।। श्रीहरिः ।।

                                                                                          




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७७, गुरुवा
बोलनेसे पहले सोचें


किसी ग्रन्थमें लिखी हुई बातपर विचार करना हो तो पहले उस ग्रन्थको देखें । जिस प्रसंगमें वह बात आयी हो, उसे पढ़ें और समझें । एक बार मेरा कालेजमें जानेका काम पड़ा तो अपने स्वभाववश मैंने कहा कि बोलो, क्या सुनाऊँ ? तब एक पढ़ी-लिखी महिलाने आकर कहा कि गोस्वामीजीने नारी-जातिकी बड़ी निन्दा की है और कहा है‒

ढोल गँवार  सूद्र  पसु नारि ।

सकल ताड़ना के अधिकारी ॥

मैंने पूछा कि यह चौपाई कहाँ लिखी है ? तो उसने कहा कि रामायणमें लिखी है । फिर पूछा कि रामायणमें किस जगह लिखी है ? तो कहा क अयोध्याकाण्डमें लिखी है ! किस प्रसंगमें लिखी है ? तो कहा कि जहाँ स्त्रियाँका वर्णन है, उसमें लिखी है ! तब मैंने कहा कि देखो, तुम पढ़ी-लिखी हो, ग्रेजुएट हो; पढ़े-लिखे व्यक्तिको चाहिये कि वह कुछ बोले तो ढंगसे बोले । कोई व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा रखना चाहे तो उसे सोच-विचारकर बोलना चाहिये‒

बैठ सभा विच मूँडे बाहर, वचन काढ़ि जे सोच-बिचार ।

आपकी कोई शंका हो तो पहले उस मूल ग्रंथको देखें कि यह चौपाई कहाँ आती है ? गोस्वामीजीने किसके द्वारा कहलवायी है ? कौन बोलता है ? कम-से-कम इतना विचार कर लें, फिर पीछे शंका करें । बिना विचार किये सीधे गोस्वामीजीपर कलंक लगाना कि उन्होंने नारी-जातिपर आक्षेप किया है, यह बड़ी भारी भूल है‒‘निज अग्यान राम पर धरहीं’ (मानस ७/७३/९) ।

यदि पुरुष-जाति स्त्री-जातिपर आक्षेप करती है अथवा स्त्री-जाति पुरुष-जातिपर आक्षेप करती है तो वे दोनों ही बेईमान हैं । अपनी जातिको बढ़िया बताना और दूसरी जातिको खराब बताना मनुष्यता नहीं है । गोस्वामीजी सीताजीके चरणोंकी वन्दना करते हैं‒

जनकसुता  जग  जननि जानकी ।

अतिसय प्रिय करुनानिधान की ॥

ताके  जुग पद  कमल  मनावऊँ ।

जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥

(मानस बालकाण्ड १८/७-८)

वे स्त्री-जातिकी निन्दा कैसे कर सकते हैं ? भला आदमी दूसरेकी निन्दा नहीं कर सकता, प्रत्युत अपनी निन्दा कर सकता है कि भाई ! हम तो ऐसे हैं !