।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल दशमीवि.सं.२०७७, शुक्रवा
भगवन्नाम


“ होहि राम को नाम जपु ”

करुणाकर किन्हीं कृपा,  दीन्हीं  नरवर  देह ।
नद चीन्ही कृतहीन नर, खलकर दीन्हीं खेह ॥

इसका नाश कर दिया । इससे लाभ लेना चाहिये । ‘कबहुँक करि करुना नर देही’ करुणा करके प्रभु नर-देह देते हैं । ‘बड़े भाग मानुष तनु पावा’ ऐसी पूँजी मिल गयी, उसका नाश कर देना बहुत बड़ी भारी गलती है । ‘सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ’ वह परलोकमें दुःख पावेगा, सिर धुन-धुनकर पछतायेगा और रोवेगा । परन्तु उसके रोनेका फल रोना ही निकलेगा भाई, और कुछ होनेका नहीं है । अभी सावचेत हो जाय तो बहुत बड़ा भारी यह काम कर सकता है । अभी नहीं करेगा तो पीछे रोवेगा । ‘कालहि कर्महि इस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ’ काल-कर्म-ईश्वरको झूठा दोष लगायेगा । इस वास्ते सच्‍चे हृदयसे भगवान्‌की तरफ चलो ।

एक सीधी सरल बात‒भगवान्‌ मेरे हैं । ऐसे भगवान्‌को मेरा कह दिया तो बड़ा असर पड़ता है प्रभुपर । अनेक जन्मोंसे बिछुड़ा हुआ और चौरासी लाख योनियाँ भुगतता हुआ, दुःख पाता हुआ जीव अगर कह दे‒‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ । हे प्रभु ! आप मेरे हो’ तो प्रभुको बड़ा सन्तोष होगा । बड़े ही राजी होंगे भगवान्‌ । मानो भगवान्‌की खोयी हुई चीज भगवान्‌को मिल गयी । बड़ा उपकार होगा भगवान्‌पर । भगवान्‌के घाटेकी पूर्ति कर दोगे आप । जीव विमुख हो गया, यह भगवान्‌के घाटा पड़ गया ।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥

करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जायँ । क्योंकि पाप तो भगवान्‌से विमुख होनेसे ही हुए हैं । सब पापोंकी जड़ तो वहाँसे चली है । भगवान्‌के सम्मुख होते ही, वे बेचारे पाप टिक नहीं सकेंगे । इस वास्ते ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ । आप मेरे हैं’, ऐसे भगवान्‌के साथ अपनापन है‒यह बहुत सार चीज है । क्रियाओंके द्वारा आप भगवान्‌को नहीं पकड़ सकते, जितना प्रेमके द्वारा, अपनेपनके द्वारा पकड़ सकते हो । बड़े अच्छे-से-अच्छे काम करो, यज्ञ करो, दान करो, तीर्थ आदि करो, वेदाध्ययन करो । सब-की-सब लाभकी बात है । परन्तु अपनापन किया जाय‒यह बहुत लाभकी और विचित्र बात है ।

एक करोड़पतिके यहाँ एक नौकर रहता है, जो बीस हजार रुपये पाता है और करोड़पतिका लड़का है, उसे सौ रुपये महीना भी कोई देता नहीं; क्योंकि वह अयोग्य है । परन्तु पिता मर जाता है, तो बीस हजार (रुपये) पानेवाला नौकर मालिक नहीं बन सकता, पर अयोग्य लड़का मालिक बन जाता है । वह योग्य तो नहीं है, पर उसका हक लगता है । इस प्रकार योग्यतासे वह अधिकार नहीं मिलता, जो अपनेपनसे मिलता है ।


‘प्रभुके हम हैं’‒यह बनाया हुआ अपनापन नहीं है । सेठका अपनी तरफसे कोई बेटा बन जाय और कोई उसे पूछे कि तुम कहते हो या सेठ कहता है ? सेठ क्या कहे ? मैं कहता हूँ । तो उसे कोई मानेगा नहीं । सेठ यदि कह दे कि यह हमारा बेटा है । कोई काम पड़ जाय तो सेठके नामपर लाखों रुपये मिल जायँगे । सेठका कहना जितना दामी है, उतना हमारा कहना दामी नहीं है । भगवान्‌ तो मात्र जीवको अपना कहते हैं‒‘ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः’ अब केवल आपकी सम्मति होनेकी जरूरत है । सम्मुख होनेकी आवश्यकता है कि ‘मैं भगवान्‌का हूँ’