।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ शुक्ल एकादशी, वि.सं. २०७६ शुक्रवार
         श्रीहरिशयनी एकादशी-व्रत (सबका)
              सुगम साधन
        

बिलकुल सच्‍ची बात है कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई’ । इसे माननेमें क्या जोर आता है ? मानना तो आपको आता ही है; जैसे‒आप किसीको अपना मित्र, गुरु आदि मान लेते हैं । इसी प्रकार न मानना भी आपको आता है; जैसे‒पहले आप अपनेको कुँआरा मानते थे, पर विवाह हो जानेपर अपनेको कुँआरा न मानकर विवाहित मानने लग जाते हैं । यदि आप गृहस्थ छोड़कर साधु बन जाते हैं तो घर, परिवारको अपना मानना छोड़ देते हैं और गुरु महाराजको अपना मान लेते हैं । इसलिये मानना और न मानना‒दोनों आपको आते हैं । मानने और न माननेकी विद्या सभीको आती है । अब इस विद्याको केवल भगवान्‌में लगाना है, संसारमें नहीं ।

हमारेसे गलती यह होती है कि सुनते समय तो मान लेते हैं, पर फिर उसे उड़ा देते हैं और जो बात सच्‍ची नहीं है, उसे सच्‍ची मानने लग जाते हैं । एक और गलतीकी बात यह है कि भाई-बहन कहते हैं कि इस बातको हम भूल जाते हैं । वास्तवमें यदि आपने इस बातको दृढ़तासे मान लिया है, तो फिर भले ही याद न रहे । बिना याद किये आप मानते हैं कि हम वृन्दावनमें है, तो किसी भाई-बहनने ‘मैं वृन्दावनमें हूँ’‒इसकी एक भी माला फेरी है क्या ? एक बार आपने इसे मान लिया, फिर इसे बार-बार याद रखते हो क्या ? इसमें सन्देह होता है क्या ? जब कभी कोई पूछे तो तुरन्त कह देते हो कि हम तो वृन्दावनमें हैं । इस तरह बिना याद किये भी आपके भीतर बात रहती है । इसकी भूल तो तब मानी जायगी, जब आप यह मानने लग जायँ कि मैं तो हरिद्वारमें हूँ ! अतः याद न रहनेको मैं भूल नहीं मानता हूँ । ‘मैं भगवान्‌का हूँ’‒यह याद न रहे तो यह भूल नहीं है; परन्तु ‘मैं भगवान्‌का नहीं हूँ, मैं तो संसारका हूँ’‒यह मान लेना भूल है ।

एक बार सच्‍चे हृदयसे अपनेको भगवान्‌का मान लेनेके बाद फिर चाहे बिलकुल याद मत रखो । अब तो याद रखना है भगवान्‌का नाम । भगवान्‌के नामक जप करो, स्मरण करो, कीर्तन करो, उनकी लीलाओंका ध्यान करो, उनके स्वरूपका चिन्तन करो‒ये बातें करनेकी हैं । भगवान्‌को तो एक बार अपना मानकर छोड़ दो । हम भगवान्‌के हैं‒इसमें सन्देह मत करो, चाहे हमारे माननेमें आये या नहीं आये, उसका अनुभव हो चाहे नहीं हो, कोई परवाह नहीं ।


बहुत-से लोग कह देते हैं कि तुम्हारे जीवनमें क्या फर्क पड़ा ? फर्क चाहे कुछ न पड़े । न नापमें, न तौलमें, न रंगमें, न ढंगमें, कुछ फर्क न पड़े तो कोई बात नहीं ! परन्तु ‘हम तो मान नहीं सकते, हमें तो याद नहीं रहता, हम तो योग्य नहीं हैं, हम तो अधिकारी नहीं हैं, हम तो पात्र नहीं हैं, हमें तो गुरु नहीं मिले, हमें तो सन्त नहीं मिले; समय ठीक नहीं है, कलियुगका समय है, वायुमण्डल ठीक नहीं है, संग अच्छा नहीं है’‒इन बातोंको लेकर इस बातको रद्दी मत करो । तरह-तरहकी युक्ति लगाकर आप इस बातको रद्दी करते रहोगे तो सिद्धि नहीं होगी । परन्तु इस बातको रद्दी नहीं करोगे तो सिद्धि हो ही जायगी । यह सिद्धि कुछ दिनोंमें भी हो सकती है, महीनोंमें हो सकती है, वर्ष भी लग सकते हैं । संसारका सुख लेते रहोगे तो बहुत समय लगेगा, पर अन्तमें सिद्धि होकर रहेगी ।