।। श्रीहरिः ।।


           आजकी शुभ तिथि–
आश्विन कृष्ण प्रतिपदावि.सं.२०७७, गुरुवा
प्रतिपदा श्राद्ध
आकस्मिक और अकाल मृत्यु


एक ‘आकस्मिक मृत्यु’ होती है और एक ‘अकाल मृत्यु’ होती है । दोनोंका भेद न जाननेके कारण लोग आकस्मिक मृत्युको भी अकाल मृत्यु कह देते हैं, जबकि वह अकाल मृत्यु होती नहीं । इसलिये दोनोंका भेद जानना आवश्यक है ।
कोई आदमी मरना चाहता नहीं, पर अचानक उसकी मृत्यु हो जाय अर्थात् वह किसी दुर्घटना-(एक्सीडेंट) में मर जाय, बिजलीसे मर जाय, साँप काटनेसे मर जाय तो यह उसकी ‘आकस्मिक मृत्यु’ है ।
कोई आदमी आत्महत्या कर ले अर्थात् मरनेकी इच्छासे फाँसी लगा ले, जहर खा ले, रेलके नीचे आ जाय, छतसे कूद जाय, नदीमें कूद जाय अथवा अन्य किसी उपायसे जान-बूझकर मर जाय तो यह उसकी ‘अकाल-मृत्यु’ है ।
आकस्मिक मृत्यु तो प्रारब्धके अनुसार आयु पूरी होनेपर ही होती है, पर अकाल मृत्यु आयुके रहते हुए ही हो सकती है । अकाल मृत्यु अर्थात् आत्महत्या एक नया घोर पाप-कर्म है, प्रारब्ध नहीं । जो आत्महत्या करता है, उसको एक मनुष्यकी हत्याका पाप लगता है, जिसका परलोकमें भयंकर दण्ड भोगना पड़ता है । भगवान्‌ने अपनी प्राप्तिके लिये, अपना उद्धार करनेके लिये ही कृपापूर्वक मनुष्यशरीर दिया है । ऐसे दुर्लभ मनुष्य शरीरको आत्महत्या करके नष्ट कर देना महापाप है, बड़ा भारी पाप है !
आत्महत्या करके भी कभी-कभी मनुष्य बच जाता है, मरता नहीं । इसमें यह कारण रहता है कि उसके जीवनका सम्बन्ध किसी दूसरे प्राणीके साथ है । जैसे, भविष्यमें किसीका बेटा होनेवाला हो तो आत्महत्याका प्रयास करनेपर भी मरेगा नहीं; क्योंकि आगे होनेवाले बेटाका प्रारब्ध उसको मरने नहीं देगा । ऐसे ही दूसरेका प्रारब्ध साथमें जुड़ा हुआ रहता है तो आत्महत्याकी चेष्टा करनेपर भी वह मरता नहीं । अगर भविष्यमें उसके द्वारा कोई विशेष कार्य होनेवाला हो अथवा प्रारब्धका उत्कट भोग (सुख-दुःख) आनेवाला हो तो आत्महत्याकी चेष्टा करनेपर भी वह मरेगा नहीं । परन्तु उसको एक मनुष्यकी हत्याका पाप तो लगेगा ही और उसका फल दुःख भी बड़ा भारी होगा ! जैसे, किसीने जजके सामने बन्दूक करके गोली चला दी, पर गोली जजको लगी नहीं तो भी उसको सजा होती है; क्योंकि उसकी नियत तो जजको मारनेकी थी । ऐसे ही आत्महत्याकी नियत होनेमात्रसे पाप लगता है ।

आत्महत्या करनेवालेको मरते समय बड़ा भयंकर कष्ट होता है और वह मरनेसे बचना चाहता है कि मैं अब किसी तरह बच जाऊँ, पर बचनेकी सम्भावना रहती नहीं ! उसको बड़ा पश्चाताप होता है कि मैंने बहुत बड़ी गलती की, पर अब क्या हो ! इसलिये आत्महत्याकी इच्छा करना भी घोर पाप है ।