।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                             




           आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण सप्तमी वि.सं.२०७७, मंगलवा
शरणागति


एक अन्धा बूढ़ा आदमी अपने पोतेके कन्धेपर हाथ रखकर भगवान्‌ शंकरके मन्दिरमें नित्यप्रति नियमसे जाता था । एक दिन एक भाईने उससे पूछा‒‘बाबा ! आप यहाँ क्यों आते हो ?’ उसने उत्तर दिया‒‘भगवान्‌के दर्शन करनेके लिये ।’ ‘बाबा ! आपको आँखोंसे कुछ सूझता है क्या ?’ उसके ऐसा पूछनेपर उत्तर दिया कि ‘नहीं’ । ‘यदि नहीं दीखता तो भगवान्‌के दर्शन कैसे करोगे ?’ इसपर उस वृद्ध सज्जनने उत्तर दिया कि ‘यदि मेरे नेत्र नहीं हैं तो भगवान्‌ शंकरके भी नेत्र नहीं हैं क्या ? उन्होंने मुझे देख लिया तो बस, मेरा काम हो गया ।’ इसी तरह यदि हम परमात्माको नहीं जानते तो परमात्मा भी हमें नहीं जानते ? वे हमें अवश्य जानते हैं । अतः हमें परमात्माकी शरण होना है । यह शरण होना बड़ी भारी साधना है । इस साधनाको वे ही मनुष्य काममें ला सकते हैं, जिनको अपनी विद्याका, बुद्धिका अभिमान नहीं है और भगवान्‌पर विश्वास है । मनुष्य अपनी विद्या, बुद्धिके अभिमानमें आकर ऐसा कहता है कि हम यूँ कर लेंगे । भैया, करके देख लो ।

चारों वेद  ढँढोरके  अंत  कहोगे  राम ।

सो रज्जब पहले कहो एते ही में काम ॥

सज्जनो ! अन्तमें शरण होना ही पड़ेगा और तभी काम बनेगा । इसलिये अभीसे शरण हो जाओ । खोज करो, उद्योग करो, अपनी पूरी बुद्धि लगाओ‒इसकी मनाई नहीं है । भगवान्‌ कहते हैं कि सम्पूर्ण कर्म सदा करते हुए भी मेरा आश्रय लेनेवाला मेरी कृपासे शाश्वत, अविनाशी पद-रूप परमात्माको पा जाता है (गीता १८/५६) । मेरा आश्रय लेकर यत्न करनेवाला जन्म-मरणसे छूट जाता है (गीता ७/२९) । इसलिये प्रभुकी शरण लेना ही उत्तम है । गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज तो कहते हैं‒

बिगरी जनम अनेक की  सुधरे  अब  ही  आज ।

होय राम को नाम जप तुलसी तजि कुसमाज ॥

अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई है, वर्षोंकी नहीं । अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई आज सुधर जाय, आज और आज ही नहीं, आज भी अभी-अभी इसी क्षण ही । कितनी सुगम और सरल बात बतायी । रामजीका होकर रामजीका नाम लो । बस, मैं तो आजसे क्या, अभीसे रामजीका हो गया । रामजी कैसे हैं ? इस बातको रामजी जानें । आप जितना-जितना जानते हो, उसका आदर करो, उस जानकारीपर दृढ़ रहो । पर उसका अभिमान मत करो । कितना ही जान लो, जानना बाकी ही रहेगा; क्योंकि बुद्धिके अन्तर्गत भगवान्‌ नहीं आते । इसलिये बढ़िया बात है कि उसको मानकर शरण हो जाओ । ‘मैं तो आपके शरण हूँ’‒इस प्रकार भगवान्‌के शरण होकर भगवान्‌का जप करो । कुसंग छोड़ दो, नास्तिकपना कुसंग है । जो ईश्वरको नहीं मानता है, वह नास्तिक है । ऐसे पुरुषोंका संग मुख्य कुसंग है । वास्तवमें तो भगवान्‌को छोड़कर अन्य किसी व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ, घटना, परिस्थितिका आश्रय और प्रिय बुद्धिसे याद करनामात्र ही कुसंग है । अतः इस कुसंगको छोड़कर ‘हे नाथ ! हे नाथ ! मैं तो आपके शरण हूँ’‒इस प्रकार शरण हो जाओ और नाम-जप करते रहो ।