मनुष्यका खास काम है‒अपना कल्याण करना । ‘कल्याण’ से अभिप्राय है कि जिस सुखको प्राप्त कर लेनेपर
दूसरा बड़े-से-बड़ा सुख मिल जाय तो भी उस सुखमें कभी किंचिन्मात्र भी कमी आवे नहीं
तथा दुःखका लेश भी रहे नहीं । जिनका
कल्याण हो गया है, जिनको भगवत्प्राप्ति हो गयी है, उनके लिये गीताजीमें कहा गया
है‒ सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलय न व्यथन्ति च ॥ (१४/२) ‘सृष्टिकालमें वे पुनः उत्पन्न नहीं होते तथा
महाप्रलयके समय उनको कोई व्यथा नहीं होती ।’ ऐसा आनन्द मिल जाय, जहाँ दुःखका लेश भी न हो । उस तत्त्वकी प्राप्ति करनेके लिये सुगम उपाय क्या है ? सज्जनो
! उस उपायको ध्यान देकर सुनें । उपाय है‒‘प्रभुके चरणोंकी शरण हो जाय ।’ आप और हम यह भलीभाँति जानते हैं कि उत्पन्न और नष्ट
होनेवालेका जो सहारा है, वह केवल धोखा है । वह सहारा चाहे मनुष्यका हो, चाहे धनका
हो, जमीनका हो, चाहे किसी परिस्थिति-विशेषका हो । सब-का-सब धोखा है । नष्ट होनेवाले
पदार्थोंका आश्रय बड़े भारी नुकसानकी चीज है । व्यक्तियोंका
काम कर दो, सहायता कर दो और पदार्थोंका सदुपयोग कर लो परन्तु उनका भरोसा, आश्रय मत
रखो । आश्रय केवल अविनाशी तत्त्वका ही लो; क्योंकि अविनाशी तो एक परमात्मा ही है,
अतः उनकी शरण लो । उस परमात्माको आप सगुण मानो, निर्गुण मानो, साकार मानो,
निराकार मानो । विष्णु (राम, कृष्ण), शंकर, सूर्य, गणेश और शक्ति‒ये सब उस
परमात्माके ही रूप है । इन रूपोंमेंसे किसी एकको मान लो । भगवान्का जो स्वरूप आपको प्रिय लगे, उसके शरण हो जाओ । श्रीमद्भागवतके ‘गजेन्द्रमोक्ष’ में गजेन्द्रने भगवान्के
किसी रूपविशेषका ध्यान करके प्रार्थना नहीं की । उसने प्रार्थना करते हुए यही कहा
कि ‘ जो कोई ईश्वर है, वही मेरी रक्षा करे ।’ उसने कोई मूर्तिविशेषका ध्यान नहीं
किया । ‘कोई एक, जो कि सबका मालिक है, उसके मैं शरण हूँ ।’ बस गजेन्द्रकी तत्काल
रक्षा हो गयी । अतः हर समय प्रभुका सहारा रखो और अपनी
मान्यतामें भगवान्का जो नाम प्यारा लगे, उस नामको लेते रहो । चलते-फिरते,
उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते; हर-एक काम करते हुए भगवान्के नामको कभी मत
छोड़ो । वही इष्ट और नाम हमारा सच्चा साथी है, और कोई हमारा साथी नहीं है । धन कितना ही कमाओ, पर साथ देनेवाला नहीं है । अरब खरब लौं द्रव्य है उदय अस्त लौं राज । तुलसी जो निज मरण है तो आवे केहि काज ॥
अरबों, खरबों धन है और जिस राज्यमें सूर्य उदय और अस्त होता
हो अर्थात् भूमण्डलमात्रपर आपका राज्य हो जाय, पर जब मृत्यु आ जायगी, तब वह धन और
राज्य क्या काम आयेगा अर्थात् कुछ काम नहीं आयेगा । उस समय काम आयेगा नित्य
रहनेवाला परमात्मा । |