।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                              




           आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण अष्टमी वि.सं.२०७७, बुधवा
शरणागति


हमारा शरण लेनेका स्वभाव तो है ही । कोई बेटे-पोतोंकी शरण है, कोई धनके शरण है, कोई मकानोंके किरायेकी शरण है । कोई कहते हैं कि कमाकर खा लेंगे तो वे अपनी भुजाओंके बलके शरण हैं । मनमें किसी-न-किसीका आश्रय पकड़ रखा है । बहिनों, माताओंने पति-पुत्रोंका आश्रय पकड़ रखा है । अब मेरी एक प्रार्थना है कि आप कृपा करो, केवल भगवान्‌का आश्रय पकड़ो । भगवान्‌के विमुख होनेपर तुच्छ-से-तुच्छ जीवोंकी तथा वस्तुओंकी शरण ग्रहण करनी पड़ेगी । मारवाड़ी कहावत है ‘गरज गधेने बाप करे’ । गरज होनेपर गधेपर भार लादकर कहते हैं‒‘बापो ! बापो ! चालो’ । भगवान्‌के रहते हुए हम संसारकी गरज क्यों करें ? काम करो, सेवा करो, सुख पहुँचाओ, सबको आदर दो पर हृदयमें आश्रय केवल भगवान्‌का ही रखो । एक बार अकबर बादशाहकी सभामें कवियोंके सामने समस्यापूर्ति रखी गयी ‘करि हैं आस अकबरकी’ ऐसा कहा; परन्तु एक सन्त कवि भी बैठे थे, वे बोले ‘जिनके हरिकी परतीति नहीं, सो करि हैं आस अकबरकी’ जिन्हें भगवान्‌का भरोसा है, आश्रय है, वह अकबरकी आशा क्यों करें ?

हमने एक कहानी सुनी है । एक बारकी बात है । बादशाह अकबर कहीं जंगलमें शिकारके लिये गये । साथमें बहुत आदमी थे, पर दैवयोगसे जंगलमें अकेले भटक गये । आगे गये तो एक खेत दिखायी दिया । उस खेतमें पहुँचे और उस खेतके मालिकसे कहा‒‘भैया ! मुझे भूख और प्यास बड़े जोरसे लगी है । तुम कुछ खाने-पीनेको दे दो । मैं राज्यका आदमी हूँ ।’ उसने कहा‒‘ठीक, आप हमारे तो मालिक ही हो ।’ यह कहकर उसने भोजन करा दिया । खेतमें ऊख (गन्ना) थी, ऊखका रस पिला दिया । आराम करनेके लिये खटिया बिछा दी । इससे बादशाह बहुत राजी हुआ । उसको ऐसा लगा कि ऐसा शर्बत मैंने कभी नहीं पिया । जंगलमें रोटी भी बड़ी मीठी लगती है फिर जिसमें भूख भी लगी हुई हो ।

जब बादशाह वापस जाने लगा तो उस किसानसे कहा‒‘कभी तुम्हारे काम पड़ जाय तो दिल्लीमें आ जाना, मेरा नाम अकबर है । किसीसे मेरा नाम पूछ लेना ।’ और फिर कहा‒‘कलम, दवात-कागज ला, तुजे कुछ लिख दूँ ।’ खेतमें न कलम है, न दवात है, न कागज है । खेतमें रहनेवाला बिचारा पढ़ा-लिखा तो था नहीं । फूटा हुआ मिट्टीका घड़ा था । वह सामने रख दिया और एक कोयला ले आया । बादशाहने घड़ेकी ठीकरीके भीतरमें लिख दिया । अकबरने कहा‒‘मेरेसे जब मिलने आओ, तब इसको साथ लेकर आना ।’ उसने कहा‒‘ठीक है ।’ उसने उस लिखे हुए घड़ेके टुकड़ेको रख दिया । कई वर्षोंतक पड़ा रहा ।

जब अकाल पड़ा और अनाज कुछ हुआ नहीं, तब बड़ी तंगी आ गयी । अपने लिये अन्न और गायों-भैसोंके लिये घासतक नहीं रहा, पानी भी नहीं रहा । तब स्त्रीने कहा‒‘राज्यका एक आदमी आया था न ? उसने कहा था कि आवश्यकता पड़े तब दिल्ली आ जाना । उसके पास जाओ तो सही ।’ स्त्रीने बार-बार कहा तो ठीकरा लेकर वह वहाँसे चला । दिल्लीमें पहुँचा तो लोगोंसे पूछा‒‘अकबरियेका घर कौन-सा है ?’ अकबरका नाम सुनकर किसीने बता दिया । खास महलके दरवाजेपर जाकर पूछने लगा‒‘अकबरियेका घर यही है क्या ?’

द्वारपालोंने डाँटकर कहा‒कैसे बोलता है ? ढंगसे बोला कर । वह तो अपनी भाषामें सीधा बोला और उसने ठीकरी दिखाकर कहा‒‘जाकर कह दो एक आदमी आपसे मिलने आया है ।’ उसने जाकर कहा‒‘महाराज ! एक ग्रामीण आदमी है, असभ्यतासे बोलता है । बोलनेका भी होश नहीं है । वह आपसे मिलना चाहता है ।’ उसे बुलाया, बादशाह ऊँचे आसनपर बैठा था । उसने देखकर कहा‒‘ओ अकबरिया ! तू तो बहुत ऊँचा बैठा है ।’ बादशाहने कहा‒‘आओ भाई ! बैठो !’ उसे बैठाया और कहा‒‘तू थोड़ी देर बैठ जा । मेरी नमाजका समय हो गया है, इसलिये मैं नमाज पढ़ लूँ ।’