।। श्रीहरिः ।।

                    


आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.२०७८ सोमवार
   करनेमें सावधानी, होनेमें प्रसन्नता


ईश्वरः सर्वभूतानां     हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥

(गीता १८/६१)

इसका अर्थ हुआ कि ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंको अपनी मायासे भ्रमण कराते हुए सब प्राणियोंके हृदयमें स्थित हैं । तो प्रश्न उठता है कि सब कुछ ईश्वर ही कराते हैं क्या ?

तो अब इसका उत्तर सुनिये । एक होता है ‘करना’ और एक होता है ‘होना’ । तो करनेमें तो हम सबका अधिकार है; परन्तु होनेमें अधिकार नहीं । भगवान्‌ कहते हैं‒

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा  ते संगोस्त्वकर्मणि ॥

(गीता २/४७)

तेरा कर्म करनेमें अधिकार है, फलमें कभी नहीं । इसलिये तू कर्मके फलका हेतु मत बन और तेरी अकर्मण्यतामें भी आसक्ति न हो ।

एक तो हम करते हैं और एक होता है । तो कर्म तो हम करते हैं और फल होता है । करनेमें जो कर्तृत्व अभिमान रहता है, वही अगाड़ी (आगे) फलभोगमें परिणत होता है । परन्तु कर्तृत्वरहित जो क्रिया होती है, वह कर्म नहीं बनती और न फलभोगमें परिणत होती है । हम जो काम करते हैं वह कामना तथा आसक्ति लेकर करते हैं और जो होता है वह भगवान्‌द्वारा बनाये हुए विधानसे होता है ।

करनेमें मनुष्यको सावधान रहना चाहिये और होनेमें प्रसन्न रहना चाहिये । करनेमें सावधानीका तात्पर्य है कि कर्तृत्व-अभिमान तथा फलकी इच्छाका त्याग करके अपनी पूरी शक्ति तथा सामर्थ्यसे कार्य करें, क्योंकि कर्तृत्व-अभिमान और फलेच्छाको रखकर जो कर्म किया जाता है, वह बाँधनेवाला होता है । परन्तु‒

यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते ।

हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ॥

(गीता १८/१७)

जिसके अहंकृत भाव नहीं है और बुद्धिका लेप, आसक्ति, कामना आदि नहीं है वह सब लोकोंको मारकर भी न तो मारता है और न बँधता है; क्योंकि उसमें कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व नहीं है । अतः करनेमें सावधान रहनेका अर्थ हुआ कि कर्तापनके अभिमानका और भोग-इच्छा दोनोंका त्याग करे । वह कर्तापन और भोक्तापन भगवान्‌का बनाया हुआ नहीं है, यह जीवने स्वयं बनाया है‒

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु ।

  कर्मफलसंयोगं    स्वभावस्तु  प्रवर्तते ॥

(गीता ५/१४)

परमात्मा न तो कर्तृत्वको पैदा करते हैं, न कर्मोंको करवाते हैं कि अमुक-अमुक काम तुम करो और न कर्मके फलके साथ सम्बन्ध करवाते हैं कि यह कर्म करनेसे तुम्हें यह फल मिलेगा । यह भगवान्‌की रचना की हुई नहीं है । कर्तृत्व इसने स्वयं बनाया है, कर्म स्वयं करता है और फलका भागी स्वयं बनता है ।