।। श्रीहरिः ।।

                                                             




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७७, बुधवा

भगवान्‌ आज ही मिल सकते है



भगवान्‌ कर्मोंसे नहीं मिलते । कर्मोंसे मिलनेवाली चीज नाशवान् होती है । कर्मोंसे धन, मान, आदर, सत्कार मिलता है । परमात्मा अविनाशी हैं । वे कर्मोंका फल नहीं हैं, प्रत्युत आपकी चाहनाका फल है । परन्तु आपको परमात्माके मिलनेकी परवाह ही नहीं है, फिर वे कैसे मिलेंगे ? भगवान्‌ मानो कहते हैं कि मेरे बिना तेरा काम चलता है तो मेरा भी तेरे बिना काम चलता है । मेरे बिना तेरा काम अटकता है तो मेरा काम भी तेरे बिना अटकता है । तू मेरे बिना नहीं रह सकता तो मैं भी तेरे बिना नहीं रह सकता ।

आपमें परमात्मप्राप्तिकी जोरदार इच्छा है ही नहीं । आप सत्संग करते हो तो लाभ जरूर होगा । जितना सत्संग करोगे, विचार करोगे, उतना लाभ होगाइसमें सन्देह नहीं है । परन्तु परमात्माकी प्राप्ति जल्दी नहीं होगी । कई जन्म लग जायँगे, तब उनकी प्राप्ति होगी । अगर उनकी प्राप्तिकी जोरदार इच्छा हो जाय तो भगवान्‌को आना ही पड़ेगा । वे तो हरदम मिलनेके लिये तैयार हैं ! जो उनको चाहता है, उसको वे नहीं मिलेंगे तो फिर किसको मिलेंगे ? इसलिये हे नाथ ! हे मेरे नाथ !कहते हुए सच्‍चे हृदयसे उनको पुकारो ।

सच्चे हृदयसे   प्रार्थना,    जब भक्त सच्‍चा गाय है ।

तो भक्तवत्सल कान में, वह पहुँच झट ही जाय है ॥

भक्त सच्‍चे हृदयसे प्रार्थना करता है तो भगवान्‌को आना ही पडता है । किसीकी ताकत नहीं जो भगवान्‌को रोक दे । जिसके भीतर एक भगवान्‌के सिवाय अन्य कोई इच्छा नहीं है, न जीनेकी इच्छा है, न मरनेकी इच्छा है, न मानकी इच्छा है, न सत्कारकी इच्छा है, न आदरकी इच्छा है, न रुपयोंकी इच्छा है, न कुटुम्बकी इच्छा है, उसको भगवान्‌ नहीं मिलेंगे तो क्या मिलेगा ? आप पापी हैं या पुण्यात्मा हैं, पढ़े-लिखे हैं या अपढ़ हैं, इस बातको भगवान्‌ नहीं देखते । वे तो केवल आपके हृदयका भाव देखते हैं

रहति न प्रभु चित चूक किए की ।

करत सुरति सय बार हिए की ॥

                (मानस, बाल२९/३)

वे हृदयकी बातको याद रखते हैं, पहले किये पापोंको याद रखते ही नहीं ! भगवान्‌का अन्तःकरण ऐसा है, जिसमें आपके पाप छपते ही नहीं ! केवल आपकी अनन्य लालसा छपती है ।