।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  मार्गशीर्ष अमावस्या, वि.सं.२०७६ मंगलवार
                  भौमवती अमावस्या
                अमृत-बिन्दु


प्रेम मुक्तिसे भी आगेकी चीज है । मुक्तितक तो जीव रसका अनुभव करनेवाला होता है, पर प्रेममें वह रसका दाता बन जाता है ।
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ज्ञानमार्गमें दुःख, बन्धन मिट जाता है, और स्वरूपमें स्थिति हो जाती है, पर मिलता कुछ नहीं । परन्तु भक्तिमार्गमें प्रतिक्षण वर्धमान प्रेम मिलता है ।
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ज्ञानके बिना प्रेम मोहमें चला जाता है और प्रेमके बिना ज्ञान शून्यतामें चला जाता है ।
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जिसके भीतर भक्तिके संस्कार हैं और कृपाका आश्रय है, उसको मुक्तिमें सन्तोष नहीं होता । भगवान्‌की कृपा उसके मुक्तिके रसको फीका करके प्रेमका अनन्तरस प्रदान कर देती है ।
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अपने मतका आग्रह और दूसरे मतकी उपेक्षा, खण्डन, अनादर न करनेसे मुक्तिके बाद भक्ति (प्रेम) की प्राप्ति स्वतः होती है ।
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भोगेच्छाका अन्त होता है और मुमुक्षा अथवा जिज्ञासाकी पूर्ति होती है, पर प्रेम-पिपासाका न तो अन्त होता है और न पूर्ति ही होती है, प्रत्युत वह प्रतिक्षण बढ़ती ही रहती है ।
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संसारमें तो आकर्षण और विकर्षण (रुचि-अरुचि) दोनों होते हैं, पर परमात्मामें आकर्षण-ही-आकर्षण होता है, विकर्षण होता ही नहीं, यदि होता है तो वास्तवमें आकर्षण हुआ ही नहीं ।
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जैसे सांसारिक दृष्टिसे लोभारूप आकर्षणके बिना धनका विशेष महत्त्व नहीं है, ऐसे ही प्रेमके बिना ज्ञानका विशेष महत्त्व नहीं है, उसमें शून्यवाद आ सकता है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे