।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
   मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं. २०७६ रविवार
                अमृत-बिन्दु


संसारसे सर्वथा राग हटते ही भगवान्‌में अनुराग (प्रेम) हो जाता है ।
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जो चीज अपनी होती है, वह सदा अपनेको प्यारी लगती है । अतः एकमात्र भगवान्‌को अपना मान लेनेपर भगवान्‌में प्रेम प्रकट हो  जाता है ।
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कितने आश्चर्यकी बात है कि जो नित्य-निरन्तर विद्यमान रहता है, वह (परमात्मा) तो प्रिय नहीं लगता, पर जो नित्य-निरन्तर बदल रहा है, वह (संसार) प्रिय लगता है ।
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जबतक संसारमें आसक्ति है, तबतक भगवान्‌में असली प्रेम नहीं है ।
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संसारकी सुखासक्ति ही भगवत्प्रेममें खास बाधक है । अगर सुखासक्तिका त्याग कर दिया जाय तो भगवान्‌में प्रेम स्वतः जाग्रत्‌ हो जायगा ।
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जबतक नाशवान्‌की तरफ खिंचाव रहेगा, तबतक साधन करते हुए भी अविनाशीकी तरफ खिंचाव (प्रेम) और उसका अनुभव नहीं होगा ।
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भगवान्‌में अनन्यप्रेमका नाम राधातत्त्व है । जबतक संसारमें आकर्षण रहता है, तबतक राधातत्त्व अनुभवमें नहीं आता ।
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भगवान्‌में प्रेम होनेके समान कोई भजन नहीं है ।
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जबतक साधक अपने मनकी बात पूरी करना चाहेगा, तबतक उसका न सगुणमें प्रेम होगा, न निर्गुणमें ।
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‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे