।। श्रीहरिः ।।

   




आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७७ गुरूवार
 
मेरे तो गिरधर गोपाल

तेरे भावै कछु  करौ,   भलो   बुरो   संसार ।

‘नारायण’ तू बैठि  के, अपनौ भवन बुहार ॥

हमारा मतलब केवल भगवान्‌से है । हम अच्छे हैं तो उनके हैं, बुरे हैं तो उनके हैं‒

जौ हम भले बुरे तौ तेरे ।

तुम्हैं हमारी लाज-बडाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे ॥

                                        (सुरविनय. २३६)

संसारमें तो एक तिनका भी हमारा नहीं रहेगा, नहीं रहेगा, नहीं रहेगा । अपना है ही नहीं तो कैसे रहेगा ? संसारका प्रतिक्षण आपसे वियोग हो रहा है । जन्म लेनेके बाद जितने वर्ष बीत गये, उतने वर्ष तो आप मर ही गये और बाकी जो दिन बचे हैं वे भी जानेवाले हैं । एक भगवान्‌के सिवाय अपना कुछ नहीं है । इसलिये भगवान्‌को पुकारो कि हे प्रभो ! हे मेरे प्रभो ! मेरा कोई नहीं है, केवल आप ही मेरे हो, और कोई मेरा नहीं है । फिर मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा ! मेरे तो भगवान्‌ हैं‒इस बातको लेकर नाचने लग जाओ, कूदने लग जाओ कि आज हमारा काम हो गया ! सब कुछ भगवान्‌के चरणोंमें अर्पण कर दो । स्वप्नमें भी किसीकी गुलामी मत करो । हृदयसे गुलामी निकाल दो । नाचने लग जाओ कि बस, आज तो हम निहाल हो गये ! कोई पूछे कि अरे ! क्या मिल गया ? तो कहो कि जो मिलना चाहिये था, वह मिल गया ! वह परमात्मा स्वतः सबको मिला हुआ है, सबके भीतर विराजमान है । वह हमारा अपना है । और किसीसे हमें कोई गरज नहीं, किसीकी आवश्यकता नहीं, किसीकी परवाह नहीं । कोई राजी रहे तो मौज, नाराज हो जाय तो मौज ! हम किसीको दुःख नहीं देते, किसीके विरुद्ध कुछ करते नहीं, स्वप्नमें भी किसीका अहित नहीं चाहते, फिर कोई राजी रहे या नाराज, यह उसकी मरजी । हमारा किसीसे कोई मतलब नहीं ।

भगवान्‌ मेरे हैं‒इसके समान कोई बात है ही नहीं, होगी नहीं, हो सकती नहीं । इस बातका हमें पता लग गया तो अब मौज हो गयी ! इतने दिन दूसरोंकी गुलामी करके मुफ्तमें दुःख पाया । अब हम सबको प्रणाम करते हैं ! सभी श्रेष्ठ हैं, पर हमें उनसे मतलब नहीं । हमें केवल भगवान्‌से ही मतलब है । परन्तु भगवान्‌से भी हमें कुछ लेना नहीं है, कोई गरज नहीं करनी है ।

ढूँढा सब जहां में,   पाया पता तेरा नहीं ।

जब पता तेरा लगा, अब पता मेरा नहीं ॥

वास्तवमें मैं है ही नहीं, केवल तू-ही-तू है । छोटा-बड़ा, अच्छा-मन्दा सब तू-ही-तू है । अब हमें असली चीज मिल गयी ! आज पता लग गया कि तू ही है, मैं हूँ ही नहीं ! न मैं है, न मेरा है । केवल तू है और तेरा है । अब आनन्द-ही-आनन्द है । पूर्ण आनन्द, अपार आनन्द, सम आनन्द, शान्त आनन्द घन आनन्द, अचल आनन्द, बाहर आनन्द, भीतर आनन्द, केवल आनन्द-ही-आनन्द !

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ पुस्तकसे