सहजसुखराशि होते
हुए भी स्वयं दुःखी कब होता है ? जब यह नाशवान्की पराधीनता स्वीकार कर लेता है,
तब यह दुःखी हो जाता है, नहीं तो यह दुःखी हो नहीं सकता । आप दुःखको तो चाहते नहीं, पर दुःखकी सामग्री बटोरते है ! दुःखी होना चाहते
नहीं, पर नाशवान् चीजोंकी पराधीनता स्वीकार करते हैं ! पराधीनतामें सुख है ही
नहीं, स्वप्नमें भी नहीं है । श्रोता‒जिसमें गुण होते हैं, उसके पास आदमी ज्यादा जाते हैं ! स्वामीजी‒गुण होनेसे उसके पास ज्यादा आदमी
जाते हैं, तो गुण कौन-सा उसका स्वरूप है ? गुण भी उसने लिया है । गुण नहीं रहेगा तो लोग उसके पास नहीं जायँगे । आप विचार करें कि दूसरोंके जानेसे वह बड़ा कैसे हो
गया ? अगर लोगोंके जानेसे वह बड़ा हुआ, तो उसका
बड़प्पन पराधीन ही तो हुआ । लोग जायें तो बड़ा हो गया और लोग न जायें तो छोटा हो
गया‒यह तो पराधीनता हुई, बड़प्पन कैसे हुआ ? हम किसी गुणके
कारण अपनेको बड़ा मानते हैं, विद्याके कारण अपनेको बड़ा मानते हैं, पदके कारण अपनेको
बड़ा मानते हैं, लोगोंके द्वारा आदर-सत्कार होनेपर अपनेको बड़ा मानते हैं तो यह
सब-की-सब पराधीनता है । कोई आये चाहे न आये, गुण हो चाहे न हो, लोग अच्छा मानें चाहे बुरा मानें, उनसे हमें क्या
मतलब है ? हम तो जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे । आप हमें बड़ा मान लें तो क्या
हम बड़े हो जायँगे । आप छोटा मान लो तो क्या हम छोटे हो जायँगे ? जो दूसरोंके द्वारा अपनेको बड़ा या छोटा मानता है, वह कभी बड़ा
हो सकता है क्या ? स्वप्नमें भी नहीं हो सकता । जो
दूसरी वस्तुओंके अधीन अपना बड़प्पन मानता है, वह सुखी कैसे हो सकता है ? उसने तो
महान् गुलामी पकड़ ली । रुपये इकठ्ठे कर लिये, कागज इकठ्ठे कर लिये,
हीरे-पन्ने इकठ्ठे कर लिये, पत्थरोंके टुकड़े इकठ्ठे कर लिये और मान लिया कि हम बड़े
हो गये । तुम बड़े कैसे हो गये ? आपके पास धन आ गया है तो
उसका सदुपयोग करो, उसको अच्छे-से-अच्छे काममें लगाओ । उसके आनेसे आप बड़े हो गये तो
आपकी बेइज्जती ही हुई ।
भगवान् आने-जानेवाले नहीं हैं, वे रहनेवाले हैं । उनको आप अपना मानोगे तो आप असली बड़े हो जाओगे । असली बड़े हो जाओगे तो आपमें बड़प्पनका अभिमान नहीं आयेगा और छोटेपनका भय नहीं रहेगा कि कोई हमें छोटा न मान ले । आपको कोई छोटा मान ले तो क्या हानि हो जायगी ? और बड़ा मान ले तो क्या लाभ हो जायगा ? आप जिसके हैं और जो आपका है, उस परमात्माके साथ आप अपना सम्बन्ध ठीक स्वीकार कर लें तो आप वास्तवमें बड़े हो जायँगे । फिर आपमें बड़े-छोटे होनेका अभिमान और दीनता नहीं रहेगी । परन्तु दूसरी वस्तुओंके द्वारा अपनेको बड़ा-छोटा मानोगे तो अभिमान और दीनता कभी जायगी नहीं । |