।। श्रीहरिः ।।


       आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल नवमीवि.सं.२०७७, गुरुवा
भगवन्नाम


“ होहि राम को नाम जपु ”

हम भगवान्‌का होकर भगवान्‌का नाम लें, भगवान्‌का चिन्तन करें, भगवान्‌का ही ध्यान करें, भगवान्‌के ही गुण सुनें, भगवान्‌का ही कीर्तन सुनें और पद गावें । भगवान्‌के होकर भगवान्‌का गुण गावें तो हम भगवान्‌के सम्मुख हो जाते हैं ।

भगवान्‌से विमुख करनेवाला नाशवान्‌का संग ही कुसंग है । यह प्रभुसे विमुख कर देता है । इस वास्ते नाशवान्‌ पदार्थोंका संग करना, नाशवान्‌का सहारा लेना कि इनसे हमारा कुछ भला हो जायगा‒यह गलती है । सज्जनो ! इससे लाभ होनेवाला है ही नहीं; क्योंकी यह नाशवान्‌ है, नाशवान्‌ ! नाशवान्‌का अर्थ क्या होता है ? नाशवाला । जैसे धनवान्‌ होता है । धनवान्‌का अर्थ क्या ? धनवाला ! धन होनेसे वह धनवाला है । धन न होनेसे धनवाला नहीं कहलायेगा । धनवाला धनके कारणसे है, ऐसे नाशवाला नाशके कारणसे है । धनवान्‌के पास धनके सिवाय और कोई महत्ता नहीं है । ऐसे ही नाशवान्‌ संसारमें नाशके सिवाय और कुछ महत्ता नहीं है । यह नाशवान्‌ है, इसका नाश-ही-नाश होगा ।

अविनाशी परमात्माके अंश होकर भी नाशवान्‌के भरोसे कितना दिन काम चलायेंगे‒यह एक-एक भाई, एक-एक बहनके सोचनेकी बात है । आप अविनाशी हैं । ‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’ यह अविनाशी होकर नाशवान्‌का भरोसा करता है । पता नहीं क्या हो गया ? अक्ल कहाँ चली गयी ! उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तुओंका सहारा मानता है । इन चीजोंसे अपनेमें घमण्ड करता है कि मेरे पास इतना धन है, इतनी सम्पत्ति है, मेरे इतने आदमी, इतने घर, इतनी जमीन है । तेरी कबसे है यह ? क्या सदासे तेरी वस्तुएँ थीं और क्या सदा रहेंगी । मनुष्य जानता है, मानता है कि पहले मेरी नहीं थीं, फिर मेरी नहीं रहेगी; फिर भी अपनी मान करके अभिमान करता है । सज्जनो ! धोखा हो जायगा धोखा ! उनको अपनी माननेसे प्रभुको अपना मानना बन्द हो जायगा, भगवान्‌को अपना कह सकोगे नहीं । ये चीजें रहेंगी नहीं और भगवान्‌का सम्बन्ध जोड़ा नहीं । जिसे अपनी-अपनी कहते हैं, वे रहेंगी नहीं । जो अपना रहेगा, उसमें अपनापन किया नहीं । रोता रहना पड़ेगा भाई, रोना पड़ेगा ।

मौका है अभी, बड़ा सुन्दर ! मनुष्य-शरीर मिला है । इस मनुष्य-शरीरकी बड़ी महिमा है । महिमा इस वास्ते है कि यह मनुष्य प्रभुके साथ सम्बन्ध जोड़ सकता है और दूसरे संसारी जितने भी जीव हैं, मनुष्यके सिवाय, उनमें यह अक्ल नहीं है कि परमात्माके साथ सम्बन्ध जोड़ लें । वहाँ यह समझ नहीं है और यह योग्यता भी नहीं है । यह विवेक नहीं है । भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़नेका एक मनुष्य-शरीरमें ही अवसर है । इस अवसरमें अगर वह नहीं किया तो क्या किया । सांसारिक काम खाना-पीना आदि तो पशु-पक्षी भी करते हैं । नीच-से-नीच प्राणी भी करते हैं । अगर हमने वही काम किया तो सूअर, कुत्ते, ऊँट और गधेकी तरह ही हो गये‒

सूकर कूकर  ऊँट  खर  बड़  पशुअन  में चार ।
तुलसी हरि की भगति बिन वैसे ही नर नार ॥


यह वास्तवमें मनुष्य-जन्मका अपमान है । मनुष्य-जन्मका बड़ा तिरस्कार है । कृपा करके ऐसा पतन न करें, तिरस्कार न करें ।