।। श्रीहरिः ।।

                                              




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण तृतीया, वि.सं.२०७७, मंगलवा

इच्छाओंका त्याग कैसे हो ?




सिकन्दर बादशाहकी बात सुनी है कि उसने बहुत धन लूटा, कब्रोंमें गड़े हुए पैसे इकठ्ठे कर लिये । अपने पास बहुत धन संग्रह कर लिया । जब मरने लगा तो उसने कहा कि ‘मेरे दोनों हाथ जनाजेके बाहर रखना । मैं कितनी बड़ी सम्पत्तिका मालिक था, पर खाली हाथ जा रहा हूँ, अपने साथ कुछ नहीं ले जा रहा हूँ ।’

मोहैया  गर्चे  दुनियाँ  के  मुल्की   और  माली  थे ।

सिकन्दर चला दुनियाँ से तो दोनों हाथ खाली थे ॥

‘धनके लूटनेमें, संग्रह करनेमें जो पाप किये, वे मेरे साथ जा रहे हैं, धन तो यहीं छोड़कर जा रहा हूँ ।’ यदि हमने धनको सदुपयोगमें नहीं लगाया तो यह दशा हम सबकी होगी । धन स्वयं कामकी चीज नहीं है, इसका सदुपयोग ही महत्वपूर्ण है ।

संसारमें माँके समान कोई हित करनेवाला नहीं है । बालक बीमार पड़ा है, माँ रातों जगती है; पासमें रहती है; पूरी सेवा करती है । माँको कोई बीमारी नहीं है; पर लड़केकी बीमारीसे माँ कमजोर हो जाती है । इतनी चिन्ता हो जानेपर भी वह लड़केको निरोग नहीं कर सकती, जिला भी नहीं सकती । इसलिये किसीको सुखी करनेकी हमारी सामर्थ्य है क्या ? जब माँ अपने बच्‍चेको ही पूरी तरह सुखी नहीं कर सकती, तब हम सम्पूर्ण दुनियाको सुखी कैसे कर देंगे ? दुनियाको सुखी कर दें‒यह हमारे हाथकी बात नहीं है, परन्तु हम अपनी सुख-सामग्रीका सदुपयोग उनकी सेवामें करते रहें‒यह हमारी हाथकी बात है प्रभुने जो सामग्री दी है, वह सदा हमारे पास रहेगी नहीं । अतः उसको अच्छे भावसे लोगोंमें वितरण कर दें । दुनियाका दुःख दूर कर दो‒यह तो भगवान्‌ करे तब ही होगा । धनी आदमियोंने, सेवा करनेवालोंने जोर लगा लिया, परन्तु अभी गायोंको जिला नहीं सके हैं । किसीको जीवित रख ले, हाथकी बात नहीं । भगवान्‌ वर्षा कर दे तो सब जी जायँ । मनुष्य क्या कर सकता है ? जो सामग्री अपने पास है, उसका उपयोग अच्छे-से-अच्छे काममें कर सकता है । केवल सदुपयोगकी जिम्मेवारी है और वास्तवमें देखा जाय तो केवल दुरुपयोगसे बचना है ।

लोग अन्यायपूर्वक संग्रह करते हैं, झूठ-कपट करके धन कमाते हैं, पर फूँक निकल जाती है; धन यहीं रह जाता है और धनके लिये किया हुआ पाप साथमें जाता है । कौड़ीभर भी पीछे रहता नहीं । धन कौड़ीभर भी साथ जाता नहीं । पर किसको और कैसे समझावें ! समझमें आती नहीं । झूठ, कपट, बेईमानी होती है अन्तःकरणमें जमा और कमाया हुआ धन जमा होता है तिजोरियोंमें और बैंकोंमें । मर जानेपर धन कोड़ी एक साथ चलेगा नहीं, सबका सब यहीं रह जायगा । पाप-अन्याय साथ जायगा, जो नरकोंमे ले जायगा । चौरासी लाख योनियोंमें भटकना पड़ेगा, दुःखसे कोई बच सकता नहीं । खराब नीयत बना ली तो वह साथ जायगी । यदि दूसरोंके उपकारकी, हितकी नीयत बना ली तो जहाँ जाओगे, मौज रहेगी । आनन्द-ही-आनन्द रहेगा ।