।। श्रीहरिः ।।

  




आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७७ बुधवार
 
मेरे तो गिरधर गोपाल

केवल एक भगवान्‌ मेरे हैं‒इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है । इसलिये भगवान्‌को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो । न जानेकी इच्छा हो, न रहनेकी इच्छा हो । एक भगवान्‌से मतलब हो । एक भगवान्‌के सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं । अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश जितनी अथवा तिनके जितनी चीज भी अपनी नहीं है । हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा कुछ था ही नहीं, हमारा कुछ होगा ही नहीं, हमारा कुछ हो सकता ही नहीं । इसलिये एक भगवान्‌को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे । भगवान्‌के सिवाय किसीसे स्वप्नमें भी मतलब नहीं । किसीकी गुलामी करनेकी जरूरत नहीं । हमें किसीसे क्या लेना है और क्या देना है ! हमारे जो सम्बन्धी हैं, उनका कितने दिनका साथ है ! ‘सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुंब धन धाम’ ! स्वप्न तो याद रहता है, पर उनकी याद भी नहीं रहेगी । जैसे स्वप्नको नापसन्द कर देते हो तो उसको भूल जाते हो, ऐसे ही संसारको नापसन्द कर दो तो उसको भूल जाओगे । संसारमें यह आदमी ठीक है, यह बेठीक है; ऐसा हो जाय, ऐसा नहीं हो जाय, ऐसा नहीं हो‒यह केवल मोह है । मोह सम्पूर्ण व्याधियोंका मूल है‒‘मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला’ (मानस, उत्तरकाण्ड १२१/१५) । ठीक हो या बेठीक, हमें क्या मतलब ? दूसरे ही हमारी गरज करेंगे, हमें किसीकी क्या गरज ? संसारके आदमियोंसे हमें क्या मतलब ? बस, एक ही बात याद रखो‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ ।

प्यास लगे तो पानी पी लिया, भूख लगे तो रोटी खा ली, ठण्ड लगे तो कपड़ा ओढ़ लिया, नहीं मिले तो नहीं सही ! शरीर जाय तो अच्छी बात, रहे तो अच्छी बात, अपना कोई मतलब नहीं । न शरीरके रहनेसे कोई मतलब, न शरीर जानेसे कोई मतलब । हमारा मतलब केवल भगवान्‌से हैं‒ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ, आनन्दमें हो जाओ, नाच उठो कि आज हमें पता चल गया, आज तो मौज हो गयी ! अब हम किसीकी गुलामी नहीं करेंगे ।

ऊपर-नीचे, बाहर-भीतर सब जगह एक परमात्मा ही हैं‒

बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च ।

(गीता १३/१५)

यच्च किञ्चिज्जगत्यस्मिन्दृश्यते  श्रूयऽतेपि वा ।

अन्तर्बहिश्च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ॥

(महानारायणोपनिषद् ११/६)

वह परमात्मा नजदीक-से-नजदीक है, दूर-से-दूर है, बाहर-से-बाहर है, भीतर-से-भीतर है । एक परमात्मा-ही-परमात्मा है और वह अपना है‒ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ । कोई आये तो परमात्मा है, कोई जाय तो परमात्मा है । कोई प्रेम करे तो परमात्मा है, कोई वैर करे तो परमात्मा है । कोई कुछ करे, परमात्मा-ही-परमात्मा है । उस परमात्माको पुकारो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं ।’ आपका जन्म सफल हो जायगा ! यह कितनी बढ़िया बात है ! कितनी ऊँची बात है ! कितनी सच्ची बात है ! कितनी निर्मल बात है ! कोई क्या करता है, यह आप मत देखो । हमें उससे क्या मतलब है ?