अबतक मैंने जो कुछ सुना, पढ़ा और समझा है, उसका सार बताता
हूँ । वह सार बात कोई नयी बात नहीं है, सबके अनुभवकी बात है । मनुष्यका स्वभाव है
कि वह सदा नयी-नयी बात चाहता है । वास्तवमें नयी बात वही
है, जो सदा रहनेवाली है । उस बातकी ओर आप ध्यान दें । बहुत ही लाभकी बात है और
बहुत सीधी सरल बात है । उसे धारण कर लें । दृढ़तासे मान लें तो अभी बेड़ा पार है ।
अभी चाहे ऐसा अनुभव न हो, पर आगे अनुभव हो जायगा‒यह निश्चित है । विद्या
समय पाकर पकती है‒‘विद्या कालेन पच्यते ।’ अतः आप
उस बातको आज ही मान लें । जैसे, खेती करनेवाले जमीनमें बीज बो देते हैं, और कोई
पूछे तो कहते हैं‒खेती हो गयी । ऐसे ही मैं कहता हूँ कि उस बातको दृढ़तापूर्वक मान
लें तो कल्याण हो गया ! हाँ, जिसकी विशेष उत्कण्ठा होगी, उसे तो अभी तत्त्वका
अनुभव हो जायगा और कम उत्कण्ठा होगी तो अनुभवमें देर लगेगी ।
यह जो
संसार है, यह प्रतिक्षण नाशकी ओर जा रहा है‒यह सार बात है । साधारण-सी बात दीखती है, पर बहुत बड़ी सार बात है । यह
देखने, सुनने, समझनेमें आनेवाला संसार एक क्षण भी टिकता नहीं, निरन्तर जा रहा है ।
जितने भी जीवित प्राणी हैं सब-के-सब मृत्युमें जा रहे हैं । सारा संसार प्रलयमें
जा रहा है । सब कुछ नष्ट हो रहा है । जो दृश्य है, वह अदृश्य हो रहा है । दर्शन
अदर्शनमें जा रहा है । भाव अभावमें परिणत हो रहा है । यह सार बात है । यह सबके
अनुभवकी बात है । इसमें किसीको किंचिन्मात्र भी शंका-सन्देह नहीं है । अभी ‘है’
रूपसे जो कुछ दीखता है, वह सब ‘नहीं’ में जानेवाला है । शरीर, धन, जमीन, मकान,
कुटुम्ब, मान, बडाई, प्रतिष्ठा, पद, अधिकार, योग्यता आदि सब-के-सब ‘नहीं’ अर्थात्
अभावमें जा रहे हैं । यह बात ध्यानपूर्वक सुन लें, समझ
लें और मान लें । बिलकुल सच्ची बात है । संसारको ‘है’ अर्थात् रहनेवाला मानना ही
भूल है ।
स्मृति (याद) दो प्रकारकी होती है‒(१) क्रियात्मक, जैसे
नाम-जप कारण आदि, और (२) ज्ञानात्मक । क्रियात्मक-स्मृति निरन्तर नहीं रहती है, पर
ज्ञानात्मक-स्मृति निरन्तर रहती है । जान लिया तो बस जान ही लिया । जाननेके बाद
फिर विस्मृति, भूल नहीं होती । क्रियात्मक-स्मृतिमें
जब क्रिया नहीं होती, तब भूल होती है । ज्ञानात्मक-स्मृतिकी भूल दूसरे
प्रकारकी है । जैसे एक व्यक्ति अपने-आपको ब्राह्मण मानता है । वह दिनभरमें एक बार
भी याद नहीं करता कि मैं ब्राह्मण हूँ । काम न पड़े तो महीनेभर भी याद नहीं करता ।
परन्तु याद न करनेपर भी भीतर ‘मैं ब्राह्मण
हूँ’ यह ज्ञानात्मक याद निरन्तर रहती है । उससे कभी कोई पूछे तो वह अपनेको
ब्राह्मण ही बतलायेगा । इस यादकी भूली तभी मानी जायगी, जब वह अपनेको वैश्य, क्षत्रिय
या हरिजन मान ले । इसी तरह यदि संसारको रहनेवाला, सच्चा मान लिया, तो यह भूल है । इसलिये यह
अच्छी तरह मान लें कि संसार निरन्तर नाशमें जा रहा है । फिर चाहे यह बात याद रहे या नहीं । मानी हुई बातको
याद नहीं करना पड़ता ।
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