‘शंकर’ का अर्थ है–कल्याण करनेवाला । अतः भगवान् शंकरका
काम केवल दूसरोंका कल्याण करना है । जैसे संसारमें लोग अन्नक्षेत्र खोलते हैं, ऐसे ही भगवान् शंकरने काशीमें
मुक्तिका क्षेत्र खोल रखा है । गोस्वामीजी महाराज कहते हैं–
मुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर ।
जहँ बस संभु भवानि सो
कासी सेइअ कास
न ॥
(मानस ४/१ सो॰)
शास्त्रोंमें भी आता है–‘काशीमरणान्मुक्तिः’
। काशीको ‘वाराणसी’ भी कहते हैं । ‘वरुणा’ और
‘असी’–दोनों नदियाँ गंगाजीमें आकर मिलती हैं, उनके बीचका क्षेत्र ‘वाराणसी’ कहलाता
है । इस क्षेत्रमें मरनेवालेकी मुक्ति हो जाती है ।
यहाँ शंका होती है कि काशीमें मरनेवालेके पापोंका क्या होता
है ? इसका समाधान है कि काशीमें मरनेवाले पापीको पहले ‘भैरवी
यातना’ भुगतनी पड़ती है, फिर उसकी मुक्ति हो जाती है । भैरवी यातना बड़ी कठोर
यातना है, जो थोड़े समयमें सब पापोंका नाश कर देती है । काशी
केदारखण्डमें मरनेवालेको तो भैरवी यातना भी नहीं भोगनी पड़ती !
सालगरामजीने कहा है–
जगमें जिते जड़ जीव जाकी अन्त समय,
जम के जबर जोधा खबर लिये करे ।
काशीपति
विश्वनाथ वाराणसी वासिन की,
फाँसी यम नाशनको शासन दिये करे ॥
मेरी
प्रजा ह्वै के किम पेहैं काल दण्डत्रास,
सालग, यही विचार हमेश हिये करे ।
तारक
की भनक पिनाकी यातें प्रानिन के,
प्रान के पयान समय कान में
किये करे ॥
काशीमें मरनेवालोंके दायें कानमें भगवान् शंकर तारक मन्त्र–‘राम’
नाम सुनाते हैं, जिसको सुननेसे उनकी मुक्ति हो जाती है । अध्यात्मरामायणमें शंकरजी
कहते हैं–
अहं भवन्नाम गृणन्कृतार्थो वसामि काश्यामनिशं भवान्या ।
मुमूर्षमाणस्य विमुक्तयेऽहं दिशामि मन्त्रं
तव राम नाम ॥
(युद्ध. १५/६२)
‘हे प्रभो ! आपके नामोच्चारणसे कृतार्थ होकर मैं दिन-रात पार्वतीके साथ
काशीमें रहता हूँ और वहाँ मरणासन्न मनुष्योंको उनके मोक्षके लिये आपके तारक-मन्त्र
राम-नामका उपदेश देता हूँ ।’
गोस्वामीजी कहते हैं–
महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥
(मानस १/१९/२)
भगवान् शंकरका राम-नामपर बहुत स्नेह है । एक बार कुछ लोग एक मुरदेको श्मशानमें ले जा रहे थे और ‘राम-नाम सत् है’ ऐसा बोल रहे थे । शंकरजीने राम-नाम
सुना तो वे भी उनके साथ हो गये । जैसे पैसोंकी बात सुनकर लोभी आदमी उधर खिंच जाता है,
ऐसे ही राम-नाम सुनकर शंकराजीका मन भी उन लोगोंकी ओर खिंच गया । अब लोगोंने
मुरदेको श्मशानमें ले जाकर जला दिया और वहाँसे लौटने लगे । शंकरजीने देखा तो विचार
किया कि बात क्या है ? अब कोई आदमी राम-नाम ले ही नहीं रहा है ! उनके मनमें आया कि
उस मुरदेमें ही कोई करामात थी, जिसके कारण ये सब लोग राम-नाम ले रहे थे । अतः
उसीके पास जाना चाहिये । शंकरजीने श्मशानमें जाकर देखा कि वह तो जलकर राख हो गया
है । अतः शंकरजीने उस मुरदेकी राख अपने शरीरमें लगा ली और वहीं रहने लगे ! राख और मसान–दोनोंके
पहले अक्षर लेनेसे ‘राम’ हो जाता है !
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