खेती करनेवाला खेतमें बीज
बोकर निश्चिन्त हो जाता है । वह बीज अपने-आप ही अंकुर देता है । यदि बार-बार बीजको
बाहर निकालकर देखेगा तो अंकुर कभी नहीं आयेगा । एक कहानी आती है । एक आमका बगीचा
था । उसमें बन्दर आम खाने लगे तो बागमें रखवाली करनेवालोंने उनको पत्थर मारकर भगा
दिया । जाते-जाते बन्दरोंने एक-एक आम मुँहमें और एक-एक आम हाथमें ले लिया और भाग
गये । उन सबने मीटिंग की कि ये दुष्ट हमें आम खाने नहीं देते ! उनमेंसे कुछ समझदार
बन्दर बोले कि वे अपने बगीचेमें आम कैसे खाने देंगे ? यदि हम भी एक बगीचा लगा लें
तो फिर हमें आम खानेसे कोई मना नहीं करेगा । उन्होंने सोचा कि गुठली तो है ही,
इनका बगीचा लगा लें । गुठली गाड़ दें और पानी दे दें तो बगीचा तैयार हो जायगा, फिर
खूब आम खायेंगे ! सर्वसम्मतिसे प्रस्ताव पास हो गया । एक नदी बह रही थी, उसके
किनारे गुठलियाँ गाड़ दीं । अब वे बार-बार गुठलियोंको निकालकर देखते हैं कि अभी आम
हुआ कि नहीं और उनको पुनः गाड़ देते हैं ! शामतक वे इसी प्रकार गुठलियोंको निकालते
तथा गाड़ते रहे ! क्या इस प्रकार आमकी खेती हो जायगी ? खेती करनी हो तो बीज बोकर
पानी दे दो और निश्चिन्त हो जाओ । जो अभी नहीं है, वह निश्चिन्त होनेसे पैदा हो जायगा, फिर जो
सच्ची बात है, वह सिद्ध क्यों नहीं होगी ? हम भगवान्के
है और भगवान् हमारे हैं‒यह बात सच्ची और स्वतःसिद्ध है । इसको माननेमें क्या परिश्रम
आता है ? क्या जोर पड़ता है ? क्या किसी विद्याकी आवश्यकता है ? कोई योग्यता चाहिये
? सीधी बात है कि हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं; हम संसारके नहीं है,
संसार हमारा नहीं है । अब आप इसे आमकी गुठलीकी तरह उखाड़ें नहीं अर्थात् कभी
परीक्षा न करें कि हमारेमें कुछ फर्क पड़ा कि नहीं ? अंकुर फूटा कि नहीं ?
फिर वृक्ष उग जायगा, आम भी लग जायँगे, सब बढ़िया हो जायगा ! परन्तु कृपा करो कि इस
बातको हटाओ मत । यह
भगवत्प्राप्तिका बहुत सुगम उपाय है और कुछ नहीं करना है । बस, ‘मैं भगवान्का और भगवान् मेरे’
इस निश्चयको अपनी तरफसे हटाना नहीं है ।
ये
भाई बैठे हैं; पहले ये अपनेको कुँआरा मानते थे । परन्तु विवाह हो गया तो कहने लगे
कि हम तो कुँआरे नहीं हैं । अब कोई पूछे कि तुम्हारा विवाह हो गया क्या ? तो क्या
यह कहोगे कि ठहरो, सोचने दो; इस साल तो नहीं हुआ, गये साल भी नहीं हुआ, बीस साल
पहले हुआ था, हाँ-हाँ, याद आ गया, हो गया विवाह ! ऐसा क्यों नहीं कहते ? क्योंकि
विवाह हो गया तो हो गया । यह मान्यता है । यदि स्वप्नमें भी कोई पूछे तो यही कहोगे
कि विवाह हो गया । ऐसे ही ‘मैं परमात्माका हूँ और परमात्मा मेरे हैं’ यह बिना
याद किये याद रहेगा । इसमें भूल नहीं होगी ।
भूल तब होगी, जब आप सोचेंगे कि मैं परमात्माका नहीं हूँ और परमात्मा मेरे नहीं है;
क्योंकि मेरे आचरण अच्छे नहीं हैं, मेरे लक्षण अच्छे नहीं हैं, भगवान्पर विश्वास
नहीं है, श्रद्धा नहीं है । यह बाधाएँ मत लगाओ । विश्वास नहीं हो, श्रद्धा
नहीं हो, स्मरण नहीं हो, हमारेमें परिवर्तन नहीं हुआ हो, जीवन न सुधरा हो, कुछ भी
न हुआ हो, फिर भी इस मान्यताको रद्दी मत करो कि मैं भगवान्का हूँ और भगवान् मेरे
हैं । |

