।। श्रीहरिः ।।

     




आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७७ शनिवार
 

भगवत्प्राप्तिका सुगम तथा

शीघ्र सिद्धिदायक साधन


हमारी आवश्यकता परमात्मतत्त्वकी है । इस आवश्यकताको हम कभी भूलें नहीं, इसको हरदम जाग्रत रखें । नींद आ जाय तो आने दें, पर अपनी तरफसे आवश्यकताकी भूली मत होने दें । भगवान्‌की प्राप्ति हो जाय, उनमें प्रेम हो जाय‒इस प्रकार आठ पहर इसको जाग्रत रखें तो काम पूरा हो जायगा ! बीचमें दूसरी इच्छाएँ होती रहेंगी तो ज्यादा समय लग जायगा । दूसरी इच्छा पैदा हो तो जबान हिला दें, सर हिला दें कि नहीं-नहीं, मेरी कोई इच्छा नहीं ! अगर दूसरी इच्छा न रहे तो आठ पहर भी नहीं लगेंगे ।

परमात्माकी प्राप्ति कठिन नहीं है; क्योंकि परमात्मा कहाँ नहीं हैं ? कब नहीं हैं ? किसमें नहीं है ? ऐसी कोई वस्तु नहीं बता सकते, कोई काल नहीं बता सकते, कोई देश नहीं बता सकते, कोई स्थान नहीं बता सकते, कोई व्यक्ति नहीं बता सकते, कोई अवस्था नहीं बता सकते, कोई परिस्थिति नहीं बता सकते, जिसमें परमात्मा न हों । केवल उनकी इच्छाकी कमी है, और कुछ कमी नहीं है । केवल एक इच्छा हो जाय कि परमात्मा कैसे मिलें ? वे कैसे हैं‒यह देखनेकी जरूरत नहीं है । केवल उनकी आवश्यकताकी कभी विस्मृति न हो । उनकी एक इच्छा, एक लालसा करनेमें तो समय लगेगा, पर परमात्माकी प्राप्ति होनेमें समय नहीं लगेगा । लोग पागल कहें, कुछ भी कहें, परवाह न करें । केवल एक ही लालसा हो जायगी तो अन्य सभी इच्छाएँ मिट जायँगी । अन्य इच्छाएँ मिटते ही वह लालसा पूरी हो जायगी ।

गीतामें भगवान्‌ने कहा है‒

अनन्यचेताः   सततं   यो  मां  स्मरति नित्यशः ।

तस्यतस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥

(८/१४)

‘हे पृथानन्दन ! अनन्य चित्तवाला जो मनुष्य मेरा नित्य-निरन्तर स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझमें लगे हुए योगीके लिये मैं सुलभ हूँ ।’

‘अनन्यचेताः’ का तात्पर्य है कि एक परमात्माके सिवाय कोई इच्छा न हो । न जीनेकी इच्छा हो, न मरनेकी । न सुखकी इच्छा हो, न दुःखकी । ‘सततम्’ का तात्पर्य है कि प्रातः नींद खुलनेसे लेकर रात्रि नींद आनेतक स्मरण करे और ‘नित्यशः’ का तात्पर्य है कि आजसे लेकर मृत्यु आनेतक स्मरण करे । इस प्रकार ‘अनन्यचेताः’, सततम्’ तथा नित्यशः’‒ये तीन बातें होनेसे भगवान्‌ सुलभ हो जाते हैं । तात्पर्य है कि निरन्तर एक ही आवश्यकता रहे, एक ही भूख रहे, एक ही जागृति रहे कि भगवान्‌ कैसे मिलें ? जहाँ एक वृत्ति हुई कि प्राप्ति हुई । दूसरी वृत्ति रहेगी तो बाधा लगेगी । एक वृत्ति होनेमें कोई कठिनता भी नहीं है । कारण कि एक परमात्माके सिवाय दूसरी कोई वस्तु टिकनेवाली है ही नहीं, फिर उसमें आसक्ति कैसे टिकेगी ? वृत्ति कहाँ जायगी ? किसी भी वस्तुमें ताकत नहीं है कि वह हर जगह रहे, हर समय रहे, हर वस्तुमें रहे, हर व्यक्तिमें रहे, हर अवस्थामें रहे, हर परिस्थितिमें रहे । परन्तु परमात्माका किसी भी देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था और परिस्थितिमें अभाव नहीं है । परमात्माके बिना कोई चीज है ही नहीं ।