।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण नवमी, वि.सं. २०७६ बुधवार
           वास्तविक गुरु
        

वास्तविक गुरु वह होता है, जिसमें केवल चेलेके कल्याणकी चिन्ता होती है । जिसके हृदयमें हमारे कल्याणकी चिन्ता ही नहीं है, वह हमारा गुरु कैसे हुआ ? जो हृदयसे हमारा कल्याण चाहता है, वही हमारा वास्तविक गुरु है, चाहे हम उसको गुरु मानें या न मानें और वह गुरु बने या न बने । उसमें यह इच्छा नहीं होती कि मैं गुरु बन जाऊँ, दूसरे मेरेको गुरु मान लें, मेरे चेले बन जायँ । जिसके मनमें धनकी इच्छा होती है, वह धनदास होता है । ऐसे ही जिसके मनमें चेलेकी इच्छा होती है, वह चेलादास होता है । जिसके मनमें गुरु बननेकी इच्छा है, वह दूसरेका कल्याण नहीं कर सकता । जो चेलेसे रुपये चाहता है, वह गुरु नहीं होता, प्रत्युत पोता-चेला होता है । कारण कि चेलेके पास रुपये हैं तो उसका चेला हुआ रुपया और रुपयेका चेला हुआ गुरु तो वह गुरु वास्तवमें पोता-चेला ही हुआ ! विचार करें, जो आपसे कुछ भी चाहता है, वह क्या आपका गुरु हो सकता है ? नहीं हो सकता । जो आपसे कुछ भी धन चाहता है, मान-बड़ाई चाहता है, आदर चाहता है, वह आपका चेला होता है, गुरु नहीं होता । सच्‍चे महात्माको दुनियाकी गरज नहीं होती, प्रत्युत दुनियाको ही उसकी गरज होती है । जिसको किसीकी भी गरज नहीं होती, वही वास्तविक गुरु होता है ।

 कबीर जोगी जगत गुरु,  तजै  जगत की आस ।
 जो जग की आसा करै तो जगत गुरु वह दास ॥

         जो सच्‍चे सन्त-महात्मा होते हैं, उनको गुरु बननेका शौक नहीं होता, प्रत्युत दुनियाके उद्धारका शौक होता है । उनमें दुनियाके उद्धारकी सच्‍ची लगन होती है । मैं भी अच्छे सन्त-महात्माओंकी खोजमें रहा हूँ और मेरेको अच्छे सन्त-महात्मा मिले भी हैं । परन्तु उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि तुम चेला बन जाओ तो कल्याण हो जायगा । जिनको गुरु बननेका शौक है, वही ऐसा प्रचार करते हैं कि गुरु बनाना बहुत जरूरी है, बिना गुरुके मुक्ति नहीं होती, आदि-आदि ।

         कोई वर्तमान मनुष्य ही गुरु होना चाहिये‒ऐसा कोई विधान नहीं है । श्रीशुकदेवजी महाराज हजारों वर्ष पहले हुए थे, पर उन्होंने चरणदासजी महाराजको दीक्षा दी ! सच्‍चे शिष्यको गुरु अपने-आप दीक्षा देता है । कारण कि चेला सच्‍चा होता है तो उसके लिये गुरुको ढूँढ़नेकी आवश्यकता नहीं होती, प्रत्युत गुरु अपने-आप मिलता है । च्‍ची लगनवालेको सच्‍चा महात्मा मिल जाता है‒

जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥

                                  (मानस, बालकाण्ड २५९/३)