आने-जानेवाली
चीजोंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा मानना ही बन्धन है । बन्धन कोई जानवर थोड़े ही होता
है ! यह बन्धन छूटा और मुक्त हुए । दूसरोंके द्वारा हम अपनेको
बड़ा-छोटा स्वीकार न करें तो हम मुक्त हो गये कि नहीं ? स्वाधीन हो गये कि नहीं ?
बताओ ।
श्रोता‒ठीक बात है महाराजजी !
स्वामीजी‒ठीक बात है तो
फिर हम पराधीन क्यों रहें ? आप कृपा करो, अभीसे यह मान लो कि हम पदके द्वारा
अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे, धनके द्वारा अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे । लोग हमारा आदर करें तो अपनेको बड़ा नहीं मानेंगे । लोग हमारा
निरादर कर दें तो अपनेको छोटा नहीं मानेंगे । हमें परवाह नहीं कि लोग हमें
अच्छा मानें । यह बात आप मान सकते हो कि नहीं ?
श्रोता‒हाँ, मान सकते हैं ।
स्वामीजी‒तो फिर देरी
क्यों करते हो ? किसकी प्रतीक्षा करते हो आप ? किसी परिस्थितिकी प्रतीक्षा करते
हो, किसी बलकी प्रतीक्षा करते हो, किसी समयकी प्रतीक्षा करते हो, किसी सहारेकी
प्रतीक्षा करते हो, किसी उपदेशकी प्रतीक्षा करते हो; किसकी प्रतीक्षा करते हो,
बताओ ? मेरी तो प्रार्थना है कि आप अभी-अभी मान लो कि अब
हम इन आने-जानेवाली तुच्छ चीजोंके द्वारा अपनेकी बड़ा-छोटा नहीं मानेंगे ।
भगवान्ने कहा है‒
आगमापायिनोऽनित्यास्
तांस्तितिक्षस्व भारत ॥
(गीता २/१४)
अर्थात्
जो आने-जानेवाले हैं, उनको सह लो सहनेका
अर्थ है उनके आने-जानेका असर न पड़े ।
उनका असर अपनेपर न पड़े तो इतनी शान्ति, इतना आनन्द होगा, जिसका कोई
पारावार नहीं है । आप करके देखो । सच्ची बात है, मैं धोखा नहीं देता हूँ । ऐसी
मस्ती आयेगी, जैसे कोई कीचड़मेंसे बाहर निकल आये ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒ ‘अच्छे बनो’
पुस्तकसे
नाशवान्में
अपनापन अशाति और बन्धन देनेवाला है ।
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असत्को असत् जाननेपर भी जबतक असत्का आकर्षण नहीं मिट जाता, तबतक सत्की
प्राप्ति नहीं होती (जैसे, सिनेमाको असत्य जाननेपर भी उसका आकर्षण रहता है) ।
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जैसे भगवान्का
आश्रय कल्याण करनेवाला है, ऐसे ही रुपये आदि उत्पत्ति-विनाशशील वस्तुओंका आश्रय
पतन करनेवाला है ।
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(‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे)
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