।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं. २०७६ गुरुवार
                   अनन्तचतुर्दशी-व्रत
             गुरु-आराधना



हम जिस मनुष्यको महात्मा मानते हैं, वह अपने शरीरसे सर्वथा सम्बन्ध-विच्छेद हो जानेसे ही महात्मा है, शरीरसे सम्बन्ध रहनेके कारण नहीं । महात्मा कभी शरीरमें सीमित होता ही नहीं । अतः उनके अविनाशी सिद्धान्तों और वचनोंपर ही श्रद्धा होनी चाहिये, नाशवान्‌ शरीर या नामपर नहीं । नाशवान्‌ शरीर और नाममें तो मोह होता है, श्रद्धा नहीं । अतः भगवान्‌के अविनाशी, दिव्य, अलौकिक विग्रहकी पूजा, ध्यान आदिको छोड़कर नाशवान्‌, भौतिक शरीरोंकी पूजा, ध्यान आदि करनेसे न केवल अपना जीवन निरर्थक होता है, प्रत्युत अपने साथ महान्‌ धोखा भी होता है ।

आजकलके जमानेमें तो गुरुका पूजन, ध्यान आदि करनेमें विशेष सावधान रहना चाहिये; क्योंकि इसमें धोखा होनेकी बहुत सम्भावना है । अपनी पूजा करानेवाले, अपने नामका जप एवं शरीरका ध्यान करानेवाले, अपनी जूठन, चरणरज, चरणामृत देनेवालेसे जहाँतक बने, दूर रहना चाहिये, बचना चाहिये । कारण कि इसमें ठगे जानेकी सम्भावना है, जैसे‒कपटमुनिसे प्रतापभानु, साधुवेशधारी रावणसे सीताजी और कालनेमिसे हनुमान्‌जी ठगे गये थे !


जो साधक हैं, पारमार्थिक मार्गपर चलनेवाले हैं, उनको अपनी पूजा आदि नहीं करवानी चाहिये; क्योंकि इससे तपोबल क्षीण होता है और पारमार्थिक उन्नतिमें बाधा लगती है । अतः साधकोंको इन बातोंसे बचना चाहिये, सावधान रहना चाहिये ।