।। श्रीहरिः ।।

                                                                                           




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७७, शुक्रवा
शिक्षाके सब अधिकारी


भला आदमी कभी अपनेको ऊँचा और दूसरेको नीचा नहीं बतायेगा । यदि ब्राह्मण भला आदमी हो तो वह कभी क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रपर आक्षेप नहीं करेगा । यदि शूद्र भला आदमी हो तो वह कभी ब्राह्मणपर आक्षेप नहीं करेगा । आज तो दूसरोंपर आक्षेप करते हैं, ब्राह्मणोंपर आक्षेप करते हैं, साधुओंपर आक्षेप करते हैं, वे स्वयं कैसे आदमी हैं, आप सोच लें ! वे भले आदमी नहीं हो सकते ।

व्यक्तियोंमें सभी तरहके व्यक्ति होते हैं । स्त्रियोंमें सीताजी भी हैं, शूर्पणखा भी है । पुरुषोंमें श्रीरामजी भी हैं, रावण भी है । ग्रन्थोंमें सब तरहकी बातें आती हैं, पर वे शिक्षाके लिये आती हैं, आक्षेपके लिये नहीं । उनकी शिक्षा है‒‘रामादिवद् वर्तितव्यं न तु रावणादिवत् ।’ अर्थात् बर्ताव करना हो तो श्रीराम आदिकी तरह करना चाहिये, रावण आदिकी तरह नहीं ।

श्रीरामचरितमानसके सुन्दरकाण्डमें आता है‒

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे । छमहु नाथ सब अवगुन मेरे ॥

गगन समीर अनल जल धरनी । इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ॥

तव प्रेरित मायाँ उपजाए । सृष्टि हेतु ग्रंथनि गाए ॥

प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई । सो तेहि भाँति रहें सुख लहई ॥

प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही । मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही ॥

ढोल गँवार सूद्र पसु नारी ।  सकल ताड़ना के अधिकारी ॥

                                                          (५९/१-६)

‒यह बात समुद्र कह रहा है । समुद्र मनुष्यरूपसे भगवान् रामके सामने आता है और क्षमा माँगता है । वह कहता है कि ‘नाथ ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी‒ये पाँचों ही जड़ हैं । जल होनेसे मैं भी जड़ स्वभाववाला हूँ । सृष्टिके लिये आपने ही इन पाँचोंको उत्पन्न किया है । जिसके लिये जैसी आज्ञा दी गयी है, वह उसीके अनुसार अपनी मर्यादामें रहनेसे सुख पाता है । प्रभुने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी । परन्तु मर्यादा भी आपकी ही बनायी हुई है । ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और नारी‒ये सब ताड़ना अर्थात् शिक्षाके अधिकारी हैं ।’

समुद्र कहता है‒‘मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही’ अर्थात् जिस मर्यादामें हम रहते हैं, वह आपकी ही बनायी हुई है; अतः इसमें हमारा दोष कहाँ हुआ ? दोष तो आपका ही हुआ ! फिर कहा कि ‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ॥’ अब ‘ताड़ना’ शब्दपर विचार करना है कि इसका क्या अर्थ है ? समुद्रने जो कहा कि ‘प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही’ अर्थात् प्रभुने अच्छा किया कि मुझे शिक्षा दी, तो इस प्रसंगसे पता चलता है कि ‘ताड़ना’ नाम शिक्षाका है ।