।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल नवमी, वि.सं. २०७६ मंगलवार
                        अक्षयनवमी
           वास्तविक आरोग्य


कुपथ्यजन्य रोगके असाध्य होनेमें कई कारण हो सकते हैं; जैसे‒१. रोग बहुत पुराना हो जाय, २. रोगी कुपथ्यका सेवन कर ले, ३. जिन जड़ी-बूटियोंसे दवाइयाँ बनी हों, वे पुरानी हों, ४. रोगीका वैद्यपर और औषधपर विश्वास न हो, ५. रोगीका खान-पान, आहार-विहार आदिमें संयम न हो, आदि-आदि ।

जो रोगी बार-बार तरह-तरहकी दवाइयाँ लेता रहता है, दवाइयोंका अधिक मात्रामें सेवन करता है, उसको दवाइयोंसे विशेष लाभ नहीं होता; क्योंकि दवाइयाँ उसके लिये आहाररूप हो जाती हैं । गाँवोंमें रहनेवाले प्रायः दवाई नहीं लेते, पर कभी वे दवाई लें तो उनपर दवाई बहुत जल्दी असर करती है । जो लोग मदिरा, चाय आदि नशीली वस्तुओंका सेवन करते हैं, उनकी आँतें खराब हो जाती हैं, जिससे उनके शरीरपर दवाइयाँ असर नहीं करतीं । जो व्यक्ति धर्मशास्त्र और आयुर्वेदशास्त्रके विरुद्ध खान-पान, आहार-विहार करता है, उसका कुपथ्यजन्य रोग दवाइयोंका सेवन करनेपर भी दूर नहीं होता ।

अधिकतर रोग कुपथ्यसे पैदा होते हैं । कुपथ्यजन्य रोगसे शरीरकी ज्यादा क्षति होती है । कुपथ्यका त्याग और पथ्यका सेवन दवाइयोंसे भी बढ़कर रोग दूर करनेवाला है । इसलिये कहा गया है‒

पथ्ये सति गदार्त्तस्य किमौषधनिषेवणैः ।
पथ्येऽसति गदार्त्तस्य किमौषधनिषेवणैः ॥
                                           (वैद्यजीवनम् १०)

‘पथ्यसे रहनेपर रोगी व्यक्तिको औषधके सेवनसे क्या प्रयोजन ? और पथ्यसे न रहनेपर रोगी व्यक्तिको औषधके सेवनसे क्या प्रयोजन ?’ तात्पर्य है कि पथ्यसे रहनेपर रोगी व्यक्तिका रोग बिना औषध लिये मिट जाता है और पथ्यसे न रहनेपर उसका रोग औषध लेनेपर भी नहीं मिटता ।

रोगीके साथ खाने-पीनेसे, रोगीके पात्रमें भोजन करनेसे, रोगीके आसनपर बैठनेसे, रोगीके वस्त्र आदिको काममें लेनेसे तथा व्यभिचार आदिसे ऐसे संकर (मिश्रित) रोग हो जाते हैं, जिनकी पहचान करना बड़ा कठिन हो जाता है । जब रोगकी पहचान ही नहीं होगी तो फिर वैद्यकी दवाई क्या काम करेगी ?

युगके प्रभावसे जड़ी-बूटियोंकी शक्ति क्षीण हो गयी है । कई दिव्य जड़ी-बूटियाँ लुप्त हो गयी हैं । दवाइयाँ बनानेवाले ठीक ढंगसे दवाइयाँ नहीं बनाते और पैसोंके लोभमें आकर जिस दवाईमें जो चीज मिलानी चाहिये, उसको न मिलाकर दूसरी सस्ती चीज मिला देते हैं । अतः वह दवाई वैसी गुणकारी नहीं होती ।


जो रोगोंके कारण दुःखी रहता है, उसपर रोग ज्यादा असर करते हैं । परन्तु जो भजन-स्मरण करता है, संयमसे रहता है, उसपर रोग ज्यादा असर नहीं करते । चित्तकी प्रसन्नतासे उसके रोग नष्ट हो जाते हैं ।