।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
   मार्गशीर्ष कृष्ण  द्वादशी, वि.सं. २०७६ शनिवार
            उत्पन्ना एकादशी-व्रत (वैष्णव)
     निरन्तर भगवत्स्मृति कैसे हो ?


प्रश्न‒निरन्तर भगवत्स्मरणके लिये नाम-जपकी आवश्यकता है क्या ?

उत्तर-कलियुगमें नाम सर्वोपरि साधन है । नाम-जपसे सब काम स्वतः ही ठीक बन जाते हैं । ‘नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु’ (मानस १/२६) । रामजीका नाम-रूपी कल्पतरु कलियुगमें बहुत कल्याण करता है । कल्पतरुसे जो चाहे सो ले लो । निरन्तर नाम-जप करनेसे इसमें रस आने लगता है । मिठाई खानेवाला ही उसके रसको जानता है । ऐसे ही नामको लेनेवाला ही नामके रसको जान सकता है ।

नाम-जपसे अत्यधिक लाभ होता है । नाम-जपसे विषय-वासना दूर होती है; पाप नष्ट होते हैं, विकार दूर होते हैं; शान्ति मिलती है और भक्ति बढ़ती है । नाम-जपसे असम्भव भी सम्भव हो सकता है । जब मनमें चिन्ता आवे तो आधा घण्टा, एक घण्टा नाम जपो, चिन्ता मिट जायगी। नाम-जप करनेवाले सज्जन नाममय हो जाते हैं ।

नाम-जप तो असली धन है जो साथ जाता है । इसलिये कहा है‒‘धनवन्ता सोई जानिये जाके राम नाम धन होय’ । नामकी कीमत कोई आँक नहीं सकता । यह अमुल्य रत्न है । ‘पायो री मैंने राम रतन धन पायो’ । नामको सगुण और निर्गुणसे भी बड़ा बताया है ।

कहौं कहाँ लगि   नाम बड़ाई ।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
                        (मानस १/२५/४)

‘नामके गुण तो स्वयं भगवान्‌ भी गाना चाहें तो नहीं गा सकते ।’ नामकी महिमा अपार है, असीम है और अनन्त है ।

प्रश्न‒नाम-जपकी खास विधि क्या है ?

उत्तर‒भगवान्‌के स्वरूपका ध्यान करते हुए, अर्थको समझते हुए, भगवान्‌के होकर नामक जप करें । नाम-जप गुप्तरूपसे और निष्काम भावसे करें । नाम-जप निरन्तर करते रहें । नामको भूल न जायें, इसके लिये एक उपाय है‒मन-ही-मन भगवान्‌को प्रणाम करके उनसे प्रार्थना करें कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं, हे प्रभो ! आपको मैं भूलूँ नहीं । ऐसा थोड़ी-थोड़ी देरमें कहते रहें ।

एक बात और है, उसपर ध्यान दें । जब कभी आपको भगवान्‌ अचानक याद आ जायँ या भगवान्‌का नाम अचानक याद आ जाय तो उस समय समझो कि भगवान्‌ मेरेको याद करते हैं । ऐसा समझकर प्रसन्न हो जाओ कि मैं निहाल हो गया; मेरेको भगवान्‌ने याद कर लिया । अब और काम पीछे करेंगे; उस समय नाम-जप व कीर्तनमें लग जाओ । ऐसा करनेसे भक्ति बहुत ज्यादा बढ़ती है ।

मालासे जप करना लाभदायक है । भगवान्‌को याद करनेके लिये माला एक शस्त्र है । माला फेरनी चाहिये । जितना नियम है उतना जप मालासे पूरा हो जाता है । उसमें कमी न आ जाय इसलिये मालाकी आवश्यकता है । बिना मालाके अगर निरन्तर जप होता है तो मालाकी कोई जरूरत नहीं है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे