।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७७ गुरुवार
तत्त्वप्राप्तिमें देरी नहीं है


हरदोई जिलेमें इकनोरा गाँव है । उस गाँवमें अभी एक सती हुई । करपात्रीजी महाराजने बताया कि मैंने खुद जाकर उस स्थानको देखा है और बात सुनी है । पति दूर था और लड़की अपने मामाके यहाँ थी । उसने पतिकी बीमारीका हाल सुना । फिर उसको मालूम हुआ कि वे मर गये तो कहा कि मुझे जल्दी पहुँचा दो । फिर कहा कि अब मैं वहाँ पहुँच नहीं सकती; क्योंकि उनकी दाहक्रिया पहले ही हो जायगी । मैं तो यहीं सती हो जाऊँगी । सबने ऐसा करनेसे रोका । रात्रि थी । दीया जल रहा था । उसने दीयेपर अँगुली रख दी । वह अँगुली यों जलने लग गयी, जैसे मोम जलती हो । उसने कहा कि मेरेको यहाँ रखोगे तो तुम्हारा घर जल जायगा । इसलिये मुझे बाहर जाने दो । उन्होंने कहा कि अच्छा, तुम्हें जाने देंगे तो उसने यों दीवारसे रगड़ करके अँगुली बुझाई । करपात्रीजीने कहा कि जहाँ अँगुली बुझाई, वह जगह मैं देख करके आया हूँ । दीवारपर उसके निशान थे । लड़कीको घरवाले बाहर ले गये, पर कहा कि हम न लकड़ी देंगे, न आग देंगे । नहीं तो आफत हो जाय कि आदमी जला दिया । उसने भगवान्‌ सूर्यसे प्रार्थना की कि महाराज ! आप मुझे आग दो । वह वहीं खड़ी-खड़ी जल गयी ! पासमें पीपलका वृक्ष था, वह आधा जल गया । वहाँके मुसलमानोंने बताया कि हमने देखा है । अब उसमें कौन-सा ज्ञान था, बताओ ? वे चले गये, अब मैं नहीं रह सकती । उन्हींकी अंश हूँ मैं । उनकी दाहक्रिया हो गयी, मेरी कैसे नहीं होगी ? इसको मान्यता कहते हैं । सुन लिया और सीख लिया–इसका नाम मान्यता नहीं है । इसका नाम सीखना है । सीख करके व्याख्यान दे देते हैं, खूब पुस्तकें लिख देते हैं ।

ज्ञान अपरोक्ष ही होता है, परोक्ष होता ही नहीं । मैंने इस बातपर विचार किया है, और इससे बढ़कर मैं क्या कहूँ ? एकदम तत्काल सिद्धि हो जाती है, ऐसी बात है यह । एक दूसरी बात कहता हूँ । आपकी मान्यतासे आपको लाभ है या मेरी मान्यतासे आपको लाभ है ? आपको लाभ किस बातमें है ? आप अभी परोक्ष-अपरोक्ष लिये बैठे हो, ऐसी मान्यतासे लाभ है या मैं जो कहूँ, उस बातसे लाभ है ? लाभकी बात भी नहीं समझते आप ! अगर धोखा होगा तो आज दिनतक कौन-सा अच्छा काम हुआ है ? धोखा ही हुआ है । एक मेरे कहनेसे और धोखा हो जायगा ! परन्तु मैं कहूँ, उसमें धोखा होगा नहीं, हो सकता नहीं, होना सम्भव ही नहीं । एकदम सच्‍ची बात है ।

पंढरपुरमें चातुर्मास किया तो उसमें मैं यह बात कह दी कि तत्काल सिद्धि हो जाती है । उन्होंने यही कहा कि ऐसा नहीं होता है । अभिमानकी बात है, मैंने जोर देकर कह दिया कि मराठी भाषा मेरेको आती नहीं और यहाँके सन्तोंकी वाणी मैंने पढ़ी नहीं । परन्तु मेरा विश्वास है कि यहाँ जो एकनाथजी महाराज, तुकारामजी महाराज, ज्ञानेश्वरजी महाराज आदि अनुभवी सन्त हुए हैं, उनकी वाणीमें तत्काल सिद्धिकी बात जरूर आयेगी । उनकी वाणीमें यह बात आये बिना रह सकती नहीं ।इतनेमें एक आदमी बोला कि हाँ, अमुक-अमुक जगह तत्काल सिद्धिकी बात आती है ।

गीता कह रही है–‘अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः’ इसको मान लो । इस बातकी उलझन मत रहने दो । अन्तःकरण अशुद्ध होनेपर भी ज्ञान हो सकता है । अन्तःकरण सर्वथा शुद्ध होनेपर बाकी क्या रहा ? अन्तःकरणको शुद्ध करना और अन्तःकरणसे सम्बन्ध-विच्छेद करना–यह दो चीजें हैं । बड़े जोरसे कहता हूँ कि अन्तःकरणको अपना मानकर शुद्ध करोगे तो नहीं होगा शुद्ध । क्यों नहीं होगा ? मेरा अन्तःकरण है–यही अशुद्धि है । गोस्वामीजीने ममताको ही मल कहा है–‘ममता मल जरि जाइ’ (मानस ७/११७ क) । मल लगाकर धोते हो, शुद्ध करते हो तो होगा शुद्ध ? ममता रखोगे तो अन्तःकरण कभी शुद्ध नहीं होगा । गीताने भी ममता छोड़नेके लिये कहा है–‘निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति’ (२/७१)

नारायण !    नारायण !!    नारायण !!!

–‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे