।। श्रीहरिः ।।

      




आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७७ रविवार
 

भगवत्प्राप्तिका सुगम तथा

शीघ्र सिद्धिदायक साधन


जो सब जगह विद्यमान है, जिसका कहीं भी अभाव नहीं है, उसकी प्राप्तिमें देरीका कारण यही है कि उसको हम चाहते नहीं । उसकी प्राप्ति न होनेमें पाप कारण नहीं है । अगर पाप कारण हो तो पाप प्रबल हुआ, परमात्मा कमजोर हुए ! परन्तु यह सम्भव है ही नहीं । मनुष्यकी जो नीच वृत्ति या कृत्य है, उसका नाम पाप है । पाप टिकनेवाला है ही नहीं । सत्संगसे, नामजपसे, गंगास्नानसे पाप टिकते ही नहीं । बड़े-से-बड़ा पाप क्यों न हो, उसमें टिकनेकी ताकत ही नहीं है । पापकी सत्ता है ही नहीं । सत्ता एक परमात्माकी ही है । परमात्मा पापमें भी हैं, पुण्यमें भी हैं, अच्छेमें भी हैं, मन्देमें भी हैं; शुद्धिमें भी हैं, गन्दगीमें भी हैं । किसीने मेरेसे कहा कि तुम्हारे भगवान्‌ तो नरकोंमें हैं । मैंने कहा कि हमारे भगवान्‌ तो सब जगह हैं; स्वर्गमें भी हैं, नरकमें भी हैं । तुम्हारे पूर्वज नरकोंमें गये तो उन्होंने वहाँका समाचार दे दिया ! भगवान्‌से खाली जगह कोई हो सकती ही नहीं । वे सब जगह परिपूर्ण हैं । केवल उनकी प्राप्तिकी इच्छा हो, साथमें दूसरी कोई इच्छा न हो तो एक-दो दिन भले ही लग जायँ, उनकी प्राप्ति जरूर होगी । भगवान्‌के सिवाय हमारेको न धन चाहिये, न सम्पत्ति चाहिये, न वाह-वाह चाहिये, न आदर चाहिये, न सत्कार चाहिये, न महिमा चाहिये, न और कुछ चाहिये तो भगवत्प्राप्ति जरूर हो जायगी, इसमें सन्देह नहीं है । परमात्मा कैसे मिलें ?‒इस बातकी जागृति हरदम रहेगी तो परमात्मा कैसे छिपे रहेंगे ?

भूख लगे तो खा लें, प्यास लगे तो जल पी लें, नींद आये तो सो जायँ । हठ नहीं करना है । भोजनमें स्वाद, सुख नहीं लेना है । जल पीनेमें सुख नहीं लेना है । सोनेमें सुख नहीं लेना है । जैसे रोग होनेपर दवा लेते हैं, ऐसे भूख लगनेपर रोटी खा लें । दवा लेनेमें सुख थोड़े ही लेते हैं ? दवामें रुचि थोड़े ही होती है ? इच्छा केवल परमात्माकी ही रहे । इससे सुगम साधन और क्या होगा ! दूसरी इच्छाएँ साथमें रखते हैं‒यही बाधा है । मनुष्य कैसा ही पापी हो या मूर्ख हो, वह परमात्मप्राप्तिका पात्र है । परमात्मप्राप्तिके लिये कोई भी कुपात्र नहीं है । केवल एक लालसा होनी चाहिये । दूसरी लालसा ही बाधक है । अगर भूख, प्यास और नींद तंग न करे तो खानेकी, पीनेकी और सोनेकी भी जरूरत नहीं । रोटी खाकर, पानी पीकर, नींद लेकर क्या कोई जी सकता है ? रोटी खाते, पानी पीते, नींद लेते हुए भी मनुष्य मर जाता है । जीनेकी ताकत अन्नमें, जलमें, नींदमें नहीं है । किसी भी वस्तुमें जीनेकी ताकत नहीं है । अगर भूखे रहनेसे मनुष्य मर जाता है तो खाते-पीते हुए भी मनुष्य मर जाता है । एक दिन मरना तो पड़ेगा ही, फिर नया नुकसान क्या हुआ ? जो जानेवाला है, वही हुआ । परन्तु मैं भूखे-प्यासे रहकर मरनेके लिये नहीं कहता । अतः भूख-प्यास लगे तो अन्न-जल ले लें, नींद आये तो सो जायें, पर अपनी आवश्यकताको न भूलें । उसको हरदम जाग्रत रखें । परमात्मप्राप्तिमें समय लगाना हमारे अधीन है, चाहे एक घड़ीमें प्राप्ति कर लें, चाहे अनेक दिनों-महीनों-वर्षोंमें । फर्क हमारी चाहनामें है । परमात्माके मिलनेमें फर्क नहीं है । भगवान्‌ने कहा है‒

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।

जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥

(मानस, सुन्दरकाण्ड ४४/१)

भगवान्‌के सम्मुख हो जायँ तो करोड़ों जन्मोंके पाप उसी क्षण नष्ट हो जायँगे । पापोंमें, दुराचारोंमें, अवगुणोंमें ताकत नहीं है कि वे भगवान्‌को रोक दें । भगवान्‌को रोकनेकी ताकत किसीमें हो ही नहीं सकती । अगर कोई भगवान्‌को रोक दे तो वे भगवान्‌ हमें मिलकर क्या निहाल करेंगे । वे भगवान्‌ हमारे किस कामके, जो किसीके द्वारा अटक जायँ ! केवल हमारी एक चाहनाकी आवश्यकता है । साधकको यही सावधानी रखनी है कि इस चाहनाकी कभी विस्मृति न हो । फिर भगवत्प्राप्तिमें कठिनता और देरी नहीं रहेगी ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘सत्यकी खोज’ पुस्तकसे