात्र बहुत कम होते हैं ।

भगवान्‌ने गीतामें शरणागतिके विषयमें दो बातें बतायी हैं(मामेकं शरणं व्रज(१८ ।  ६६) अनन्यभावसे केवल मेरी शरणमें जा ( सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत (१५। १९) वह सर्वज्ञ पुरुष सर्वभावसे मेरेको भजता है,’ तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत (१८। ६२) तू सर्वभावसे उस परामात्माकी शरणमें जा तो हम भगवान्‌के शरण कैसे हो जायँ ? केवल एक भगवान्‌के शरण हो जायँ अर्थात् भगवान्‌के गुण, ऐश्वर्य आदिकी तरफ दृष्टि रखें और सर्वभावसे भगवान्‌के शरण हो जायँ अर्थात् साथमें अपनी कोई सांसारिक कामना रखें ।

केवल एक भगवान्‌के शरण होनेका रहस्य यह है कि भगवान्‌के अनन्त गुण हैं, प्रभाव हैं, तत्त्व हैं, रहस्य हैं, महिमा है, लीलाएँ हैं, नाम हैं, धाम हैं; भगवान्‌का अनन्त ऐश्वर्य है, माधुर्य है, सौन्दर्य है‒इन विभूतियोंकी तरफ शरणागत भक्त देखता ही नहीं । उसका यही एक भाव रहता है कि मैं केवल भगवान्‌का हूँ और केवल भगवान् ही मेरे हैं। अगर वह गुण, प्रभाव आदिकी तरफ देखकर भगवान्‌की शरण लेता है तो वास्तवमें वह गुण, प्रभाव आदिके ही शरण हुआ, भगवान्‌के शरण नहीं हुआ । परंतु इन बातोंका उलटा अर्थ लगा लें ।


उलटा अर्थ लगाना क्या है ? भगवान्‌के गुण, प्रभाव, नाम, धाम, ऐश्वर्य, माधुर्य, सौन्दर्य आदिको मानना ही नहीं है, इनकी तरफ जाना ही नहीं है । अब कुछ करना है ही नहीं, भजन करना है, भगवान्‌के गुण, प्रभाव, लीला आदि सुननी है, भगवान्‌के धाममें जाना है‒यह उलटा अर्थ लगाना है । इनका ऐसा अर्थ लगाना महान् अनर्थ करना है ।