भगवान् जगत्के गुरु हैं‒ ‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्’ ‘जगद्गुरुं
च शाश्वतम्’ (मानस, अरण्य॰ ४/९) वे केवल गुरु ही नहीं, प्रत्युत गुरुओंके भी परम गुरु हैं‒ ‘स ईशः परमो गुरोर्गुरुः’ (श्रीमद्भा॰ ८/२४/५०) ‘त्वमस्य
पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्’ (गीता
११/४३) राजा सत्यव्रत भगवान्से कहते हैं‒ अचक्षुरन्धस्य
यथाग्रणीः कृत- स्तथा जनस्याविदुषोऽबुधो गुरुः । त्वमर्कदृक्
सर्वदृशां समीक्षणो वृतो गुरुर्नः स्वगतिं बुभुत्सताम् ॥ (श्रीमद्भागवत ८/२४/५०) ‘जैसे कोई अन्धा अन्धेको ही अपना पथ-प्रदर्शक बना ले, वैसे ही अज्ञानी जीव अज्ञानीको ही अपना गुरु बनाते हैं । आप सूर्यके समान स्वयं
प्रकाश और समस्त इन्द्रियोंके प्रेरक हैं । हम आत्मतत्त्वके जिज्ञासु आपको ही गुरुके
रूपमें वरण करते हैं ।’ भक्तराज प्रह्लादजी कहते हैं‒ शास्ता विष्णुरशेषस्य जगतो यो हृदि स्थितः । तमृते परमात्मनां तात कः केन शास्यते ॥ (विष्णुपुराण १/१७/२०) ‘हृदयमें स्थित भगवान् विष्णु ही तो सम्पूर्ण जगत्के उपदेशक हैं । हे तात ! उन
परमात्माको छोड़कर और कौन किसको कुछ सिखा सकता है ?
नहीं सिखा सकता ।’ भगवान् जगत्के गुरु हैं और हम भी जगत्के भीतर ही हैं । इसलिये वास्तवमें हम गुरुसे रहित नहीं हैं । हम असली महान् गुरुके शिष्य हैं । कलियुगी गुरुओंसे तो बड़ा खतरा है, पर जगद्गुरु भगवान्से कोई खतरा नहीं है ! कोरा लाभ-ही-लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं । इसलिये भगवान्को गुरु मानें और उनकी गीताको पढ़े, उसके अनुसार अपना जीवन बनायें तो हमारा निश्चितरूपसे कल्याण हो जायगा । कृष्ण, राम, शंकर, हनुमान्, गणेश, सूर्य आदि किसीको भी अपना गुरु मान सकते हैं । |