गीतामें कर्मयोग, ज्ञानयोग
और भक्तियोग—इन तीनोंमें ही ममता और अहंताके त्यागकी बात आयी है—
(१) निर्ममो
निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥ (२/७१)
(२) अहंकारं
बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् ।
विमुच्य
निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥ (१८/५३)
(३) निर्ममो
निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ (१२/१३)
ये मेरे नहीं हैं, संसारके
हैं—इस प्रकार संसारके माननेसे ‘कर्मयोग’ हो
जायगा । ये मेरे नहीं हैं, प्रकृतिमात्रके हैं—इस
प्रकार प्रकृतिके माननेसे ‘ज्ञानयोग’ हो
जायगा । ये मेरे नहीं हैं, ठाकुरजीके हैं—इस
प्रकार भगवान्के माननेसे ‘भक्तियोग’ हो
जायगा । ये मेरे हैं—इस प्रकार माननेसे ‘जन्म-मरणयोग’ हो
जायगा अर्थात् जन्मो,
फिर मरो, मरकर फिर जन्म लो—इस तरह जन्म-मरणके साथ सम्बन्ध हो जायगा । आपकी ममता जहाँ रह जायगी, वहीं जन्म होगा । ममता नहीं रहेगी तो जन्म-मरणके
चक्रसे मुक्ति हो जायगी । कितनी सरल और बढ़िया बात है !
श्रोता—बढ़िया
बात तो है, पर होती नहीं !
स्वामीजी—होती नहीं, ऐसी बात नहीं है । आप इसको आज,
अभी मान लें तो अभी हो जायगी । आप यह तो मानते ही हैं कि
मैं धोखा नहीं देता हूँ और सन्तोंकी, शास्त्रोंकी, गीताजीकी बात कहता हूँ । बड़ी-बूढी माताओंसे पूछो । जब वे छोटी
बच्ची थीं, तब वे अपने पिताके घरको अपना घर मानती थीं । उस घरमें ममता थी
कि यह मेरा घर है । परन्तु विवाह होनेके बाद वे पतिके घरको अपना घर मानने लगीं । ससुरालवाले
अपने हो गये । अतः मेरापन बदलना तो आपको आता ही है । ससुरालमें रहते-रहते वह इतनी रच-पच
जाती है कि उसको यह ख्याल ही नहीं आता कि मैं कभी इस घरकी नहीं थीं । परिवार फ़ैल जाता
है, तो बेटे-पोते हो जाते हैं । पोतेका विवाह होता है । और उसकी बहू आकर घरमें खटपट
मचाती है तो वह बूढी दादी माँ कहती है कि इस परायी जायी छोकरीने मेरा घर बिगाड दिया—‘घर खोयो परायी जायी !’
अब उस बूढी माँसे कोई पूछे कि यह तो परायी जायी है,
पर आप यहीं जन्मी थीं क्या ?
उसको याद ही नहीं कि मैं तो परायी जायी हूँ ! वह यही मानती है
कि मैं तो यहाँकी ही हूँ । बोलो, अपनापन बदल गया कि नहीं ?
वह परायी जायी छोकरी भी एक दिन कहेगी कि यह मेरा घर है । आज
आप उसको भले ही परायी जायी कहा दो, पर यह घर भी उसका हो जायगा । माताओ ! जो घर अपना नहीं था,
वह घर भी अपना हो गया,
फिर भगवान् का घर तो पहलेसे ही अपना है !
भगवान् कहते हैं—
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।
हम सब-के-सब उस परमात्माके अंश हैं, उस प्रभुके लाडले पुत्र हैं । हम चाहे
कपूत हों या सपूत, पर हैं प्रभुके ही ।
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