जिसके भीतर कोई भी इच्छा नहीं होती, उसकी आवश्यकताओंकी
पूर्ति प्रकृति स्वयं करती है । ❇❇❇
❇❇❇ जो सदा हमारे साथ नहीं रहेगा और हम सदा जिसके साथ नहीं
रहेंगे, उसको प्राप्त करनेकी इच्छा करना अथवा
उससे सुख लेना मूर्खता है, पतनका कारण है । ❇❇❇
❇❇❇ सुखकी इच्छासे सुख नहीं मिलता‒यह नियम है । ❇❇❇
❇❇❇ चाहे साधु बनो, चाहे गृहस्थ बनो, जबतक
कामना (कुछ पानेकी इच्छा) रहेगी, तबतक शान्ति नहीं मिल सकती । ❇❇❇
❇❇❇ अगर शान्ति चाहते हो तो ‘यों होना
चाहिये, यों नहीं होना चाहिये’‒इसको छोड़ दो और ‘जो भगवान् चाहें, वही होना
चाहिये’‒इसको स्वीकार कर लो । ❇❇❇
❇❇❇ कामनापूर्वक किया गया सब कार्य असत् है, उसका फल नाशवान्
होगा । ❇❇❇
❇❇❇ कुछ भी चाहना गुलामी है और कुछ नहीं चाहना आजादी है । ❇❇❇
❇❇❇ वस्तुके न मिलनेसे हम अभागे नहीं हैं, प्रत्युत भगवान्के
अंश होकर भी हम नाशवान् वस्तुकी इच्छा करते हैं‒यही हमारा अभागापन है । ❇❇❇
❇❇❇ सुखकी इच्छासे ही द्वैत होता है ।
सुखकी इच्छा न हो तो द्वैत है ही नहीं । ❇❇❇
❇❇❇ जबतक शरीरको अपना मानते रहेंगे, तबतक हमारी कामना नहीं मिट
सकती । ❇❇❇
❇❇❇ विचार करें, कामनाकी पूर्ति होनेपर भी हम वही रहते हैं और अपूर्ति
होनेपर भी हम वही रहते हैं, फिर कामनाकी पूर्तिसे हमें क्या मिला और अपूर्तिसे
हमारी क्या हानि हुई ? हमारेमें क्या फर्क पड़ा ? ❇❇❇
❇❇❇ जैसे गायका दूध गायके लिये नहीं है, प्रत्युत दूसरोंके लिये
ही हैं ऐसे ही भगवान्की कृपा भगवान्के लिये नहीं है, प्रत्युत दूसरों (हम सभी)-के लिये ही है । ❇❇❇
❇❇❇ अगर भगवान्की दया चाहते हो तो अपनेसे छोटोंपर दया करो, तब भगवान् दया
करेंगे । दया चाहते हो, पर करते नहीं‒यह
अन्याय है, अपने ज्ञानका तिरस्कार है । ❇❇❇
❇❇❇ जो गीता अर्जुनको भी दुबारा सुननेको नहीं मिली, वह हमें
प्रतिदिन पढ़ने-सुननेको मिल रही है‒यह भगवान्की कितनी विलक्षण कृपा है । ❇❇❇
❇❇❇ आजतक जितने महात्मा हुए हैं, वे भगवत्कृपासे
जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ तथा भगवत्प्रेमी हुए हैं, अपने उद्योगसे नहीं । ❇❇❇
❇❇❇ स्वतःसिद्ध परमपदकी प्राप्ति अपने कर्मोंसे,
अपने पुरुषार्थसे अथवा अपने साधनसे नहीं होती । यह तो केवल भगवत्कृपासे ही होती है
। ❇❇❇
❇❇❇ ‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे |