।। श्रीहरिः ।।

       




आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र अमावस्या, वि.सं.२०७७ सोमवार
 भगवान्‌ सबके गुरु हैं

भगवान्‌ जगत्‌के गुरु हैं

कृष्णं वन्दे जगद्‌गुरुम्

जगद्‌गुरुं च शाश्वतम्(मानस, अरण्य ४/९)

वे केवल गुरु ही नहीं, प्रत्युत गुरुओंके भी परम गुरु हैं

                स ईशः परमो गुरोर्गुरुः (श्रीमद्भा ८/२४/५०)

                 त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् (गीता ११/४३)

राजा सत्यव्रत भगवान्‌से कहते हैं

                    अचक्षुरन्धस्य यथाग्रणीः कृत-

                            स्तथा जनस्याविदुषोऽबुधो गुरुः ।

                    त्वमर्कदृक् सर्वदृशां समीक्षणो

                            वृतो गुरुर्नः स्वगतिं बुभुत्सताम् ॥

                (श्रीमद्भागवत ८/२४/५०)

जैसे कोई अन्धा अन्धेको ही अपना पथ-प्रदर्शक बना ले, वैसे ही अज्ञानी जीव अज्ञानीको ही अपना गुरु बनाते हैं । आप सूर्यके समान स्वयं प्रकाश और समस्त इन्द्रियोंके प्रेरक हैं । हम आत्मतत्त्वके जिज्ञासु आपको ही गुरुके रूपमें वरण करते हैं ।

भक्तराज प्रह्लादजी कहते हैं

                शास्ता विष्णुरशेषस्य जगतो यो हृदि स्थितः ।

                तमृते परमात्मनां   तात   कः   केन  शास्यते ॥

                       (विष्णुपुराण १/१७/२०)

हृदयमें स्थित भगवान्‌ विष्णु ही तो सम्पूर्ण जगत्‌के उपदेशक हैं । हे तात ! उन परमात्माको छोड़कर और कौन किसको कुछ सिखा सकता है ? नहीं सिखा सकता ।

भगवान्‌ जगत्‌के गुरु हैं और हम भी जगत्‌के भीतर ही हैं । इसलिये वास्तवमें हम गुरुसे रहित नहीं हैं । हम असली महान्‌ गुरुके शिष्य हैं । कलियुगी गुरुओंसे तो बड़ा खतरा है, पर जगद्गुरु भगवान्‌से कोई खतरा नहीं है ! कोरा लाभ-ही-लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं । इसलिये भगवान्‌को गुरु मानें और उनकी गीताको पढ़े, उसके अनुसार अपना जीवन बनायें तो हमारा निश्चितरूपसे कल्याण हो जायगा । कृष्ण, राम, शंकर, हनुमान्, गणेश, सूर्य आदि किसीको भी अपना गुरु मान सकते हैं ।