भाई लोग मानते हैं कि ‘मैं पुरुष हूँ’ तो इसे याद नहीं करना
पड़ता । ऐसे ही साधुको ‘मैं साधु हूँ’ ऐसे याद नहीं करना पड़ता, कोई माला नहीं फेरनी
पड़ती । मान लिया तो बस मान ही लिया । विवाह होनेके बाद व्यक्तिको सोचना नहीं पड़ता
कि विवाह हुआ या नहीं । इसी तरह आप आज ही विशेषतासे
विचार कर लें कि संसार प्रतिक्षण जा रहा है । यह अभी जिस रूपमें है, उस रूपमें यह
सदा रह सकता ही नहीं ।
दूसरी बात, जो संसार ‘नहीं’ है, वह ‘है’ के द्वारा ही दीख रहा है । जैसे, एक व्यक्ति बैठा है और उसके सामनेसे बीस-पचीस
व्यक्ति चले गये । पूछनेपर वह कहता है कि बीस-पचीस आदमी यहाँसे होकर चले गये । यदि
वह व्यक्ति भी उनके साथ चला जाता, तो कौन समाचार देता कि इतने व्यक्ति यहाँसे होकर
गये हैं ? पर वह व्यक्ति गया नहीं, वहीं रहा है, तभी वह उन व्यक्तियोंके जानेकी
बात कह सका है । रहे बिना गयेकी सूचना कौन देगा ? इसी प्रकार परमात्मा रहनेवाला है
और संसार जानेवाला है । यदि आप यह बात मान लें कि
संसार जा रहा है, तो आपकी स्थिति स्वाभाविक ही सदा रहनेवाले परमात्मामें होगी,
करनी नहीं पड़ेगी । जहाँ संसारको रहनेवाला माना कि परमात्माको भूले ।
संसारको प्रतिक्षण जाता हुआ मान लेनेसे परमात्माकी याद न आनेपर भी आपकी स्थिति
वस्तुतः परमात्मामें ही है ।
संसार जा रहा है‒यह बहुत श्रेष्ठ और
मूल्यवान् बात है, सिद्धान्तकी बात है, वेदों और वेदान्तकी बात है, महापुरुषोंकी
बात है । परमात्मा
रहनेवाले है और संसार जानेवाला है । वह परमात्मा ‘है’ रूपसे सर्वत्र परिपूर्ण है ।
सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि‒ये युग बदलते हैं, पर परमत्मा कभी नहीं बदलते । वे
सदा ज्यों-के-त्यों रहते हैं । दो ही खास बातें हैं कि संसार नहीं है और परमात्मा
हैं; संसार जानेवाला है और परमात्मा रहनेवाले हैं । यदि
आपने इन बातोंको मान लिया, तो मानो बहुत बड़ा कार्य कर लिया, आपका जीवन सफल हो गया
। फिर तत्त्वज्ञान, भगवत्प्राप्ति, मुक्ति आदि सब इसीसे हो जायगी ।
संसार निरन्तर जा रहा है, ऐसा देखते-देखते एक स्थिति ऐसी
आयेगी कि अपने लिये संसारका आभाव हो जायगा । एक परमात्मा ही है और संसार नहीं
है‒ऐसा अनुभव हो जायगा । सन्तोंने कहा है‒‘यह नहिं यह
नहिं यह नहिं होई, ताके परे अगम है सोई ।’ यही
सार बात है । इसे हृदयमें बैठा लें । सबके अनुभवकी बात है कि पहलेकी अवस्था,
परिस्थिति, घटना, क्रिया, पदार्थ, साथी आदि अब कहाँ हैं ? जैसे वे चले गये, वैसे
अभीकी अवस्था, परिस्थिति, पदार्थ आदि भी चले जायँगे । ये तो निरन्तर जा ही
रहे हैं । संसारकी तो सदासे ही जानेकी रीती चली आ रही है‒
कोई आज गया कोई काल गया
कोई जावनहार तैयार
खड़ा ।
नहीं कायम कोई मुकाम यहाँ
चिरकालसे यही रिवाज रही ॥
आरम्भसे यह रिवाज चली आ रही है कि संसार एक क्षण भी रुकता
नहीं । यह सबका अनुभव है । इस अनुभवका आदर नहीं करते, यही गलती है । इसीसे
बारम्बार जन्म-मरण होता है । अतः आज ही दृढ़तापूर्वक मान लें कि संसारमात्र
प्रतिक्षण जा रहा है । यही सार बात है ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे
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