नाशवान्की चाहना छोड़नेसे अविनाशी तत्त्वकी प्राप्ति होती
है । ❇❇❇
❇❇❇ ऐसा होना चाहिये, ऐसा नहीं होना चाहिये ‒इसीमें सब दुःख भरे
हुए हैं । ❇❇❇
❇❇❇ हमारा सम्मान हो‒इस चाहनाने ही हमारा अपमान किया है । ❇❇❇
❇❇❇ मनमें किसी वस्तुकी चाह रखना ही दरिद्रता है । लेनेकी
इच्छावाला सदा दरिद्र ही रहता है । ❇❇❇
❇❇❇ नाशवान्की इच्छा ही अन्तःकरणकी
अशुद्धि है । ❇❇❇
❇❇❇ मनुष्यको कर्मोंका त्याग नहीं करना है, प्रत्युत कामनाका
त्याग करना है । ❇❇❇
❇❇❇ मनुष्यको वस्तु गुलाम नहीं बनाती, उसकी इच्छा गुलाम बनाती
है । ❇❇❇
❇❇❇ यदि शान्ति चाहते हो तो कामनाका त्याग करो । ❇❇❇
❇❇❇ कुछ भी लेनेकी इच्छा भयंकर दुःख
देनेवाली है । ❇❇❇
❇❇❇ जिसके भीतर इच्छा है, उसको किसी-न-किसीके पराधीन होना ही
पड़ेगा । ❇❇❇
❇❇❇ अपने लिये सुख चाहना आसुरी, राक्षसी वृत्ति है । ❇❇❇
❇❇❇ जैसे बिना चाहे सांसारिक दुःख मिलता है, ऐसे ही बिना चाहे
सुख भी मिलता है । अतः साधक सांसारिक सुखकी इच्छा कभी न करे । ❇❇❇
❇❇❇ भोग और संग्रहकी इच्छा सिवाय पाप करानेके और कुछ काम नहीं
आती । अतः इस इच्छाका त्याग कर देना चाहिये । ❇❇❇
❇❇❇ अपने लिये भोग और संग्रहकी इच्छा करनेसे मनुष्य पशुओंसे भी
नीचे गिर जाता है तथा इसकी इच्छाका त्याग करनेसे देवताओंसे भी ऊँचे उठ जाता है । ❇❇❇
❇❇❇ जो वस्तु हमारी
है, वह हमें मिलेगी ही; उसको कोई दूसरा नहीं ले सकता । अतः कामना न करके अपने
कर्तव्यका पालन करना चाहिये । ❇❇❇
❇❇❇ जैसा मैं कहूँ, वैसा हो जाय‒यह इच्छा जबतक रहेगी, तबतक
शान्ति नहीं मिल सकती । ❇❇❇
❇❇❇ मनुष्य समझदार होकर भी उत्पत्ति-विनाशशील वस्तुओंको चाहता
है‒यह आश्चर्यकी बात है ! ❇❇❇
❇❇❇ शरीरमें अपनी स्थिति माननेसे ही नाशवान्की इच्छा होती है
और इच्छा होनेसे ही शरीरमें अपनी स्थिति दृढ़ होती है । ❇❇❇
❇❇❇ कुछ चाहनेसे कुछ मिलता है और कुछ नहीं मिलता; परन्तु कुछ न
चाहनेसे सब कुछ मिलता है । ❇❇❇
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‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे |