।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७६ गुरुवार
                  सार बात


अबतक मैंने जो कुछ सुना, पढ़ा और समझा है, उसका सार बताता हूँ । वह सार बात कोई नयी बात नहीं है, सबके अनुभवकी बात है । मनुष्यका स्वभाव है कि वह सदा नयी-नयी बात चाहता है । वास्तवमें नयी बात वही है, जो सदा रहनेवाली है । उस बातकी ओर आप ध्यान दें । बहुत ही लाभकी बात है और बहुत सीधी सरल बात है । उसे धारण कर लें । दृढ़तासे मान लें तो अभी बेड़ा पार है । अभी चाहे ऐसा अनुभव न हो, पर आगे अनुभव हो जायगा‒यह निश्चित है । विद्या समय पाकर पकती है‒‘विद्या कालेन पच्यते ।’ अतः आप उस बातको आज ही मान लें । जैसे, खेती करनेवाले जमीनमें बीज बो देते हैं, और कोई पूछे तो कहते हैं‒खेती हो गयी । ऐसे ही मैं कहता हूँ कि उस बातको दृढ़तापूर्वक मान लें तो कल्याण हो गया ! हाँ, जिसकी विशेष उत्कण्ठा होगी, उसे तो अभी तत्त्वका अनुभव हो जायगा और कम उत्कण्ठा होगी तो अनुभवमें देर लगेगी ।

यह जो संसार है, यह प्रतिक्षण नाशकी ओर जा रहा है‒यह सार बात है । साधारण-सी बात दीखती है, पर बहुत बड़ी सार बात है । यह देखने, सुनने, समझनेमें आनेवाला संसार एक क्षण भी टिकता नहीं, निरन्तर जा रहा है । जितने भी जीवित प्राणी हैं सब-के-सब मृत्युमें जा रहे हैं । सारा संसार प्रलयमें जा रहा है । सब कुछ नष्ट हो रहा है । जो दृश्य है, वह अदृश्य हो रहा है । दर्शन अदर्शनमें जा रहा है । भाव अभावमें परिणत हो रहा है । यह सार बात है । यह सबके अनुभवकी बात है । इसमें किसीको किंचिन्मात्र भी शंका-सन्देह नहीं है । अभी ‘है’ रूपसे जो कुछ दीखता है, वह सब ‘नहीं’ में जानेवाला है । शरीर, धन, जमीन, मकान, कुटुम्ब, मान, बडाई, प्रतिष्ठा, पद, अधिकार, योग्यता आदि सब-के-सब ‘नहीं’ अर्थात् अभावमें जा रहे हैं । यह बात ध्यानपूर्वक सुन लें, समझ लें और मान लें । बिलकुल सच्ची बात है । संसारको ‘है’ अर्थात् रहनेवाला मानना ही भूल है ।


स्मृति (याद) दो प्रकारकी होती है‒(१) क्रियात्मक, जैसे नाम-जप कारण आदि, और (२) ज्ञानात्मक । क्रियात्मक-स्मृति निरन्तर नहीं रहती है, पर ज्ञानात्मक-स्मृति निरन्तर रहती है । जान लिया तो बस जान ही लिया । जाननेके बाद फिर विस्मृति, भूल नहीं होती । क्रियात्मक-स्मृतिमें जब क्रिया नहीं होती, तब भूल होती है । ज्ञानात्मक-स्मृतिकी भूल दूसरे प्रकारकी है । जैसे एक व्यक्ति अपने-आपको ब्राह्मण मानता है । वह दिनभरमें एक बार भी याद नहीं करता कि मैं ब्राह्मण हूँ । काम न पड़े तो महीनेभर भी याद नहीं करता । परन्तु याद न करनेपर भी भीतर ‘मैं ब्राह्मण हूँ’ यह ज्ञानात्मक याद निरन्तर रहती है । उससे कभी कोई पूछे तो वह अपनेको ब्राह्मण ही बतलायेगा । इस यादकी भूली तभी मानी जायगी, जब वह अपनेको वैश्य, क्षत्रिय या हरिजन मान ले । इसी तरह यदि संसारको रहनेवाला, सच्चा मान लिया, तो यह भूल है । इसलिये यह अच्छी तरह मान लें कि संसार निरन्तर नाशमें जा रहा है । फिर  चाहे यह बात याद रहे या नहीं । मानी हुई बातको याद नहीं करना पड़ता ।