।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७७ मंगलवार
भगवद्भक्तिका रहस्य


भक्तिमें प्रधान बात है–भगवान्‌का होकर नित्य-निरन्तर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक निष्कामभावसे उन्हींका स्मरण-चिन्तन करते रहना । स्मरणका बड़ा भारी अद्भुत प्रभाव है । भक्तोंकी कथाओंमें प्रायः यही बात विशेष मिलती है कि जहाँ भी जिस भक्तने भगवान्‌को विह्वल होकर भगवान्‌का दृढ़ स्मरण किया, वहाँ भगवान्‌ प्रत्यक्ष प्रकट हो गये ।

पद्मपुराणके रामाश्वमेधमें हनुमान्‌जीकी एक बड़ी महत्वपूर्ण धटनाका उल्लेख मिलता है । भगवान्‌ श्रीरामचन्द्रजीका अश्वमेध-यज्ञके लिये छोड़ा हुआ घोड़ा अनेक देश-देशान्तरोंमें भ्रमण करता हुआ जब रामभक्त राजा सुरथके कुण्डलनगरमें पहुँचा, तब राजाने भगवान्‌के दर्शनकी लालसासे उस घोड़ेको पकड़वा लिया । जब अश्वरक्षक शत्रुघ्न आदिको घोड़ेके पकड़े जानेका पता लगा, तब उन्होंने उनसे युद्ध करके अश्वको छुड़ा लानेका विचार किया । इतनेमें ही धर्मात्मा सुरथ और उनके राजकुमार चम्पक भी रणभूमिमें पहुँच गये तथा दोनों ओरके सैनिक आपसमें लड़ने लगे । राजकुमार चम्पकने भरतकुमार पुष्कलको रामास्त्रका प्रयोग करके बाँध लिया । यह देखकर श्रीहनुमान्‌जीने चम्पकके सामने जाकर युद्ध किया तथा चम्पकको युद्धभूमिमें गिराकर मूर्च्छित कर दिया और पुष्कलको बन्धनसे छुड़ा लिया ।

इसपर राजा सुरथाने श्रीहनुमान्‌जीकी रामभक्तिकी बड़ी प्रशंसा की और वे उनसे युद्ध करने लगे । जब राजाके छोड़े हुए ब्रह्मास्त्रको हनुमान्‌जी निगल गये, तब राजाने श्रीरघुनाथजीका स्मरण करके रामास्त्रका प्रयोग किया । उस समय हनुमान्‌जी बोले–‘राजन ! क्या करूँ, तुमने मेरे स्वामीके अस्त्रसे ही मुझे बाँधा है; अतः मैं इसका आदर करता हूँ । अब तुम मुझे इच्छानुसार अपने नगरमें ले जाओ । मेरे प्रभु दयासागर हैं, वे स्वयं ही आकर मुझे छुड़ायेंगे ।’

श्रीहनुमान्‌जीके बाँधे जानेपर पुष्कलने राजासे युद्ध किया, किन्तु वे अन्तमें मूर्च्छित होकर गिर पड़े । तब शत्रुघ्नने राजासे बहुत देरतक युद्ध किया, पर वे भी राजाके बाणके आघातसे मूर्च्छित होकर रथपर गिर पड़े । यह देखकर सुग्रीव उनसे लड़ने लगे, पर राजाने उनको भी रामास्त्रका प्रयोग करके बाँध लिया ।

तदन्तर राजा सुरथ उन सबको रथमें डालकर अपने नगरमें ले गये । वहाँ जाकर वे राजसभामें बैठे और बँधे हुए हनुमान्‌जीसे बोले–‘पवनकुमार ! अब तुम भक्तोंके रक्षक परम दयालु श्रीरघुनाथजीका स्मरण करो, जिससे संतुष्ट होकर वे तुम्हें तत्काल बन्धनमुक्त कर दें ।’ श्रीहनुमान्‌जीने अपने सहित सब वीरोंको बँधा देखकर कमलनयन परम कृपालु श्रीरामचन्द्रजीका अनन्यभावसे स्मरण किया । वे मन-ही-मन कहने लगे–

हा नाथ    हाँ   नरवरोत्तम   हा   दयालो
सीतापते         रुचिरकुण्डलशोभिवक्त्र ।
भक्तार्तिदाहक          मनोहररूपधारिन्
मां बन्धनात् सपदि मोचय मा विलम्बम् ॥
                          (पद्मपुराण, पातालखण्ड ५३/१४)

‘हा नाथ ! हा पुरुषोत्तम ! हा सुन्दर कुण्डलसे सुशोभित वदनवाले, भक्तोंके दुःख दूर करनेवाले तथा मनोहर विग्रह धारण करनेवाले दयालु सीतापते ! मुझे इस बन्धनसे शीघ्र मुक्त कीजिये, देर न लगाइये ।’


श्रीहनुमान्‌जीके इस प्रकार प्रार्थना करते ही तुरंत भगवान्‌ श्रीरामचन्द्रजी पुष्पक विमानपर आरूढ़ होकर वहाँ आ पहुँचे । भगवान्‌को पधारे देख राजा सुरथ प्रेममग्न हो गये और उन्होंने भगवान्‌को सैकड़ों बार प्रणाम किया । श्रीरामने चतुर्भुजरूप धारण करके अपने भक्त सुरथको छातीसे लगा लिया और आनन्दाश्रुओंसे उसका मस्तक अभिषिक्त करते हुए कहा–‘राजन् ! तुम धन्य हो, आज तुमने बड़ा पराक्रम दिखाया है ।’ फिर भगवान्‌ने श्रीहनुमान्‌, सुग्रीव, शत्रुघ्न, पुष्कल आदि सभी योद्धाओंपर दयादृष्टि डालकर उन्हें बन्धन और मूर्च्छासे मुक्त किया । उन्होंने उठकर भगवान्‌को प्रणाम किया । राजा सुरथने प्रसन्नतापूर्वक अपना राज्य भगवान्‌ रामको समर्पित कर दिया । भगवान्‌ तीन दिन कुण्डलनगरमें रहे, फिर राजा सुरथको ही राज्य सौंपकर उनकी सम्मति ले वहाँसे चले गये । तब राजा सुरथ अपने राजकुमार चम्पकको राज्यभार देकर शत्रुघ्नके साथ अश्वकी रक्षाके लिये चल पड़े ।