।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं. २०७६ रविवार
              सुगम साधन
        

मेरी दृष्टिमें जो महापुरुष है, इनसे भी पूछा है । उन्होंने कहा है कि जो मनुष्य परमात्माको अपना मान लेता है, उसे जनानेकी जिम्मेवारी परमात्मापर आ जाती है; क्योंकि परमात्मा ही जना सकते हैं, हम नहीं जान सकते । जहाँ हम असमर्थ होते हैं, वहाँ भगवान्‌की सामर्थ्य काम करती है । कितनी बढ़िया बात है कि ‘मैं भगवान्‌का  हूँ और भगवान्‌ मेरे हैं, मैं संसारका नहीं और संसार मेरा नहीं,‒यह माननेकी योग्यता आपमें है ! आपमें जितनी योग्यता है, उतनी आप लगा दें । जो नहीं है, उसकी पूर्ति भगवान्‌ करेंगे‒ ‘सुने री मैंने निरबलके बल राम ।’ जितने अंशमें आप निर्बल हैं, उतने अंशमें भगवान्‌का बल काम करता है । परन्तु जितने अंशमें आप सबल हैं, उतना बल आप नहीं लगाते तो इसमें दोष आपका है, इसकी जिम्मेवारी भगवान्‌पर नहीं है । किसीको तो आप अपना मान लेते हैं और किसीको अपना नहीं मानते‒इस योग्यताको आप भगवान्‌में क्यों नहीं लगाते ? आप जितना कर सकते, उतनेकी ही आशा भगवान्‌ आपसे करते हैं । जो आप नहीं कर सकते हैं, उसकी आशा भगवान्‌ आपसे नहीं करते । एक छोटे बच्‍चेसे क्या आप आशा करते हैं कि वह एक गेहूँका बोरा उठा लाये ? आप उतनी ही आशा करते हैं, जितना बच्‍चा कर सकता है । फिर भगवान्‌ इतने भी ईमानदार नहीं है क्या ? जो आप नहीं मान सकते, उसे आप मान लो‒ऐसा भगवान्‌ कहेंगे क्या ? जो आप मान सकते हो, उतना मान लो, बस । यह जो साधन आज आपको बताया है, यह इतना सुगम और सरल है कि हरेक कर सकता है । पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़ हो, भाई हो या बहन हो, सदाचारी हो या दुराचारी हो, सद्गुणी हो या दुर्गुणी हो, सज्जन हो या दुष्ट हो, कैसा ही क्यों न हो, इसको मान सकता है ।

पतिव्रताके लिये कहा गया है‒

एकइ   धर्म   एक  बरत  नेमा ।
कायँ बचन मन पति पद प्रेमा ॥
                                  (मानस, अरण्य ५/१०)


ये मेरे पति हैं‒यह मान्यता दृढ़ होनेसे पति चाहे जैसा हो, वह पतिव्रता हो जायगी । रावण एक विशेष महात्मा था क्या ? परन्तु मन्दोदरीने अपने पातिव्रत-धर्मका ठीक पालन किया, जिसके प्रभावसे वह रामजीकी महिमा जानती थी, जबकि रावण कहनेपर भी नहीं मानता था ! उसमें इतना ज्ञान कहाँसे आया ? यह ज्ञान आया पातिव्रत-धर्मसे । क्या भगवान्‌ कह सकते हैं कि तुम्हारा पति सदाचारी नहीं है; अतः तुम्हारा कल्याण नहीं होगा ? नहीं कह सकते । वह सदाचारी नहीं है तो हम क्या करें ? हमने अपने पातिव्रत-धर्मका ठीक पालन किया है तो उसका पूरा माहात्म्य भगवान्‌ देंगे‒ ‘बिनु श्रम नारि परम गति लहई’ (मानस, अरण्य ५/१८) । परमगति पानेकी जिम्मेवारी उसपर नहीं है । इसकी जिम्मेवारी है‒शास्त्रोंपर, सन्तोंपर, भगवान्‌पर । वह पातिव्रत-धर्मका पालन करती है तो ऋषि-मुनियोंकी, सन्त-महात्माओंकी, भगवान्‌की आज्ञाका पालन कर रही है; अतः उनको उसका कल्याण करना पड़ेगा । पतिमें योग्यता नहीं है तो उसका क्या दोष ? माता-पिताने विवाह कर दिया तो वह उसका पति हो गया । उसका दोष तो तब होगा, जब वह अपने पातिव्रत-धर्मका पालन न करे । ऐसे ही ‘मैं भगवान्‌का हूँ, भगवान्‌ मेरे हैं’‒इस बातको आप न मानें तो यह आपका दोष है । परन्तु यदि आप भीतरसे मानना चाहते हों और माना जाये नहीं, तो कोई परवाह नहीं । अपनी शक्ति पूरी लगा दें । कम-से-कम उलटी मान्यता मत करें, इस बातको रद्दी मत करें । यह आपको मार्मिक बात बतायी है ।