।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं. २०७५ बुधवार
शरणागतिका रहस्य
        


गोस्वामी तुलसीदासजी महाराजसे किसीने कहा‘तुम जिन रामललाकी भक्ति करते हो, वे तो बारह कलाके अवतार हैं, पर सूरदासजी जिन भगवान्‌ कृष्णकी भक्ति करते हैं, वे सोलह कलाके अवतार हैं ! यह सुनते ही गोस्वामीजी महाराज उसके चरणोंमें गिर पड़े और बोले‘अहो ! आपने बड़ी भारी कृपा कर दी ! मैं तो रामको दशरथजीके लाडले कुँवर समझकर ही भक्ति करता था । अब पता लगा कि वे बारह कलाके अवतार हैं ! इतने बड़े हैं वे ? आपने आज नयी बात बताकर बड़ा उपकार किया ।’ अब कृष्ण सोलक कलाके अवतार हैंयह बात उन्होंने सुनी ही नहीं, इस तरफ उनका ध्यान ही नहीं गया ।

भगवान्‌के प्रति भक्तोंके अलग-अलग भाव होते हैं । कोई कहता है कि दशरथजीकी गोदमें खेलनेवाले जो रामलला हैं, वे ही हमारे इष्ट हैं‘इष्टदेव मम बालक रामा’ (मानस ७/७५/३); राजाधिराज रामचन्द्रजी नहीं, छोटा-सा रामलला । कोई भक्त कहता है कि लड्डूगोपाल हैं, नन्दके लाला हैं । वे भक्त अपने रामललाको, नन्दलालाको सन्तोंसे आशीर्वाद दिलाते हैं तो भगवान्‌को यह बहुत प्यारा लगता है । तात्पर्य है कि भक्तोंकी दृष्टि भगवान्‌के ऐश्वर्यकी तरफ जाती ही नहीं ।

या ब्रजरस  की  परस  से,   मुकति है चार ।
वा रजको नित गोपिका, डारत डगर बुहार ॥

आँगनकी जिस रजमें कन्हैया खेलते हैं, वह राज कोई ले ले तो उसको चारों प्रकारकी मुक्ति मिल जाय । पर यशोदा मैया उसी रजको बुहारकर बाहर फेंक देती है । मैयाके लिये तो वह कूड़ा-करकट है । अब मुक्ति किसको चाहिये ? मैयाका केवल कन्हैयाकी तरफ ही खयाल है । न तो कन्हैयाके ऐश्वर्यकी तरफ खयाल है और न योग्यताकी तरफ ही खयाल है ।

सन्तोंने कहा है कि अगर भगवान्‌से मिलना हो तो साथमें साथी नहीं होना चाहिये और सामान भी नहीं होना चाहिये अर्थात् साथी और सामानके बिना उनसे मिलो । जब साथी, सहारा साथमें है तो तुम क्या मिले भगवान्‌से ? और मन, बुद्धि, विद्या, धन आदि सामान साथमें बँधा रहेगा तो उसका परदा (व्यवधान) रहेगा । परदेमें मिलन थोड़े ही होता है ? वहाँ तो कपड़ेका भी व्यवधान होता है । कपड़ा भी नहीं, माला भी आड़में आ जाय तो मिलन क्या हुआ ? इस वास्ते साथमें कोई साथी और सामान न हो तो भगवान्‌से जो मिलन होगा, वह बड़ा विलक्षण और दिव्य होगा ।

एक महात्मा खेतमें काम करनेवाला एक ब्रजवासी ग्वाला मिल गया । वह भगवान्‌का भक्त था । महात्माजीने उससे पूछा‘तुम क्या करते हो ?’ उसने कहा‘हम तो अपने लाला कन्हैयाका काम करते हैं ।’ महात्माजीने कहा‘हम भगवान्‌के अनन्य भक्त हैं, तुम क्या हो ?’ उसने कहा‘हम फनन्य भक्त हैं ।’ महात्माजीने पूछा‘फनन्य भक्त क्या होता है ?’ तो उसने पूछा अनन्य भक्त क्या होता है ?’ महात्माजीने कहाअनन्य भक्त वह होता है जो सूर्य, शक्ति, गणेश, ब्रह्मा आदि किसीको भी न माने, केवल हमारे कन्हैयाको ही माने ।’ उसने कहा‘बाबाजी, हम तो इन ससुरोंके नाम भी नहीं जानते कि ये क्या होते हैं, क्या नहीं होते; हमें इनका पता ही नहीं है; तो हम फनन्य हो गये कि नहीं ?’ इस प्रकार ब्रह्म क्या होता है ? आत्मा क्या होती है ? सगुण और निर्गुण क्या होता है ? साकार और निराकार क्या होता है ? इत्यादि बातोंकी तरफ शरणागत भक्तका खयाल ही नहीं होना चाहिये ।


व्रजकी एक बात है । एक सन्त कुएँपर किसीसे बात कर रहे थे कि ब्रह्म है, परमात्मा है, जीवात्मा है आदि । वहाँ एक गोपी जल भरने आयी । उसने कान लगाया कि बाबाजी क्या बात कर रहे हैं । जब वह गोपी दूसरी गोपीसे मिली तो उससे पूछा‘अरी सखी ! यह ब्रह्म क्या होता है ?’ उसने कहा‘हमारे लालाका ही कोई अड़ोसी-पड़ोसी, सगा-सम्बन्धी होगा ! हमलोग तो जानती नहीं सखी ! ये लोग उसीकी धुनमें लगे हैं न ? इस वास्ते सब जानते हैं । हमारे तो एक नन्दके लाला ही हैं । कोई काम हो तो नन्दबाबासे कह देंगे, गिरिराजसे कह देंगे कि महाराज ! आप कृपा करो । कन्हैया तो भोला-भला है, वह क्या समझेगा और क्या करेगा ? कन्हैयासे क्या मिलेगा ? अरी सखी ! वह कन्हैया हमारा है, और क्या मिलेगा ?’ हम भी अकेले हैं और वह कन्हैया भी अकेला है । हमारे पास भी कुछ सामान नहीं और उसके पास भी कुछ सामान नहीं, बिलकुल नंग-धड़ंग बाबा‘नगन मूरति बाल-गोपालकी, कतरनी बरनी जग जालकी ।’ अब ऐसे कन्हैयासे क्या मिलेगा ।