।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                       




           आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण चतुर्थी वि.सं.२०७७, सोमवा

त्यागसे सुखकी प्राप्ति


जब भूख लगती है, तब भोजनमें सुख मिलता है‒यह निर्विवाद बात है । ध्यान दें, पहला ग्रास लेनेमें जो सुख मिलता है, पाँच-दस ग्रास लेनेके बाद क्या वही सुख रहता है ? ज्यों-ज्यों हम भोजन करते चले जाते हैं, त्यों-ही-त्यों भोजनका सुख कम होता चला जाता है । अन्तमें जब भूख समाप्त हो जाती है, तृप्ति हो जाती है, तब भोजन आपको सुख देता है क्या ? जब भूख मिट जाय, तब ग्रास लेकर देखो कि क्या वह सुख देता है । सुखका आरम्भ रुचिसे हुआ था । इसलिये सांसारिक भोग तब सुख देंगे, जब आप उनके बिना दुःखी होंगे । जिसके बिना आप दुःखी नहीं होते, वह कभी आपको सुख नहीं दे सकता । तो यह संसार दुःखीको सुख देता है और सुख देकर वह मनुष्यको बाँधता है । केवल वहम रहता है कि अमुक पदार्थसे सुख मिला ।

अब अरुचिसे सुख कैसे मिलता है‒यह बात समझें । किसी भोगमें अरुचि हुए बिना क्या आप उस भोगका त्याग करते हैं ? जब अरुचि होती है, तभी त्याग होता है । जबतक अरुचि न हो, तबतक सुख नहीं होता और जबतक रुचि रहती है, तबतक सुख होता है । यह बात मैंने पहले ही कह दी कि अरुचिसे सुख होता है या सुखसे अरुचि होती है‒इसका विश्लेषण जरा कठिन है, पर बातें दोनों सही हैं । भोग भोगते-भोगते उससे अरुचि होती ही है । अब आप ध्यान दें । अरुचिका अर्थ है‒सम्बन्ध विच्छेद । भोगसे सम्बन्ध-विच्छेद होता है तो सुख होता है । सम्बन्ध-विच्छेद क्या है‒यह खास समझनेकी बात है । विच्छेदका तात्पर्य है उस भोगको भोगनेकी शक्तिका नाश कि अब आगे भोग नहीं सकते । तो शक्तिका नाश होनेसे ही अरुचि और सुख दोनों हुए । यदि शक्तिका नाश न होता तो अरुचि कैसे होती ? तात्पर्य यह है कि वह सुख भोगका नहीं है अपितु शक्तिके नाश अर्थात् थकावटका है । बहुत दौड़नेके बाद जब बैठते हैं, तो सुख मालूम होता है । तो सुख थकावटका है । अतः भोग भोगनेकी शक्तिके नाशका नाम ही सुख हुआ । नाश कहो या अरुचि कहो । भोगी पुरुष भोग्य वस्तुका तो नाश करता है और अपना पतन करता है । विरक्त पुरुष ऐसा नहीं करता । मनुष्य भोगमें सुख मानकर भोगका त्याग नहीं करता, इसलिये न तो भोगके अन्तमें होनेवाली अरुचि स्थायी कर पाता है और न त्यागके सुखको ही स्थायी कर पाता है । यदि वह समझ ले कि भोगोंसे सम्बन्ध-विच्छेदमें सुख है तो फिर वह भोगोंमें फँसेगा नहीं ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे