भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥
(गीता
१८/६१)
इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंको अपनी मायासे
भ्रमण कराते हुए सब प्राणियोंके हृदयमें स्थित हैं । तो प्रश्न उठता है कि सब कुछ
ईश्वर ही कराते हैं क्या ?
तो अब इसका उत्तर सुनिये । एक होता है
‘करना’ और एक होता है ‘होना’ । तो करनेमें तो हम सबका
अधिकार है; परन्तु होनेमें अधिकार नहीं । भगवान् कहते हैं‒
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ॥
(गीता २ । ४७)
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