।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ शुक्ल दशमी, वि.सं. २०७६ गुरुवार
                   एकादशी-व्रत कल है
                   प्रश्नोत्तर
(शिखा धारणकी आवश्यकताके सम्बन्धित)
        

यदि सत्तर वर्षकी अवस्थाके बाद (वृद्धावस्थामें) बाल झड़ जानेके कारण शिखा न रहे तो यथासम्भव चारों ओर बचे हुए बालोंसे शिखा बनाकर नित्यकर्म करता रहे । यदि बाल बिलकुल न हों तो कुशा आदिकी शिखा रखकर नित्यकर्म करे, पर शिखाशून्य कभी न रहे‒

सप्तत्यूर्ध्वं तु चेत्तस्याः  पूर्वतः पृष्ठतोऽपि वा ।
पाश्वर्तः परितो वापि  समुद्भूतैश्च रोमभिः ॥
शिखा  कार्या   प्रयत्नेन   न   चेन्नैवोपपद्यते ।
तत्स्थाने सर्वशून्ये तु  परितो वापि किं पुनः ॥
ब्राह्मणसूचनायैवं    तानि लोमानि  धारयेत् ।
अन्यथा  न  भवेदेव   तथा तस्मात्समाचरेत् ॥
                                      (आंगिरसस्मृति ६१-६३)

‘अखिल भारतीय पण्डित महापरिषद्’ (वाराणसी) ने शिखा रखनेके निम्न लाभ बताये हैं‒

       1)   शिखा रखने तथा उसके नियमोंका यथावत् पालन करनेसे मनुष्यको सद्बुद्धि, सद्विचार आदिकी प्राप्ति होती है ।
        2)   शिखा रखनेसे आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है ।
        3)   शिखा रखनेसे मनुष्य धार्मिक, सात्त्विक और संयमी बनता है ।
       4)   शिखा रखनेसे मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्योंमें सफलता प्राप्त करता है ।
       5)   शिखा रखनेसे मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि क्रियाओंको ठीक-ठीक कर सकता है ।
        6)   शिखा रखनेसे सभी देवता मनुष्यकी रक्षा करते हैं ।
        7)   शिखा रखनेसे मनुष्यकी नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है ।
        8)   शिखा रखनेसे मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है ।

प्रश्न‒चोटी रखनेसे शर्म आती है, वह कैसे छूटे ?

उत्तर‒आश्चर्यकी बात है कि व्यापर आदिमें बेईमानी, झूठ-कपट करनेमें शर्म नहीं आती, गर्भपात आदि पाप करनेमें शर्म नहीं आती, चोरी, विश्वासघात आदि करते समय शर्म नहीं आती, पर चोटी रखनेमें शर्म आती है ! आपकी शर्म ठीक है या भगवान्‌ और सन्तोंकी बात मानना उनको प्रसन्न करना ठीक है ? आप चोटी रखो तो आरम्भमें शर्म आयेगी, पर पीछे सब ठीक हो जायगा ।

प्रश्न‒चोटी देखकर लोग हँसी उड़ाते हैं, कैसे बचें ?

उत्तर‒लोग हँसी उड़ायें, पागल कहें तो उसको सह लो, पर धर्मका त्याग मत करो । आपका धर्म आपके साथ चलेगा, हँसी-दिल्लगी आपके साथ नहीं चलेगी । लोगोंकी हँसीसे आप डरों मत । लोग पहले हँसी उड़ायेंगे, पर बादमें आदर करने लगेंगे कि यह अपने धर्मका पक्‍का आदमी है । एक शंकरानन्द नामके हमारे प्रेमी सज्जन थे । वे बहुत पढ़े-लिखे थे । उन्होंने मेरेको बताया कि मैं पढ़नेके लिये जर्मनी गया । वहाँ मैं धोती पहना करता था । मेरी वेशभूषा देखकर पहले तो वहाँके लोगोंने मेरी हँसी उड़ायी, पर बादमें सब मेरा विशेष आदर करने लग गये कि यह ईमानदार आदमी है, सच्‍चा धर्मात्मा आदमी है । इसलिये अपने धर्मका पालन निधड़क होकर करो, इसमें डर किस बातका ?

एक कहानी है । एक आदमीकी किसी कारणसे नाक कट गयी । उसके साथीने पूछा तो वह बोला कि दोनों आँखोंके बीचमें नाक आड़े आती है, इसलिये ब्रह्मके दर्शन नहीं होते । अगर बीचमें नाक न रहे तो दोनों आँखोंकी दृष्टि मिलनेसे साक्षात् ब्रह्मके दर्शन होते हैं ! ऐसा सुनकर उसके साथीने भी अपनी नाक कटवा ली । जब उसको ब्रह्मके दर्शन नहीं हुए तो उसने साथीसे कहा कि नाक कटवानेसे मेरेको दर्शन नहीं हुए ? वह साथी बोला‒ ‘चुप रह, हल्ला मत कर ! तेरेसे कोई पूछे तो यही कहना कि मेरेको ब्रह्मके दर्शन होते हैं ।’ धीरे-धीरे यह बात फैलती गयी । दूसरोंके कहनेसे, एक-दूसरेको देखकर नाक तो सबने कटवा ली, पर ब्रह्मके दर्शन किसीको नहीं हुए । एक पूरा समुदाय कटी नाकका हो गया ! अब कोई नाकवाला आदमी उनके बीच आता तो वे सब मिलकर हँसी उड़ाते कि देखो, नक्कू आ गया ! नक्कू आ गया ! इसी तरह चोटीकटिया लोग आज चोटीवालेकी हँसी उड़ाते हैं । अतः उनकी हँसीकी परवाह न करके अपने धर्मका पालन करना चाहिये ।

न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्
धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः ।
नित्यो धर्मः सुखदुःखे त्वनित्ये
जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः ॥
                                                   (महाभारत स्वर्गा ५/६३)

‘कामनासे, भयसे, लोभसे अथवा प्राण बचानेके लिये भी धर्मका त्याग न करे । धर्म नित्य है और सुख-दुःख अनित्य हैं । इसी प्रकार जीवात्मा नित्य है और उसके बन्धनका हेतु (राग) अनित्य है ।’

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘शिखा (चोटी) धारणकी आवश्यकता’ पुस्तकसे