।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                               




           आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण दशमी वि.सं.२०७७, शुक्रवा
शरणागति


अब किसान देखता है कि उसने कपड़ा बिछाया है और वह उसपर उठता है, बैठता है । अकबरने जब नमाज पढ़ ली और आकर बैठा तो उस किसानने पूछा‒‘यह क्या कर रहे थे ?’ बादशाहने जवाब दिया‒‘परवर दिगारकी बंदगी कर रहा था ।’ किसानने कहा‒‘मैं तो समझा नहीं ।’ तो कहा‒‘ईश्वर है न, यानी उस परमात्माकी हाजरी भर रहा था ।’ ‘कितनी बार करते हो ?’ ‘पाँच बार ।’ ‘पाँच बार उठते, बैठते हो । क्यों ?’ ‘जिसने इतना दे रखा है, उसकी हाजरी भरता हूँ ।’ ‘मैं तो एक बार भी हाजरी नहीं भरता हूँ, फिर भी सब दे रखा है और दे रहा है । तुम्हें पाँच बार करनी पड़ती है । अच्छी बात, जैरामजीकी । अब जाता हूँ ।’ ऐसा कहकर जाने लगा तो पूछा कि क्यों आया था ? ‘मेरी स्त्रीने कह दिया था कि तुम दिल्ली जाओ, तब आया और यहाँ तुमको देखा, तुम तो पाँच बार नमाज पढ़ते हो । जब आपको परमात्मासे मिला तो अब आपसे मैं क्या लूँ ? मुझे कुछ करना नहीं पड़ता है तो भी वह परमात्मा मुझे देता है । अब तेरेसे क्या लेना है ?’

बादशाहने कहा‒‘अरे भैया, तुझे जो चाहिये सो ले ले ।’ किसानने कहा‒‘नहीं ! इतनी मेहनतसे तुम्हें मिली हुई चीज मैं मुफ्तमें कैसे ले लूँ ?’ ऐसे कहकर अपने घर चला आया । स्त्रीने पूछा‒‘क्या हुआ ?’ उसने कहा‒‘अपने प्रभुको याद करो । जो सबका मालिक है, वही सबको देता है । वह हमारा, उनका, सबका मालिक है । उसमें कोई पक्षपात नहीं है । वह सबका है तो हमारा भी है । अब अपने उस राज्यके आदमीसे क्यों माँगें ? जो कि स्वयं भी माँगता है । इसलिये भगवान्‌का भरोसा रखो, उनका नाम लो ।’

कई चोर मिलकर चोरी करने गये । बाहर उस किसानका घर था, उसके पास वे चोर छिपकर रहे । उस घरमें वे दोनों पति-पत्नी आपसमें बात कर रहे थे । स्त्री पतिसे बोली‒‘दिल्ली गये और कुछ लाये नहीं ।’ तो उसने कहा‒‘क्यों लावें ? हमारे पास कुछ था ही नहीं ।’ ‘कुछ कमाते ?’ इसपर पतिने उत्तर दिया‒‘अब तो भगवान्‌ देंगे तब ही लेंगे । भगवान्‌पर ही हमने छोड़ दिया ।’ ‘भगवान्‌पर छोड़ दिया तो कुछ काम-धन्धा तो करो ।’ उसने कहा‒‘कामधंधा किये बिना भी धन मिलता है, पर मैं लेता नहीं हूँ । ठाकुरजीकी मर्जी होगी तो घर बैठे भेज देंगे ।’ इस प्रकार स्त्री-पुरुष आपसमें बातचीत कर रहे थे । उसने अपनी स्त्रीको धीरज बँधाते हुए कहा‒‘अब वर्षा भी हो गयी है, खेती करेंगे, सब काम ठीक हो जायगा । कोई चिन्ताकी बात नहीं है । मैं तो भगवान्‌के भरोसे रहता हूँ, मैं लेता नहीं हूँ । भगवान्‌के देनेके बहुत तरीके हैं, छप्पर फाड़कर देते हैं ।’

उसने कहा‒ ‘सुन ! आजकी ही बात बताऊँ । मैं नदी-किनारे गया । नदीमें बाढ़ आ गयी । पानी बहुत चढ़ गया, जिससे किनारा कट गया । वहाँ शौच जाकर हाथ धोने लगा तो मेरेको दीखा, वहाँ कोई बर्तन है । उपरसे रेत निकल गयी थी और ढक्कन दिया हुआ चरु पड़ा था । उसको मैंने खोलकर देखा तो उसमें सोना-चाँदी, अशर्फियाँ भरी हुई थीं । बहुत धन था । मैंने विचार किया कि अपने तो यह लेना नहीं है । ठाकुरजी स्वयं भेजेंगे तब लेंगे । पता नहीं किसका है ? इसलिये ढक्कन लगाकर मैं वापिस आ गया ।’ स्त्रीने पूछा कि ‘वह कहाँपर, कौन-सी जगह है ?’ तो उसने सब बता दिया कि ‘ऐसे वहाँ एक जालका वृक्ष है, उसके पासमें हैं ।’

चोर इनकी बात सुन रहे थे । उन्होंने सोचा कि यह किसान तो पागल है । अपने तो वहीं चलो और कहीं चोरी करेंगे तो कहीं पकड़े जायँगे, धन वहाँ मिल ही जायगा । वे वहीं गये, जहाँ किसानने हाथ धोये थे ।ढक्कन ढकते समय उस किसानसे कुछ भूल हो गयी थी । ढक्कन कुछ खुला रह गया । उसके जानेके बाद एक साँप आकर उस बर्तनके भीतर बैठ गया । ज्यों ही चोरोंने उसका ढक्कन खोला कि साँपने फुँकार मारी । उन्होंने जोरसे ढक्कन बंद कर दिया । अब चोरोंने विचार किया कि उस किसानने हमको देख लिया होगा । हमें मरनेके लिये ही उसने यह सब बात कही थी । इस चरुमें न जाने कितने जहरीले साँप-बिच्छू भरे हैं । इस चरुको उसके घरमें ही गिरा दो, जिससे ये साँप-बिच्छू उनको काटकर मार देंगे ।

अब इस चरुको बाँधकर उसी किसानके घरपर ले गये । वे दोनों सो रहे थे । उन चोरोंने छप्पर फाड़कर चरु उलटा दिया, जिससे सारा माल घरमें गिर गया और स्वयं आप भाग गये । उपरसे पहले साँप गिरा, उसपर सोनेके सामानसहित वह चरु गिरा । इससे साँप तो वहीं दबकर मर गया । इस प्रकार भगवान्‌ छप्पर फाड़कर देते हैं । सबेरे जब दोनों जगे और घरमें देखा तो धनका ढेर लगा हुआ है । अब किसे क्या माँगे ? भगवान्‌ किस तरहसे देते हैं; इसका पता ही नहीं लगता । जो भगवान्‌का भरोसा रखता है, वह कभी भी खाली नहीं जाता । भूखा रह सकता है, नंगा रह सकता है, लोगोंमें अपमान हो सकता है, परन्तु उसके मनमें दुःख नहीं हो सकता । जो भगवान्‌पर पूरा भरोसा रखता है, वह हर हालतमें प्रसन्न रहता है ।